Maharaja Martand Singh Birth Anniversary | महाराज मार्तंड सिंह- जिन्होंने सफेद बाघों को संवर्धित कर उसे विश्वभर में दिलाई पहचान

Maharaj Martand Singh Birthday, Biography In Hindi: आज रीवा रियासत के आखिरी शासक महाराज मार्तण्ड सिंह की जयंती है, जो रीवा लोकसभा से सांसद भी रहे, उन्हें अपने जनहितैषी कार्यों और मुख्यतः सफेद बाघों और वन्य जीवों के संरक्षण और संवर्धन के प्रयासों के लिए जाना जाता है।

Maharaja Martand Singh Education | जन्म, परिवार और शिक्षा

महाराज मार्तंड सिंह का जन्म 15 मार्च 1923 को रीवा राज्य के गोविंदगढ़ किले में रीवा तत्कालीन शासक महाराज गुलाब सिंह जूदेव और महारानी साम्राज्य कुमारी साहिबा के यहाँ हुआ था, महारानी साम्राज्य कुमारी जोधपुर के महाराज सरदार सिंह बहादुर की सुपुत्री थीं। कहानी है उनके जन्म के बाद किसी कवि ने एक दोहा पढ़ा था- “विंध्य क्षेत्र पावन परम, श्रुति कह रेवाखंड। व्याघ्रदेव के वंश में उदित महा मार्तंड”, जिसके बाद उनका नाम रखा गया ‘मार्तंड सिंह’, उनकी प्रारंभिक शिक्षा डेली कॉलेज इंदौर और अजमेर के मेयो कॉलेज से हुयी, उन्होंने देहरादून के आई. सी. एस. के ट्रैनिंग सेंटर से प्रशासनिक प्रशिक्षण प्राप्त किया, तथा मैसूर और ऊटी में भी प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किए। उनका विवाह कच्छ भुज के महाराज मिर्ज़ा महाराव विजयसिंह की सुपुत्री महारानी प्रवीन कुँवर साहिबा से 1943 में जन्मअष्टमी के अवसर पर मुंबई में हुआ था।

Maharaja Martand Singh Rule Tenure | रीवा के शासक के तौर पर

Maharaja Martand Singh Ne Rewa Mei Kitne Saal Raj Kiya | रीवा के तत्कालीन महाराज गुलाब सिंह ने रीवा में गांधी से प्रभावित होकर, कई सामाजिक और राजनैतिक सुधार के कार्य किए थे, जिसके बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा था, उनके संबंध ब्रिटिश सरकार से बिगड़ते गए, जिसके बाद उनके संबंध बिगड़ते ही गए और जनवरी 1946 में उन्हें राजच्युत कर दिया गया, जिसके बाद उनके पुत्र मार्तंड सिंह को 31 जनवरी 1946 को रीवा का शासक बनाया गया।

6 फरवरी 1946 को बसंत पंचमी के अवसर पर उनका राजतिलक रीवा किले के राघव महल में हुआ और 1 अप्रैल 1946 को उन्हें असिस्टैंट गवर्नर जनरल द्वारा राज्याधिकार का खरीता प्राप्त हुआ है। शासक बनने के बाद उन्होंने राज्य की सरकार जनता के माध्यम से संवैधानिक सुधारों के द्वारा चलाने की घोषणा की, इसके अलावा उनका नीजी व्यय राजकीय बजट से अलग होगा इसकी भी घोषणा की गई। इसके अलावा उन्होंने सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर की अध्यक्षता में रीवा राज्य का संविधान बनाने की भी घोषणा की, हालांकि सर अय्यर की व्यस्तताओं के बाद सर हरि सिंह गौड़ की अध्यक्षता में, रीवा के संविधान समिति का गठन किया गया।

1946 में रीवा राज्य हुआ था जनता के आधीन, 1947 में लागू हुआ संविधान, 1948 में बना विंध्य और 1956 में फिर मप्र

देश की आजादी के बाद रीवा उन प्रारंभिक रियासतों में थी, जिसने भारतीय संघ में मिलने की घोषणा की थी, देश की आजादी के बाद बघेलखंड और बुंदेलखंड के रियासतों को मिलाकर एक नया राज्य विंध्यप्रदेश बना, जिसका राजप्रमुख (गवर्नर ) महाराज मार्तंड सिंह को ही बनाया गया।

Maharaja Martand Singh Works | राजशाही से लोकशाही की ओर

देस की आजादी के बाद रियासतें तो खतम हो गईं, पर राजा महाराजाओं को कई विशेष सुविधाएँ और प्रिवी पर्स मिलता था, जिसे तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1971 में संविधान के 26 वें संशोधन द्वारा समाप्त कर दिया, जिसके बाद कई पूर्व राजघरानों के सदस्यों ने कांग्रेस के विरुद्ध अपनी राजनैतिक पारियों की शुरुआत की, जिनमें से रीवा से महाराज मार्तंड सिंह भी थे, उन्होंने 1971 का लोकसभा चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार और विंध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, पंडित शंभूनाथ शुक्ल को हराया, लेकिन 1977 में वह रीवा लोकसभा सीट से जनता पार्टी के यमुना प्रसाद शास्त्री से चुनाव हार गए, जिसका प्रमुख कारण कांग्रेस पार्टी द्वारा महाराज मार्तंड सिंह को समर्थन दिया गया था, आपातकाल के कारण इंदिरा गांधी और कांग्रेस के विरुद्ध लहर थी, जिसके कारण वह बहुत कम मतों से यह चुनाव हार गए, लेकिन 1980 और 1984 में वह कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर फिर से रीवा के सांसद बने।

