न्याज़िया
मंथन। अक्सर जब हम बेवक़्त या मजबूरी के चलते काम की तलाश में निकलते हैं तो हम खुद को ही अधूरे से लगते हैं ये लगता है कि अभी तो हमसे कुछ अच्छे से नहीं आता अभी हमें क्या काम मिलेगा लेकिन हम भूल जाते हैं कि अगर हम मेहनत कश इंसान हैं तो हमारे लिए काम की कमी नहीं है और काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता फिर हमारी मेहनत और लगन ही हमें नीचे से ऊपर की तरफ ले जाती है।
खुद को पहचाने
बस याद रखना ये ज़रूरी है कि आज हम जिस दौर में जी रहे हैं उसमें हर हाथ के लिए काम की कमी नहीं है ,हुनर से ज़्यादा ज़रूरी है कि हमारे पास काम करने की चाहत हो क्योंकि कुछ नहीं तो वो बुनियादी काम जो हम रोज़ करते हैं जैसे – कुछ चीजें छांट लेना ,कैंची चला लेना, मिक्सर जैसी कोई छोटी मोटी मशीन चला लेना ,कोई ठप्पा लगा देना, जिन्हें हम दैनिक जीवन से जुड़ी गतिविधियां मान सकते हैं या सुनने में कुछ अटपटा सा लगने वाला काम भी आपकी खूबी हो सकता हैं, उसे पहचाने ,कुछ ऐसे ही काम हमें फैक्ट्री या कारखानों में भी मिल जाते हैं, जिनके ज़रिए हमें रोज़गार मिल जाता है।
हमें क्या पसंद है ये तो जान ही लें
हां लेकिन अगर हम रोज़गार चुनते वक़्त थोड़ा बहुत अपनी क्षमता या पसंद न पसंद को ध्यान में रख लें तो जो भी काम हम करने जा रहे हैं उसमें हमारा मन लगेगा ,वो काम हम जल्दी सीख भी जाएंगे और कुछ ही समय में पारंगत भी हो जाएंगे क्योंकि जहां बड़े पैमाने में काम होता है किसी उत्पाद का निर्माण होता है उसमें वर्कर सिर्फ एक-एक कड़ी को तैयार करते हैं, जो जुड़ती जाती हैं और आख़िर में कोई प्रोडक्ट बन कर तैयार होता है कहने का मतलब ये है इस निर्माण प्रक्रिया में हम जिस भी लायक हैं उस तरह से अपनी भागीदारी देते हैं और कई लोगों की मेहनत के बाद कोई काम अंजाम तक पहुंचता है।
खुद को निपुण बनाना जरूरी है
आखिर में शायद हम ये कह सकते हैं कि अगर हम अपना काम पूरी लगन से करें तो हम अपने काम में इतने दक्ष हो सकते हैं कि हमारे काम की मांग बढ़ जाए ,हमारी क़द्र हो और एक दिन हम बुंलदियों पर पहुंच जाएं इसलिए निराश कभी मत हों खुद पर भरोसा रखे आगे बढ़ते हुए खुद को तराशते जाएं, क्योंकि हमारा काम ही हमारी पहचान होता है फिर बेहतर से बेहतर की तलाश जारी रखें यही सफलता का मंत्र हैं। ग़ौर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।