Lalgudi Death Anniversary | About Lalgudi Jayraman In Hindi | न्याज़िया बेगम-: कुछ ऐसे संगीतकार हैं जिनकी पहचान के लिए भाषाओं की सीमाएं या बंधन नहीं हैं। ख़ास कर वादन में उन्हें तो केवल संगीत के सुर पहचानने थे। और उसमें उन्होंने महारत हासिल कर ली इन संगीतज्ञों का मानना था कि संगीत की कोई सीमा है ही नहीं। ये तो बस कर्णप्रिय होके ही फैल जाता है इसे अंतर्मन महसूस करता जिसमें भावनाएं होती हैं और सबकी एक जैसी ही ऊंचे नीचे स्वरों में वर्णित होती है। कुछ इसी तरह संगीत को परिभाषित करने वाले संगीतकारों में से एक थे वायलिन वादक और गायक लालगुड़ी जयरमण जिन्होंने ‘तेलुगू’, ‘तमिल’, ‘कन्नड़’ और ‘संस्कृत भाषाओं की कई संगीत प्रस्तुतियों में वायलिन का दम दिखाया है।
12 बरस की उमर में किया अपनी कला का प्रदर्शन | Lalgudi Death Anniversary
17 सितम्बर, 1930 को चेन्नई (तमिलनाडु) के महान संत संगीतकार त्यागराज के वंश में जन्में लालगुड़ी जयरमण अय्यर बचपन से संगीत में बहुत रुचि रखते थे शायद वो इसलिए कि वो इनके आस पास गूंजता था फिर कुछ बड़े हुए तो पिता गोपाल अय्यर , वी . आर.ने उन्हें बड़ी शिद्दत से वायलिन वादन और संगीत सिखाया जिसे लाल गुड़ी जी ने भी ऐसे आत्म सात किया कि महज़ 12 बरस की उम्र में उन्होंने स्टेज परफॉर्मेंस देना शुरू कर दिया ।
नई परंपरा का किया सूत्रपात | Lalgudi Death Anniversary
धीरे -धीरे उन्होंने अपने वादन की पूरी तरह अलग ही शैली और तकनीक को विकसित कर लिया। जो किसी भी गायक के हिसाब से ढल जाती और शास्त्रीय संगीत के मापदंडों के अनुसार भी अनुकूल थी। हां ऐसी अद्वितीय शैली थी उनकी
जिसे ‘लालगुडी बानी’ के रूप में जाना जाता है। इनकी सिद्ध और आकर्षक शैली, सुंदर और मौलिक थी जो कि पारंपरिक शैली से अलग नहीं थीं। इसलिए उनके प्रशंसकों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही गई।
लालगुड़ी जी को कई कृतियों जैसे ‘तिलानस’, ‘वरनम’ और नृत्य रचना के निर्माण का श्रेय भी दिया गया, जिसमें राग, भाव, ताल और गीतात्मक सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। वायलिन में भी उन्होंने वो पेश किया जिसकी श्रोताओं को तलाश थी उनकी रचनाओं में भी ऐसी ही स्वर लहरियां थी।
वायलिन को दिलाई राष्ट्रीय स्तर पर पहचान | Lalgudi Death Anniversary
यूं तो वायलिन कर्नाटक संगीत का वाद्य है लेकिन लालगुड़ी जी ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने साल 1996 में वायलिन, वीणा और वेणु यानी बांसुरी की धुन को जोड़कर ऐसा कार्यक्रम प्रस्तुत किया कि एक नए चलन का आग़ाज़ हो गया।
लालगुड़ी की उपलब्धियां | Lalgudi Death Anniversary
कुछ और उपलब्धियों का ज़िक्र करें तो उसकी भी फेहरिस्त लंबी है- भारत सरकार ने इन्हें भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य के रूप में रूस भेजा था। साल 1965 में एडिनबर्ग त्योहार पर प्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन आपकी तकनीक से इतना प्रभावित हुए कि आपको अपना इतालवी वायलिन भेंट कर दिया था। फिर वर्ष 1979 के दौरान इनकी नई दिल्ली आकाशवाणी में हुए रिकॉर्डिंग को अंतर्राष्ट्रीय संगीत परिषद्, बगदाद, एशियाई पैसिफिक रोस्ट्रम और इराक प्रसारण एजेंसी ने विभिन्न देशों से प्राप्त 77 प्रविष्टियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया था। भारत सरकार ने अमेरिका एवं लंदन में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए आपको चुना और इन्होंने लंदन में ‘एकल’ के साथ ‘जुगलबंदी’ कंसर्ट पेश किया, जिसकी काफी प्रशंसा की गई थी।
लालगुड़ी को मिले पुरस्कार और सम्मान | Lalgudi Death Anniversary
भारती सोसायटी ,न्यूयॉर्क ने आपको वर्ष 1971 में ‘विद्या संगीत कलारत्न’ से सम्मानित किया। वर्ष 1972 में इन्हें भारत सरकार ने अपने नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। आपको ईस्ट वेस्ट एक्सचेंज (न्यूयॉर्क) ने‘नाद विद्या रत्नाकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 1994 में आपको मैरीलैंड (अमेरिका) की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी। वर्ष 2001 में आपको भारत सरकार द्वारा अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया। आपने साल 2006 में फिल्म ‘श्रीनगरम’ में बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्शन के लिए ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ भी जीता। कर्नाटक की ओर से ‘फर्स्ट चौदइया मेमोरिएल-लेवल पुरस्कार’ भी दिया गया। वर्ष 2010 में इन्हें संगीत नाटक अकादमी का सदस्य भी बनाया गया।
लालगुड़ी की मृत्यु | Lalgudi Death Anniversary
वो अंतिम सांस तक अपनी कला के प्रति समर्पित रहे और अपने परिवार के साथ शागिर्दों को भी अपने पद चिन्ह देकर
22 अप्रैल, 2013 को वायलिन वादक लाल गुड़ी अपनी अंतिम यात्रा पर चले गए लेकिन पीछे छोड़ गए संगीत की वृहद पाठशाला और शायद उसी का अध्ययन करके उनकी भतीजी जयंती कुमारेश ने वीणा वादन में महारत हासिल की है।