‘काला बाजार’ वह फिल्म जो शिक्षा के महत्व को बताती है

Kala Bazar Film Story Hindi Mein | न्याज़िया बेगम: फिल्म का नाम है काला बाज़ार, लेकिन कहानी है काले को सफेद बाज़ार बनाने की, जिसमें नायक रघुवीर यानी देव आनंद मजबूरी के चलते फंस जाता है, काले बाज़ार की गिरफ्त में, वो ऐसे की वो बस में कंडक्टर था मगर पैसों को लेकर किसी से बहस हो गई और बात इतनी बढ़ गई कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया। उस पर मां और बहन की ज़िम्मेदारी थी इसलिए परेशानी में उसने काला बाज़ारी करने के बारे में सोचा, लेकिन उसके लिए भी पहले पैसा लगाना पड़ता, तो उसने पहले एक बड़े वकील साहब यानी चेतन आनंद के, पैसे चुरा लिए फिर टिकट खरीदे और ब्लैक में बेचने लगा।

काला बाजार फिल्म की कहानी

वो भी इतनी होशियारी से कि देखते देखते उसका एक बड़ा गैंग तैयार हो गया जिन लोगों से उसने काला बाज़ारी करना सीखा था, उन्हें भी अपने साथ कर लिया जिसमें उसके कुछ दुश्मन भी बन गए। लेकिन उसका धंधा बढ़ता ही गया यहां फिल्म में एक सीन ऐसा है जो रघुवीर के दिमाग़ का कमाल तो दिखाता ही है। साथ ही इतना ज़बरदस्त है कि आप इसे देख कर भूल भी नहीं पाएंगे। ये सीन कुछ ऐसा है कि मदर इंडिया के प्रीमियर पर, जैसे-जैसे अधिक फिल्मी सितारे आते हैं, उनके टिकट तेज़ी से बिकने लगते हैं। उनमें दिलीप कुमार, गीता दत्त, गुरु दत्त, किशोर कुमार, राज कुमार, राजेंद्र कुमार, लता मंगेशकर, सोहराब मोदी, मोहम्मद रफी, नरगिस, नादिरा और निम्मी जैसे बड़े सितारे हमें दिखाई देते हैं। वहां मौजूद भीड़ के साथ हम भी इनकी चका चौंध में खो जाते हैं और उधर रघु 2 रुपए की क़ीमत वाला, अपना आख़री टिकट 100 रुपये में बेच लेता है, ये उसकी काला बाज़ारी की लाजवाब जीत होती है।


एक दिन उसकी मुलाक़ात नायिका अल्का यानी वहीदा रहमान से हुई जो झूठ फरेब के खिलाफ थी उसको देखकर उसे सच्चाई और ईमानदारी का मतलब समझ आया, हालांकि वो बहुत पढ़ी लिखी थी और नायक यानी रघु को किसी भी शब्द का मतलब समझने में भी वक़्त लगता था। लेकिन जब वो अल्का के विचारों को समझने की कोशिश करने लगा, तो उसने एक ग़रीब इंसान की ख़िदमत की और बदले में उससे सिर्फ ज्ञान मांगा जिससे उसे सच्चाई ईमानदारी जैसे शब्द भी समझ आने लगे। उसकी ज़िंदगी का मतलब उसे समझ में आया और उसने अपने साथ ग़लत काम में लगे सभी लोगों को सही रास्ता दिखाया, ये वो लोग थे जो फुटपाथों में पड़े थे कोई चोरी, काला बाज़ारी कर रहा था कोई कर चुका था और कोई ग़रीबी से परेशान था। तो उन्हें उन्हीं काला बाज़ारी के पैसों से एक बाज़ार, सफेद बाज़ार खड़ा कर के दिया, जिससे उन्हें ईमानदारी से ज़िंदगी गुज़ारने का मौक़ा मिला, रघु ख़ुद भी अब काले कोट से सफेद कुर्ते में आ गया था, जिन वकील साहब के पैसे चुराकर उसने कालाबाज़ार में लगाए थे, उन्हें भी पैसे वापस कर आया।

अब खुद को उसने अल्का के लायक बना लिया था, हालांकि जब उसने अल्का से अपने प्यार का इज़हार किया था, तो वो बता चुकी थी कि उसकी सगाई हो चुकी है और उसका मंगेतर बाहर पढ़ने गया है, जब वो आ जाएगा तब उनकी शादी हो जाएगी। जिस वजह से रघु ने उससे दूरी बना ली थीं। लेकिन एक दिन अल्का उसे दोबारा मिल जाती है अपने प्यार का इक़रार भी करती है। गीत – “रिमझिम के तराने लेके आई बरसात ….”


