Bhupinder Singh Death Anniversary | करोगे याद तो हर बात याद आएगी

Bhupinder Singh Death Anniversary | न्याज़िया बेगम: वो संजीदगी वो सादगी वो सुरीलापन, ज़माने से बिल्कुल जुदा ही था भूपेंद्र सिंह की आवाज़ का रंग, याद न आए तो याद करो वो सदा देने का ढंग, खुद बखुद हो लोगे उनके गीतों के संग, होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा, फिल्म हक़ीक़त का गीत, मोहम्मद रफी के साथ फिल्म जीने की राह (1969) में “आने से उसके आये बहार”, मोहम्मद रफी के साथ फिल्म धरम कांटा (1982) से “दुनिया छूटे यार ना छूटे”, आशा भोसले के साथ फिल्म ऐतबार (1985) का गाना “किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है”, आशा भोसले के साथ फिल्म ऐतबार (1985) से “आवाज़ दी है आज एक नज़र ने”, लता मंगेशकर के साथ फिल्म सितारा (1980) का “थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमान”, “गुलाब जिस्म का” फिल्म अंजुमन (1986), “बीती ना बीती रैना” फिल्म परिचय (1972), “दिल ढूंढता है” फ़िल्म मौसम (1975), “एक अकेला इस शहर में” घरौंदा का गीत, “दारो दीवार पे, खुश रहो अहले वतन आंदोलन के गीत (1977), “हुज़ूर इस क़दर भी न इतरा के चलिए”, फिल्म मासूम से, “होठों पे ऐसी बात” ज्वेल थीफ़ (1967) से गीत में लता मंगेशकर के साथ जिसे सुनकर यूं लगता है कि भूपेंद्र की आवाज़ लता मंगेशकर की आवाज़ में मिलकर चार चांद लगा रही है इस गीत में।

Bhupinder Singh Death Anniversary

फिल्म सत्या (1998) से “बादलों से काट-काट के”, फिल्म बाज़ार (1982) से “करोगे याद तो हर बात याद आएगी”, फिल्मआहिस्ता आहिस्ता (1981) से “कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता”। फिल्म आखिरी खत से “रुत जवान जवान”
“ज़िंदगी ज़िंदगी मेरे घर आना”, फिल्म दूरियां (1979), “सूरजमुखी तेरा प्यार अनोखा है”, फिल्म “सूरज मुखी” (1992), गीत
इन गीतों में वो आवाज़ है जो और गायकों से बिल्कुल जुदा है, और बहुत सरल सहज सी लगती है पर अपना आकर्षण बनाए रहती है।

पिता ने बड़ी मुश्किल से सिखाया संगीत

अमृतसर, पंजाब में 6 फरवरी 1940 को नत्था सिंह जी के घर पैदा हुए भुपेंद्र सिंह के पिता खुद एक संगीतकार थे और भूपिंदर के लिए एक स्ट्रिक्ट टीचर भी, जिससे एक समय ऐसा भी आया, जब उन्हें संगीत और उसके वाद्ययंत्रों से बड़ी नफरत हो गई थी, पर जल्द ही संगीत ने उन्हें और उन्होंने संगीत को अपना सच्चा साथी बना लिया और वो एक भारतीय संगीतकार, ग़ज़ल गायक और एक बॉलीवुड पार्श्व गायक बन कर संगीत जगत में उभरे।

आकाशवाणी से की कैरियर की शुरुआत

भूपेंद्र सिंह ने अपने करियर की शुरुआत सतीश भाटिया के निर्देशन में ऑल इंडिया रेडियो के लिए एक आकस्मिक कलाकार के रूप में की। उन्होंने दूरदर्शन केंद्र, नई दिल्ली में भी काम किया फिर गिटार बजाना भी सीखा। 1962 में, संगीत निर्देशक मदन मोहन ने उनके सम्मान में सतीश भाटिया द्वारा आयोजित रात्रिभोज में उन्हें सुना, सतीश भाटिया आकाशवाणी दिल्ली में निर्माता थे और सिंह उनके अधीन गिटारवादक के रूप में काम कर रहे थे और फिर उन्हें बॉम्बे बुलाया।

चेतन आनंद की फिल्म से मिली प्रसिद्धि

चेतन आनंद की फिल्म हक़ीक़त में मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे के साथ, होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा गाना गाने का मौका दिया गया। फिल्म आखिरी खत में खय्याम ने उन्हें सोलो गाना दिया था क्योंकि पार्श्वगायन में सिंह की आवाज़ सबसे अनोखी लगी, फिर उन्होंने किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी के साथ कुछ लोकप्रिय युगल गीत गाए हैं। इसके बाद, भूपिंदर सिंह ने अपने निजी एल्बम्स में गाना, गाना शुरू कर दिया, जिसमें उनके पहले एलपी में तीन स्व-रचित गाने थे जो 1968 में आया था, ग़ज़लों का दूसरा एलपी, जिसमें उन्होंने स्पेनिश गिटार, बास और ड्रम को ग़ज़ल शैली में पेश किया, 1978 में रिलीज़ किया और उनका तीसरा एलपी था, ‘वो जो शायर था’ जिसके लिए गीत 1980 में गुलज़ार ने लिखे थे।

बांग्लादेशी गायिका के साथ की थी शादी

बांग्लादेशी गायिका मिताली जी के साथ, विवाह बंधन में बंधने के बाद, उन्होंने 1980 के दशक के मध्य में पार्श्व गायन बंद कर दिया और कई एल्बमों और लाइव संगीत कार्यक्रमों के लिए संयुक्त रूप से गाना शुरू कर दिया। दोनों ने मिलकर कई ग़ज़ल और गीत के कैसेट बनाये। उनके कुछ और मशहूर गीतों को हम याद करना चाहे तो, हमारे ज़हन में फौरन दस्तक देते हैं :-
“करोगे याद तो”, “थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमान”, “मीठे बोल बोले कोयलिया”, “कभी किसी को मुकम्मल” और “एक अकेला इस शहर में”।

फिल्मों के सुपरहिट गीत

उनकी आवाज़ में, राजेश खन्ना पर फिल्माया गाना, दुनिया छुटे यार ना टूटे, बेहद पसंद किया गया। आरडी बर्मन ने उनसे, रात बनूं मैं गीत बनो तुम, नाम गुम जाएगा, कहिये कहां से आना हुआ और बीते ना बिताई रैना, जैसे गाने गवाए जिनसे वो मौसिक़ी की दुनिया में मशहूर हो गए। गिटारवादक के रूप में, उन्होंने जिन गीतों के संगीत में अपना योगदान दिया वो थे-

दम मारो दम का “हरे राम हरे कृष्णा” के गीत द्वारा, वादियां मेरा दामन (अभिलाषा), चुरा लिया है ( यादों की बारात ), चिंगारी कोई भड़के(अमर प्रेम ), बप्पी लाहिड़ी द्वारा रचित महबूबा ओ महबूबा ( शोले ), अम्बर की एक पाक सुराही (कादम्बरी), उस्ताद विलायत खान ने रचा था और तुम जो मिल गए हो (हंसते ज़ख्म), फिल्म के गीत में।

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

82 वर्ष की उम्र में, भूपिंदर सिंह 18 जुलाई 2022 को हृदय गति रुकने की वजह से इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए पर अपने चाहने वालों के दिलों में अपनी दिलनशीं आवाज़ और गीतों के ज़रिए वो हमेशा जावेदाँ रहेंगे, हमारा दिल हमेशा उनका शुक्रगुज़ार रहेगा,उनके बेमिसाल नग़्मों के लिए ।

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