MP: आईआईटी खड़गपुर और एम्स भोपाल के बीच MOU

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MOU Between IIT Kharagpur And AIIMS Bhopal: यह सेंटर उन लोगों के लिए एक नई रोशनी बनकर उभरा है जो मानसिक थकान, अवसाद या उदासी से जूझ रहे हैं। दोनों संस्थानों के बीच एक समझौता पत्र (MOU) पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसके तहत एम्स का सेंटर ऑफ हैप्पीनेस और आईआईटी खड़गपुर का रेखी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर साइंस ऑफ हैप्पीनेस मिलकर छात्रों, मरीजों और उनके परिजनों की मानसिक स्थिति को समझने और उसे बेहतर बनाने के लिए शोध करेंगे।

MOU Between IIT Kharagpur And AIIMS Bhopal: कैंसर से जूझ रहे बच्चों से लेकर मेडिकल छात्रों के तनाव तक, एम्स भोपाल का सेंटर ऑफ हैप्पीनेस जीवन में मुस्कान और मानसिक सुकून लाने का अनूठा प्रयास कर रहा है। यह सेंटर उन लोगों के लिए एक नई रोशनी बनकर उभरा है जो मानसिक थकान, अवसाद या उदासी से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों की मदद से यहाँ मरीजों और छात्रों को उनकी मूल समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटने की ताकत दी जाती है।

आईआईटी खड़गपुर के साथ मिलकर अनुसंधान

इस पहल को और प्रभावी बनाने के लिए एम्स भोपाल और आईआईटी खड़गपुर ने हाथ मिलाया है। दोनों संस्थानों के बीच एक समझौता पत्र (MOU) पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसके तहत एम्स का सेंटर ऑफ हैप्पीनेस और आईआईटी खड़गपुर का रेखी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर साइंस ऑफ हैप्पीनेस मिलकर छात्रों, मरीजों और उनके परिजनों की मानसिक स्थिति को समझने और उसे बेहतर बनाने के लिए शोध करेंगे। इस सहयोग से मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के नए तरीके खोजे जाएंगे।

मंकी माइंड’ को समझने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आईआईटी खड़गपुर के रेखी सेंटर के चेयरमैन डॉ. सतिंदर सिंह रेखी ने अपने व्याख्यान “Who’s Running Your Life – You or Your Monkey Brain?” में मन की चंचलता को समझाया। उन्होंने बताया कि ‘मंकी माइंड’ बौद्ध दर्शन से लिया गया शब्द है, जो दिमाग की उस अवस्था को दर्शाता है जिसमें विचार एक से दूसरे पर बिना रुके कूदते रहते हैं, जैसे बंदर पेड़ की डालियों पर उछलता है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब मन को प्रशिक्षित नहीं किया जाता और ध्यान केंद्रित करने की आदत नहीं होती। डॉ. रेखी ने जोर दिया कि मानसिक संतुलन और खुशी के लिए मन को नियंत्रित करना जरूरी है।

सेंटर ऑफ हैप्पीनेस: समय की जरूरत

एम्स भोपाल के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहा कि डॉक्टर, मेडिकल छात्र और पैरामेडिक्स अक्सर अत्यधिक मानसिक दबाव में काम करते हैं। सेंटर ऑफ हैप्पीनेस का वैज्ञानिक दृष्टिकोण उन्हें आत्मविश्वास, आशावाद और भावनात्मक संतुलन प्रदान करता है। उन्होंने इसे न केवल समय की मांग, बल्कि एक अनिवार्य आवश्यकता बताया।

दो साल का सकारात्मक सफर

4 अगस्त 2023 को स्थापित सेंटर ऑफ हैप्पीनेस ने अपने दो साल के सफर में कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि खुशी एक विज्ञान है, जिसका अभ्यास जरूरी है। मेडिकल संस्थानों में काम का दबाव, लंबी ड्यूटी और जटिल पाठ्यक्रमों के कारण डॉक्टरों, छात्रों और पैरामेडिक्स को भारी तनाव का सामना करना पड़ता है। साथ ही, मरीज और उनके परिजन भी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक बोझ से जूझते हैं, जिससे उनकी बीमारी से लड़ने की क्षमता प्रभावित होती है। यह सेंटर इन सभी चुनौतियों से निपटने में मदद कर रहा है। यहाँ आयोजित गतिविधियाँ सकारात्मक मनोविज्ञान, भावनात्मक संतुलन और खुशी को बढ़ावा देती हैं।

नाट्य शैली से भावनात्मक समस्याओं का समाधान

सेंटर ने नए एमबीबीएस छात्रों के लिए ओरिएंटेशन सत्र आयोजित किए, जिनमें खुशी के महत्व और इसके जीवन पर प्रभाव को समझाया गया। इसके अलावा, “Have the Courage to be Happy– The Theatre of the Oppressed” नामक एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में छात्रों ने नाट्य शैली के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति और भावनात्मक समस्याओं से निपटने के तरीके सीखे। इस अनूठी पद्धति ने छात्रों को सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास और टीमवर्क का महत्व सिखाया।

कैंसर मरीजों के लिए भावनात्मक सहारा

सेंटर ने कैंसर पीड़ित बच्चों, उनके परिजनों और ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर्स के लिए विशेष सत्र आयोजित किए। इन सत्रों का उद्देश्य उपचार के दौरान मानसिक तनाव को कम करना और आशावादी दृष्टिकोण विकसित करना था। मरीजों ने बताया कि इन सत्रों से उन्हें भावनात्मक सहारा मिला, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा और बीमारी से लड़ने की ताकत मिली।

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