History of Kashmir | महमूद गजनवी कश्मीर को क्यों नहीं जीत पाया

History of Kashmir | Kashmir campaign of Mahmud Ghaznavi in ​​Hindi: गजनवी साम्राज्य के सुल्तान महमूद गजनवी भी कश्मीर पर विजय प्राप्त करना चाहता था। इसी उद्देश्य से उसने 1015 और 1021 ईस्वी में दो बार कश्मीर पर आक्रमण किया, पर उसे दोनों ही बार कश्मीर के मौसम और परिस्थितियों से हार कर लौटना पड़ा और उसके कश्मीर विजय का ख्वाब अधूरा ही रहा।

History of Kashmir

कौन था महमूद गजनवी

महमूद गजनवी गजनी का सुल्तान था। वह सुबुक्तगीन नाम के एक तुर्क सरदार का पुत्र था। उसका जन्म 1 नवंबर 971 को हुआ था। अपनी पिता की मृत्यु के बाद वह गद्दी पर बैठा। अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने बहुत सारे युद्ध किए। इन्हीं अभियानों के तहत उसने भारत पर भी आक्रमण किए। उसने 1001 से 1027 के बीच भारत पर कुल 17 बार आक्रमण किए। इन आक्रमणों के दौरान उसने भारत के विशाल और समृद्ध मंदिर तोड़े, नगरों को बर्बाद किया और भारी नरसंहार मचाया। हालांकि पंजाब, मुल्तान और सिंध को छोड़कर उसने भारत के किसी भी क्षेत्र पर स्थायी कब्जा नहीं कर पाया। लेकिन उसके आक्रमणों से भारत थर्रा उठा। 30 अप्रैल 1030 में गंभीर मलेरिया के संक्रमण से उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उसका साम्राज्य अस्थिर हो गया।

महमूद गजनवी ने कश्मीर पर आक्रमण क्यों किया था

पंजाब के हिंदूशाही वंश के राजाओं और महमूद गजनवी के संघर्ष सतत रूप से चल रहे थे। 1012 के राजा आनंदपाल की मृत्यु के बाद 1014 ईस्वी में महमूद गजनवी साल्ट रेंज को पार करता हुआ, शाहियों की राजधानी नंदन की तरफ बढ़ा। तब इस स्केटर पर आनंदपल के बेटे त्रिलोचनपाल का शासन था। त्रिलोचनपाल ने महमूद की सेनाओं से संघर्ष के लिए अपने रिश्तेदार कश्मीर के लोहारवंश के शासक संग्रामराज से मदद मांगी।

संग्रामराज ने अपने सेनापति तुंग को के नेतृत्व में एक बड़ी फौज शाहियों की मदद के लिए भेजी। हिंदूशाही और कश्मीरी सेनाओं ने साथ मिलकर झेलम नदी के उत्तर में स्थित एक घाटी में अपना सैन्य शिविर लगाया। महमूद की कुछ सेनाओं और कश्मीरी फौजों के आपसी संघर्ष में कश्मीरी फौजें विजयी रहीं, इसीलिए तुंग अतिआतमविश्वास से भर गया। लेकिन महमूद गजनवी से आमने सामने के संघर्षों में शाही और कश्मीरी फौजों को हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद राजा त्रिलोचनपाल अपने पुत्र भीम के साथ सरहिन्द आ गया। उसका शासन का बड़ा हिस्सा अब गजनवियों के अधिकार में चला गया था।

कश्मीर के राजा द्वारा हिंदूशाहियों को मिली सैन्य सहायता के बाद, महमूद गजनवी को राजा संग्रामराज को दंड देने के बहाने कश्मीर में आक्रमण करने का मौका मिल गया।

महमूद का कश्मीर अभियान | History of Kashmir

1015 में महमूद गजनवी अपनी सेनाओं के साथ कश्मीर की तरफ बढ़ा। उसने वह मार्ग चुना जिससे कश्मीर और पंजाब के बीच व्यापार होता था। वह अपनी सेनाओं के साथ झेलम नदी तक बढ़ गया और वहाँ से बड़गाम स्थित तोशा के मैदानों और दर्रे को पार करते हुए उसने पीर-पंजाल पर्वत के दक्षिणी ढलानों पर स्थित लोहकोट के दुर्ग पर आक्रमण किया। लोहकोट का दुर्ग अजेय और अभेद्द था और लोहार वंश के शासकों के आधिपत्य में था। इसीलिए महमूद ने इसे घेर लिया। लेकिन सवाल उठता है महमूद गजनवी कश्मीर को क्यों नहीं जीत पाया।

कश्मीर से महमूद को लौटना पड़ा

लेकिन दिक्कत यह थी किला पहाड़ी पर बना था, उसे जीत पाना आसान ना था। ऊपर से गर्मी के मौसम में भी यहाँ बेहद ठंड और बर्फबारी हो रही थी। महमूद की सेनाओं के लिए यह बहुत मुश्किल था। ऊपर से दुर्ग के इसी बात का फायदा उठाते, जिससे महमूद दुर्ग विजय नहीं कर पा रहा था। इधर राजा संग्रामराज को भी तैयारी करने का मौका मिल गया और वह अपनी फौजों के साथ महमूद से टकराने के लिए चला। महमूद पहले से बर्फबारी, ठंडी, खाने-पीने की चीजों और संसाधनों की कमी की वजह से परेशान था। ऊपर से संग्रामराज का सेना के साथ आगे बढ़ने की खबर सुन उसने वापस लौट जाना ही उचित समझा। और वह लोहकोट दुर्ग की घेराबंदी छोड़कर गजनी वापस लौट गया।

1021 में पुनः कश्मीर पर आक्रमण

1018 और 1019 में महमूद ने गंगा-यमुना के मैदानों पर बड़ा आक्रमण किया था। इन्हीं आक्रमणों में उसने कन्नौज, मथुरा, महावन, बुलंदशहर इत्यादि नगर ध्वस्त कर दिए थे। ग्वालियर और कलिंजर को आतंकित किया था। इसी बीच 1021 में उसने पुनः कश्मीर में आक्रमण की योजना बनाई और लौहकोट दुर्ग को जा घेरा, पर इस बार भी महमूद का दुर्भाग्य ही रहा वह फिर से असफल रहा। इस बार के अभियान के असफल होने का कारण ठंड का मौसम और बर्फबारी थी। इन अभियानों के बाद महमूद ने कश्मीर को विजय करने का अपना ख्याल छोड़ दिया। समस्त उत्तर भारत को रौंद देने वाला महमूद कश्मीर पर विजय प्राप्त नहीं कर सका और वहाँ पहले की ही तरह लोहारवंश के राजा शासन करते रहे।

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