कौन जीतेगा सीएम कप? चुनावी मैच के फाइनल रोमांच का मजा लीजिए! :-जयराम शुक्ल

तीन दिसंबर की शाम तक जन्नत की हकीकत पता चल ही जाएगी। यह भी तय होगा कि खामोश लहर किस खामोशी के साथ परिवर्तन के अंगारों को जज्ब करने जा रही है। तब तक हसीन सपने देख लेने में हर्ज ही क्या? और अंततः हाथ मलना और आहें भरना तो है ही!

आसमान से बरसे मावठे ने सिर्फ वातावरण भर ही नहीं, सत्ता परिवर्तन को लेकर सड़क उठी उमस पर भी छीटे मारे हैं। एग्जिट पोल के नतीजे मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार को लेकर संकेत करते हैं, पर कांग्रेस मानने को तैयार नहीं, उसका कहना हैं- कर्नाटक की भांति सभी एग्जिट पोल और आंकलनों को ध्वस्त करते हुए हम जीतेंगे।

एग्जिट पोल के निष्कर्ष से परिवर्तनगामी कश्मकश में और कन्फ्यूज हैं। मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी इन परिवर्तनगामियों के साथ खड़ा है। वह तीन दिसंबर तक किन्तु-परंतु के साथ खुद को सच साबित करने में जुटा ही रहेगा।

एक मित्र ने कहा मध्यप्रदेश के एग्जिट पोल, रुपए के दम पर मेन्यूपुलेट किए गए, मैंने पूछा छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के बारे में क्या ख्याल है. तब से वे अपने ख्याल में ही खोए हुए हैं। दिनौंधी (दिन में न दिखने की बीमारी) के वे स्लेट पर लिखी इबारत कैसे पढ़ सकते हैं। जिन्होंने उस इबारत को पढ़ा है उनके लिए एग्जिट पोल के नतीजों का इंतजार करने की कोई वजह ही नहीं थी।

इस चुनाव में मुझे स्पष्ट दो धाराएं दिखीं, एक सतह पर, दूसरी सतह के नीचे जिसे चुनावी भाषा में अंडर करंट (अन्तर्धारा) कहते हैं। सतह की धारा में घांस-फूस और कचरे जिस उफान के साथ बहते दिख रहे थे भाई लोग उसे ही चुनाव का वास्तविक आवेग माने बैठे हैं।

एग्जिट पोल के सर्वे का सैंपल साइज क्या रहा यह तो मुझे नहीं मालूम लेकिन चुनाव कवरेज पर जुटे ज्यादातर मित्रों ने सड़क पर परिवर्तन की गर्मी को ही अपने माइक पर एम्प्लीफाई किया और लिखा।

अंतिम छोर पर खड़े लोगों के बीच जाकर जिन्होंने अन्तर्धारा की थाह ली, उसने जरूर यह महसूस किया कि लाडली बहनों के ‘भातृप्रेम’ का आवेग कितना प्रबल है।

चुनाव की एक और बड़ी खासियत रही। दोनों धाराओं ने दलों के वैचारिक तटबंध तोड़ डाले। यानी कि यह तय कर पाना मुश्किल सा रहा कि कौन कांग्रेसी वोटर हैं और कौन भाजपाई। मैंने अपने इलाके में कट्टर भाजपाइयों को भी सड़क अपनी ही पार्टी के धुर्रे उड़ाते देखें और कांग्रेसियों को मोदी का जसगान तथा लाड़ली बहना के करिश्मे की व्याख्या करते हुए भी। इस शादी ब्याह के मौसम में ज्यादातर ऐसे लोगों से ही भिड़ंत हुई।

दरअसल इस चुनाव को मेरे नजरिए से देखें तो मैदान में दो वर्ग एक दूसरे के सामने रस्सीकसी के अंदाज में डटे थे। पहले वे जो ‘आकांक्षी’ हैं दूसरे वे जो लाभार्थी हैं। पहले वर्ग वालों में जिन्हें ओल्ड पेंशन स्कीम चाहिए, जिन्हें नौकरियां नहीं मिल रहीं, जिनकी नौकरियां फंसी हुई हैं और वे भी जो सत्ता की एकरसता से उकताए हुए थे और उनमें आज भी लोहिया का वो जोश उबाल मार रहा था- जिन्दा कौमें पांच साल का इंतजार नहीं करतीं।

दूसरा वर्ग वो जिनके खाते में हर महीने लाड़ली बहन के तौर पर रुपए आ रहे थे, वो किसान जिनकी जेब में मतदान के दो दिन पहले छह हजार आ चुके थे और इनके साथ वे भी जो झोपड़ी से फ्लैट में शिफ्ट हुए, जिन्हें पक्की छत मिल चुकी थी, सुपर स्पेशियलिटी में आयुष्मान कार्ड से जिनके मंहगे इलाज हो रहे हैं और वो भी जो कोरोना काल से 35 किलो मुफ्त का राशन घर ला रहे थे और अगले पांच साल के लिए इसकी गारंटी भी मिल चुकी थी।

इस चुनावी रस्साकशी में यदि आपने दोनों वर्ग के बाजुओं के बल को अच्छे से नहीं तौला तो परिणाम का आंकलन किस अन्य तरीके से करेंगे?

