Modi Tahawwur Rana: 26/11 मुंबई हमले (26/11 Mumbai Terror Attack) के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा (Tahawwur Rana) का अमेरिका से भारत प्रत्यर्पण एक ऐतिहासिक कदम है, जिसने आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को वैश्विक मंच पर और मजबूत किया है। लेकिन इस बड़ी कूटनीतिक जीत पर कांग्रेस (Congress Tahawwur Rana) का क्रेडिट छीनने का प्रयास ऐसा है, जैसे कोई बच्चा पड़ोसी के बगीचे से फल तोड़कर कहे, “ये तो मैंने बोया था!” लेकिन यह सफलता मोदी सरकार (Modi Government Tahawwur Rana) की कठोर विदेश नीति और कूटनीति का परिणाम है, और कांग्रेस के समय में तो आतंकियों को बिरियानी परोसने की बातें सुर्खियों में थीं।
राणा का प्रत्यर्पण: मोदी सरकार की कूटनीतिक जीत
तहव्वुर राणा, जिसने 26/11 मुंबई हमले की साजिश में अहम भूमिका निभाई, लंबे समय से भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में था। 2008 के उस खौफनाक हमले में 166 लोग मारे गए थे, जिसमें 6 अमेरिकी नागरिक भी शामिल थे। भारत ने 2018 में राणा के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग अमेरिका से की थी। इसके बाद से मोदी सरकार ने लगातार कूटनीतिक स्तर पर प्रयास किए। 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भी राणा की तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उसने दावा किया था कि भारत में उसे प्रताड़ित किया जाएगा।
9 अप्रैल 2025 को राणा को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया, जहां राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने उसे हिरासत में लिया। यह पूरी प्रक्रिया भारत और अमेरिका के बीच 1997 की प्रत्यर्पण संधि के तहत हुई, जिसे मोदी सरकार ने प्रभावी ढंग से लागू किया। गृह मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगरानी में यह ऑपरेशन इतना गोपनीय और तेजी से हुआ कि पाकिस्तान को भनक तक नहीं लगी।
कांग्रेस का समय: बिरियानी और कमजोर कूटनीति
अब बात उस दौर की, जब कांग्रेस की यूपीए सरकार सत्ता में थी। 2008 में मुंबई हमला हुआ, और 2011 में अमेरिकी कोर्ट ने तहव्वुर राणा को मुंबई हमले के मामले में बरी कर दिया था। उस समय भारत की कूटनीति इतनी कमजोर थी कि राणा जैसे खतरनाक आतंकी को अमेरिका में खुला छोड़ दिया गया। तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने 10 जून 2011 को ट्वीट किया था
अमेरिका ने तहव्वुर राणा को मुंबई हमले में निर्दोष घोषित कर दिया। यह भारत की संप्रभुता के लिए अपमानजनक है और विदेश नीति के लिए बड़ा झटका है।” यह ट्वीट आज वायरल हो रहा है, जो उस समय की यूपीए सरकार की नाकामी को उजागर करता है।
कांग्रेस के शासन में न सिर्फ राणा को बरी किया गया, बल्कि मुंबई हमले के एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब (Ajmal Kasab) को भी जेल में “खास मेहमाननवाजी” दी गई। 2010 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अजय माकन को यह कहते हुए सुना गया कि कसाब को जेल में बिरियानी दी जा रही है। हालांकि बाद में इसे “गलत बयानी” बताया गया, लेकिन यह बात जनता के गले नहीं उतरी। कसाब को 2012 तक जीवित रखा गया, जिसे विपक्ष ने यूपीए की नरम नीति का प्रतीक बताया।
कांग्रेस का क्रेडिट लेने का ढोंग
अब जब राणा भारत की हिरासत में है, तो कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत जैसे नेता कह रहे हैं कि यह उनकी तत्कालीन सरकार की कूटनीति का नतीजा है। यह दावा हास्यास्पद है। यूपीए के समय राणा को 2011 में बरी कर दिया गया था, और प्रत्यर्पण की कोई ठोस प्रक्रिया शुरू नहीं हुई थी। 2013 में राणा को लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने के लिए अमेरिका में 14 साल की सजा मिली, लेकिन भारत लाने की कोई गंभीर कोशिश यूपीए ने नहीं की। उल्टे, 2020 में राणा को स्वास्थ्य कारणों से अमेरिका में रिहा कर दिया गया था, और तब भी यूपीए की “कूटनीति” खामोश रही।
मोदी सरकार ने 2018 से इस मामले को गंभीरता से लिया। NIA ने राणा के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाए, जिसमें यह साबित हुआ कि उसने डेविड हेडली को मुंबई में रेकी करने में मदद की थी। हेडली ने खुद पूछताछ में राणा की भूमिका का खुलासा किया था। भारत ने अमेरिका के सामने राणा की ISI और लश्कर-ए-तैयबा से साठगांठ के सबूत रखे, जिसके बाद अमेरिका को प्रत्यर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा।