Kovidar Tree In Rewa | रीवा में है अयोध्या के धर्मध्वज की पहचान कोविदार वृक्ष

Kovidar Tree in Rewa: अयोध्या धर्मध्वज का प्रतीक कोविदार वृक्ष

Kovidar Tree In Rewa: अयोध्या में मंदिर निर्माण और श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के 673 दिन बाद, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, अभिजीत मुहूर्त में श्रीराम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज का आरोहण कर दिया, और इसके साथ ही सदियों की प्रतीक्षा के बाद, यह तारीख देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से दर्ज हो गई। साथ ही मंदिर का पूरा परिसर जय श्री राम के नारों से गूंज उठा।

क्या है धर्मध्वज

धर्मध्वज पर कोविदार वृक्ष और सूर्य देव का अंकन हैं। दरसल कोविदार वृक्ष का अंकन अयोध्या के राजकीय ध्वज में भी था, जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में कई जगह हुआ है। कथा है जब भरत अपनी सेना और आयोध्या वासियों के साथ प्रभु श्रीराम को मनाने चित्रकूट आ रहे थे, तब लक्ष्मण ने धर्मध्वजा देखकर इसे दूर से ही पहचान लिया था कि अयोध्या की सेना आ रही है, क्योंकि इसमें कोविदार वृक्ष का अंकन था।

श्रीराम का विंध्य से गहरा नाता

वैसे तो विंध्य का प्रभु श्रीराम से संबंध अत्यंत गहरा, आत्मीय और भावनात्मक रहा है। श्रीराम तो विंध्य की लोकसंस्कृति का आधार हैं, प्रभु ने अपने वनवास के दस वर्षों से भी अधिक समय विंध्य की गोद में व्यतीत किया, यहाँ की पहाड़ियों, नदियों, और अरण्यों ने राम, सीता और लक्ष्मण के अनगिनत पदचिन्ह सँजोए हैं। लेकिन साथ ही यहाँ पाए जाने वाले कोविदार वृक्ष ने श्रीराम और विंध्य के इस संबंध को एक और प्रमाणिक आधार प्रदान किया है।

रीवा में है अयोध्या के धर्मध्वज की पहचान कोविदार वृक्ष | Kovidar Tree In Rewa

आपको बता दें कि यह कोविदार वृक्ष रीवा के कॉलेज चौराहे के पास विवेकानंद पार्क में भी स्थित है। हमारे शब्द सांची की टीम ने ललित मिश्र जी के सहयोग से इस वृक्ष की खोज की और इसका एक छोटा सा वीडियो तैयार किया।

महर्षि कश्यप ने किया था विकसित

मान्यता है कोविदार प्राचीनकाल का पहला हाइब्रिड वृक्ष था, जिसे महर्षि कश्यप ने पारिजात और मंदार को मिलाकर विकसित किया था। अक्सर कई लोग भ्रमवश कचनार वृक्ष को कोविदार समझने की भूल कर बैठते हैं, लेकिन दोनों अलग-अलग वृक्ष हैं। दरसल कोविदार की पहचान इसके तने और पत्तियों से आसानी से की जा सकती है।

कोविदार वृक्ष की पहचान

इसके पत्ते, दो पत्तियों के युग्म से मिलकर बनी होती हैं, जो किसी दोने की आकृति जैसी दिखाई देती हैं। पत्तियों के बाद इसके तने से भी इसकी पहचान संभव है, वहीं अगर इसके पुष्प की बात करें तो कश्यप ऋषि के अनुसार इसके फूलों में गुलाबी आभा के साथ मंदार की नीलिमा मिश्रित रहती है, जिससे संपूर्ण पुष्प बैंगनी रंग का दिखाई पड़ता है। इसकी उत्पत्ति की पौराणिक कहानी और प्राचीन समय में अयोध्या के राजकीय ध्वज में इसके अंकन के कारण, यह दिव्यता और शुभता के साथ ही भारतीय संस्कृति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसीलिए इसे श्रीराम मंदिर के धर्मध्वज में पुनः अंकित किया गया है।

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