इस रस्साकशी में किस वर्ग के बाजू में कितना बल है भला वे कैसे देख पाएंगे जो दिनौंधी के मरीज हैं। आकांक्षी वर्ग के मुकाबले लाभार्थी वर्ग का आकार कितना बड़ा है सतही समझ रखने वाला भी पहली नजर में आंकलन कर लेगा। और उन्हें बताने की जरूरत भी नहीं, जिन्हें समूचे नक्षत्र मंडल में सिर्फ मीन और मेख ही नजर आते हैं।

इस चुनाव में ज्यादातर प्रत्याशियों ने अपनी पार्टी के समानांतर एक पेशेवर/गैर राजनीतिक प्रबंधन तंत्र खड़ा कर रखा था। यही मीडिया संभालते रहे, यही वोटरों को पटाने के लिए नाना तरह के जतन भी करते रहे। दोनों दलों के मझोले, छोटे नेता और कार्यकर्ता प्राय: फुर्सत में ही थे। इनकंबेंसी फैक्टर या परिवर्तन की रट लगाने वालों में ज्यादातर इसी वर्ग के लोग थे जो ओल्ड पेंशन स्कीम और बेरोजगार युवाओं में मौके बे मौके दम भरते रहते थे।

बहरहाल अंतिम परिणाम तो 3 दिसंबर को आना है, और मैं मध्यप्रदेश के संदर्भ में अपने उसी मत ‘125 प्लस’ के साथ अडिग हूं। यद्यपि चाणक्य, इंडिया टुडे और जी न्यूज के पोल रिजल्ट इस आंकड़े को 135 से 155- 162 तक बता रहे हैं। दो एजेंसियों के पोल रिजल्ट कांग्रेस में प्राणवायु संचारित कर रहे हैं। यह संचार दो दिन और सही।

यह रविवार वर्ल्ड कप फायनल से ज्यादा रोमांचक होने वाला है। मित्रों की मानें तो अंतिम ओवर के आखिरी गेंद तक रोमांच बना रहने वाला है। अब इसे मैच के नजरिए से देखें तो शुरुआत कांग्रेस को खुश करने वाली हो सकती है। कर्मचारियों के डाक मतपत्रों की गिनती पहले होगी। जैसी कि हवा महसूस हुई है, अधिसंख्य कांग्रेस के पक्ष में खुलने वाले हैं। इस खुशी में कुछ फटाके-वटाके फूट सकते हैं। जल्दी ही पिच के रूख में परिवर्तन होना शुरू होगा। इस परिर्वतन के साथ एक हंगामा जो खड़ा होगा कि ईवीएम में हेराफेरी हो गई। नंबर मिलान नहीं हो रहे। मतगणना स्थल के बाहर अफवाहें तेज होंगी, स्ट्रांग रूम से सभी ईवीएम बदलकर एक पार्टी की वोट वाली ईवीएम धर दी गई हैं। यह भी सुनने को मिल सकता है कि दिल्ली में अमेरिका से अडानी के विमान पर चढ़कर आए हैकर्स की एक टीम ‘चाणक्य’ के नेतृत्व में सतत् सक्रिय हैं। दोपहर होते-होते रन बनने और विकेट गिरने शुरू हो जाएंगे। कोई फिफ्टी तो कोई सेंचुरी मारेगा, कोई सस्ते में पवेलियन वापस होगा। इस प्रक्रिया में दोनों टीमों के खिलाड़ी, महारथी शामिल रहेंगे।

इस पूरे रोमांच में लाड़ली बहनें किसी खेमें के लिए चीयरलीडर्स दिखेंगी तो दूसरे को इनकी सूरत में डायन और चुड़ैल नजर आएंगी।

कल शाम तक जन्नत की हकीकत का पता चल ही जाएगा। यह भी तय होगा कि खामोश लहर किस खामोशी के साथ परिवर्तन के अंगारों को जज्ब करने जा रही है। तब तक हसीन सपने देख लेने में हर्ज ही क्या। और अंततः हाथ मलना और आहें भरना तो है ही!

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