जनहितैषी कार्य

महाराज मार्तंड सिंह का यहाँ की जनता से बेहद लगाव था, देश की आज़ादी के बाद उन्होंने रीवा, सतना, उमरिया, चित्रकूट, प्रयागराज और बनारस में अपनी कई सारी जमीने और संपत्ति सरकारों को स्कूल, कॉलेज और हॉस्पिटल के बनाने को दे दिया। प्रदेश का एकमात्र सैनिक स्कूल रीवा में स्थापित हुआ, जिसमें महाराज मार्तंड सिंह का विशेष प्रयास और योगदान था, उन्होंने युवराज भवन और उसी से लगी करीब 275 एकड़ जमीन भारत सरकार को सैनिक स्कूल बनाने के लिए दे दिया। इसके अलावा रीवा सतना के बीच रेलवे लाइन के निर्माण में उनकी प्रमुख भूमिका थी। उन्होंने इसके अलावा भी कई सड़कों और पुलों इत्यादि का निर्माण करवाया, मार्तंड सिंह अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे, जिसके कारण वह बेहद लोकप्रिय थे और यहाँ की जनता को उनसे बेहद लगाव था।

वन्यजीव संरक्षण के प्रयास

लेकिन मार्तंड सिंह को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली वन्यजीव संरक्षण और सफ़ेद बाघों के संवर्धन के लिए, दरसल 1971 तक अर्थात प्रिवी पर्स के खत्म होने से पहले तक यहाँ राजा-महाराजाओं को शिकार खेलने का अधिकार प्राप्त था, तब तक वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भी लागू नहीं हुआ था। इसीलिए यहाँ धड़ल्ले से शिकार किए जाते थे, महाराज खुद कुशल शिकारी थे, लेकिन वह उन प्रारंभिक लोगों में शामिल थे, जिन्होंने पहले-पहल ही भारत सरकार से शिकार पर रोक लगाने की मांग की थी, वह 1967-68 से ही बांधवगढ़ के जंगलों को राष्ट्रीय उद्यान बनाने और बाघों के लिए संरक्षित करने के प्रयास किया था। दरसल बांधवगढ़ का क्षेत्र रीवा के राजाओं का शिकारगाह माना जाता था।’

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सफेद बाघों को संवर्धित कर उसे विश्वभर में दिलाई पहचान

चूंकि विंध्यक्षेत्र और यहाँ के जंगल बाघों के लिए मुफीद माने जाते थे, इसिलिए कई ब्रिटिश विद्वानों ने इसे टाइगर लेयर भी कहा है, वैसे तो इतिहास में कई बार सफेद बाघों को देखे जाने का जिक्र हुआ है, संभवतः शिकार भी हुए। लेकिन फिर भी यह फ़साना ही बना रहा, लेकिन एक व्यक्ति के अथक प्रयासों से यह हकीकत बना और दुनिया सफेद बाघों को देख पाई, यह व्यक्ति थे महाराज मार्तंड सिंह, दरसल 1951 की बात है, महाराज मार्तंड सिंह के ननिहाल जोधपुर से उनके पारिवारिक सदस्य आए थे, उनके सम्मान के लिए परंपरा अनुसार हाका किया लगाया गया, यह हाका सीधी जिले के बरगड़ी के जंगल में लगाया गया था।

उसी दौरान महाराज को शिकार के वक्त एक बाघिन तीन शावकों के साथ दिखी, जिसमें एक सफ़ेद रंग का था, महाराज ने अपने हाका दल के सभी लोगों को आगाह किया कि शावक को जिंदा पकड़ना है, और उसे पकड़ा भी गया जिसे महाराज ने गोविंदगढ़ के किले में रखा, और उसका नाम मोहन रखा, उसके बाद महाराज ने उसके वंशवृद्धि के बहुत सारे प्रयास किये, कई बार असफल होने के बाद आखिर में उन्हें सफलता मिली, और सुकेशी नाम की बाघिन से उसकी वंशवृद्धि हुई, आज विश्वभर के सभी सफेद बाघ मोहन के ही वंशज हैं।

लोग बताते हैं मोहन को महाराज से इतना लगाव हो गया था, कि जब तक वह उन्हें देखे ना खाना नही खाता था, शायद यही वजहें बनी होंगी कि आगे चलकर उन्होंने शिकार करना बंद और बाघों और वन्यजीवों के संरक्षण का प्रयास करने लगे। 1968 में उन्हें सफलता मिली जब भारत सरकार वन्यजीव संरक्षण कानून लागू किया, जिसके बाद वनों में शिकार इत्यादि पर पाबंदी लग गई, भारत में शिकार के कारण बाघों की आबादी निरंतर घट रही थी, जो लगातार बढ़ने लगे, विशेषतः मध्यप्रदेश को बाद में टाइगर स्टेट का भी दर्जा मिला, भारत में सबसे ज्यादा बाघ मध्यप्रदेश में मिलते हैं और बाघों का सर्वाधिक घनत्व बांधवगढ़ में है।

Maharaja Martand Singh Awards | पुरस्कार और सम्मान

बाघों और वन्यजीवों के संरक्षण और अथक प्रयासों के कारण ही भारत सरकार ने उन्हें 1986 में देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया, मध्यप्रदेश सरकार ने भी सतना मुककुंदपुर स्थित व्हाइट टाइगर सफारी और जू का नाम महाराज मार्तंड सिंह के नाम पर ही रखा। 20 नवंबर 1995 को एक लंबी बीमारी के बाद महाराज मार्तंड सिंह का निधन हो गया।

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