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जानें क्या है लोक अदालत (Lok Adalat)

Lok Adalat

Lok Adalat

देश में बढ़ते अपराधों के कारण अदालतों में मुकदमो की बाढ़ आने के कारण अदालतें तारीख पर तारीख देने पर मजबूर हो रहीं थीं। देश की जनता अदालतों की जटिल प्रक्रिया में उलझकर अपने कीमती समय और पैसों की बर्बादी करने पर मजबूर होती है। इसी बात को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. एन. भगवती (P. N . Bhagwati) ने सर्वप्रथम 1982 में लोक अदालत का विचार प्रस्तुत किया था। पहली लोक अदालत का आयोजन 1982 में गुजरात में किया गया था।

क्या हैं लोक अदालत (People’s Court)

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ‘लोक अदालत’ मतलब लोगों की अदालत, जहाँ आपसी समझ और सुलह से मामलों का निपटारा किया जाता है। लोक अदालत एक ऐसा मंच होता है जहाँ कोर्ट में लंबित मुक़दमे या कोर्ट में दाखिल नहीं किये गए मामलों का निपटारा सौहाद्रपूर्ण तरीके से किया जाता है। लोक अदालत गाँधीवादी सिद्धांतों पर आधारित हैं। प्राचीन समय मे भी विवाद इसी प्रकार से लोक अदालत में आपसी समझौतों द्वारा सुलझाए जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भी इनकी वैधता बरक़रार है। बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए ‘विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम’ 1987 के तहत लोक अदालतों को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।

लोक अदालत का क्षेत्राधिकार

लोक अदालतों का लाभ

लोक अदालतों के कारण आम जनता को निःशुल्क तथा त्वरित न्याय मिलता है। लोक अदालतों से भारत की न्यायिक प्रक्रिया को नया जीवन मिला है। प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था को आधार बना कर लोक अदालत गरीब तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं।

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