KARVA CHAUTH 2025 VRAT KATHA : करवा चौथ कथाओं में प्रमुख सती करवा माता की कहानी – भारतीय संस्कृति में नारी की आस्था, प्रेम और त्याग का प्रतीक पर्व है करवा चौथ। यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि वैवाहिक प्रेम का ऐसा उत्सव है जिसमें पत्नी अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करते हुए पूरा दिन निर्जला उपवास रखती है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में विशेष रूप से मनाया जाता है। करवा चौथ के इस पर्व के पीछे कई लोककथाएं प्रचलित हैं, लेकिन इनमें से यह कथा सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं करवा और मगरमच्छ की कथा तथा वीरावती की कथा। यह कहानी नारी की दृढ़ श्रद्धा, प्रेम और संकल्प की मिसाल पेश करती हैं।
करवा चौथ में कही व सुनी जाने वाली सती करवा माता की अमर कहानी – KARVA CHAUTH 2025 VRAT KATHA
बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में कुम्हार परिवार में करवा नामक एक सती-साध्वी महिला रहती थी। वह अपने पति के प्रति अत्यंत समर्पित और धर्मनिष्ठा से युक्त थी। करवा का पति भी उसे बहुत प्रेम करता था और दोनों का जीवन आपसी विश्वास और स्नेह से भरा था दोनों मिलजुलकर मिटटी के बर्तन बनाने का काम करते और ख़ुशी – ख़ुशी अपना जीवन यापन कर रहे थे । एक दिन करवा और उस का पति तुंगभद्रा नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय अचानक एक भयानक मगरमच्छ ने उसके पैर को पकड़ लिया और पानी में खींचने लगा। पति के प्राण संकट में देखकर करवा घबराई नहीं, बल्कि तुरंत नदी के किनारे दौड़ी और अपनी दृढ़ निश्चय शक्ति से मगरमच्छ पर धागा बांध दिया। करवा अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कच्चे सूत के धागे से मगरमच्छ को बांधकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने प्रार्थना की, “हे यमराज- मेरे पति का जीवन बचा लीजिए, यह मगरमच्छ पापी है जिसने निर्दोष व्यक्ति पर आक्रमण किया है ”तब यमराज ने शांत स्वर में कहा हे“देवी – मगरमच्छ की आयु अभी शेष है और तुम्हारे पति का जीवनकाल पूरा हो चुका है। मैं मृत्यु के नियम नहीं तोड़ सकता” – यह सुनकर करवा का हृदय द्रवित नहीं हुआ बल्कि उसकी भक्ति और दृढ़ता और भी प्रबल हो उठी। उसने क्रोधपूर्वक कहा “यदि मेरे पति के प्राण नहीं बचाए तो मैं तुम्हें अपने श्राप से भस्म कर दूंगी, मैं सती स्त्री हूं मैं अपनी सच्ची भक्ति से तुम्हारे इस शक्तिशाली यमलोक को कंपकंपा दूंगी” । करवा के अटूट साहस और पतिव्रता निष्ठा को देखकर यमराज भयभीत हो गए। उन्होंने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु का वरदान दे दिया। उस दिन से करवा का नाम अमर हो गया और उसकी भक्ति की स्मृति में ‘करवा चौथ’ का व्रत प्रारंभ हुआ, जिसे पतिव्रता स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। यह कथा बताती है कि सच्चे प्रेम और विश्वास से ईश्वर को भी झुकाया जा सकता है। करवा का साहस, नारी की अटूट श्रद्धा और भक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह पर्व हर स्त्री को प्रेरित करता है कि वह अपने संबंधों में निष्ठा और समर्पण की भावना बनाए रखे।

करवा चौथ की सामाजिक और धार्मिक महत्ता
करवा चौथ का व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि स्त्री की शक्ति और प्रेम की अभिव्यक्ति है। तभी से इस व्रत को महिलाएं इस व्रत के लिए एकजुट होकर पूजा करती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं, और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति की दीर्घायु का आशीर्वाद मांगती हैं। यह पर्व विवाह के बंधन को और मजबूत बनाता है, साथ ही परिवार में प्रेम, विश्वास और समर्पण की भावना को भी दृढ़ करता है। करवा चौथ का नाम ही इस पर्व के दो प्रमुख प्रतीकों से बना है ‘करवा’ यानी मिट्टी का घड़ा (जिसमें पानी रखा जाता है) और “चौथ” यानी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि। इस दिन महिलाऐं करवा में जल भरकर भगवान शिव, पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं।
विशेष – करवा चौथ की ये कथा – करवा और मगरमच्छ की कथा तथा करवा माता की कथा,नारी शक्ति, प्रेम और समर्पण की अनूठी मिसाल हैं। करवा की अडिग भक्ति ने मृत्यु के देवता यमराज को भी झुकने पर मजबूर कर दिया, जबकि वीरावती की आस्था ने मृत्यु से अपने पति को पुनर्जीवित कर दिया। ये कहानियाँ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि सच्चा प्रेम किसी भी परिस्थिति में अडिग रहता है। करवा चौथ का पर्व हमें यही सिखाता है कि जब आस्था सच्ची हो और नीयत पवित्र, तो असंभव भी संभव हो जाता है।