इसी बीच उसका मंगेतर नंद, वापस आ जाता है जिससे उसका वादा था कि वो दोनों अपने प्यार को पहले परखेंगे और अगर कुछ साल बाद भी उनका यही प्यार बरक़रार रहा तो वो शादी करेंगे तब तक वो दोनों आज़ाद हैं। इसी फैसले को याद करते हुए दोनों जब मिले तो दोनों के राज़ खुल गए कि नन्द कुमार ने भी दूसरी लड़की पसंद कर ली है और अल्का ने भी रघुवीर को पसंद कर लिया है। ख़ैर दोनों समझ गए कि उनका प्यार नहीं दोस्ती बस है, जो बचपने के चलते प्यार के मोह जाल में फंस रही थी।
फिर अल्का रघुवीर के पास लौट आई, ये गाना गाते हुए कि “सच हुए सपने मेरे …”, मगर तभी पुलिस आई और रघु को गिरफ्तार करके ले गई। जिसको रघु के काला बाज़ारी के दिनों के दुश्मन ने खबर दी थी, इस सदमे से की मां भी गुज़र गई।
रघु अल्का की नज़र से भी गिर गया, मगर फिर केस चला और अदालत में उसके सब साथियों ने उसके हक़ में गवाही दी, बिना इस बात की परवाह किए, कि वो भी तो इस झूठ बेइमानी के बाज़ार का हिस्सा रह चुके हैं और उनके भी राज़ खुल जायेगे और रघु ने उन्हें गवाही देने और इस बात का खुलासा करने के लिए साफ तौर मना किया है, क्योंकि पुलिस को उनकी भी तलाश है।


खैर मुकद्दमा बढ़ता जाता है सारे दोस्त भी सलाखों के पीछे हिरासत में चले जाते हैं, कुछ को अफसोस भी होता है कि उन्होंने गड़े मुर्दे क्यों उखाड़े, सफेद पोश होने के बाद अपने जुर्म अपनी ही ज़ुबान से क्यों क़ुबूल किए, जिसकी उन्हें सज़ा मिल रही है। लेकिन रघु ने तब भी उन्हें हिम्मत दी, ये कह कर कि अगर अपनी ग़लती को स्वीकार नहीं कर पाओगे, तो उसका प्राश्चित कैसे करोगे, कोर्ट भी हैरान थी कि ये कैसा मुजरिम है जिसने खुद तो सही रास्ता अपना ही लिया है। साथ ही इतने सारे लोगों को भी सही रास्ते पे ला दिया, ख़ैर आखिर में वही वकील साहब रघु की पैरवी करने आते हैं। जिनसे चुराए हुए पैसों को, सच्चाई की राह में चलने के बाद रघु लौटाने गया था और अपना जुर्म कबूल करते हुए खुद को पुलिस के हवाले करने को भी कहा था।

लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था और आज उसकी पैरवी करने भी आए जिनकी वजह से रघु को कम सज़ा मिली और वो इंसानियत, ईमानदारी और सच्चाई की मिसाल बन गया। ये सब जान कर अलका भी उस पर पहले से ज़्यादा फिदा हो गई उसे यक़ीन हो गया कि उसकी नजरें धोखा नहीं खा सकती उसने अपने लिए पत्थर नहीं हीरा ही चुना है।

नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले ये फिल्म रुपहले पर्दे पर जगमगाई 12 फरवरी सन 1960 में, जिसका निर्माण और निर्देशन किया था देव आनंद ने और कहानी लिखी थी देव जी के छोटे भाई विजय आनंद ने। साथ ही नायिका यानी वहीदा रहमान के मंगेतर नंद कुमार चट्टोपाध्याय की भूमिका भी निभाई थी। इनके अलावा फिल्म में अपने अभिनय से चार चांद लगाया था चेतन आनन्द, नन्दा, मदन पुरी, लीला चिटनिस, मुमताज़ बेग़म और हेलन ने।

काला बाजार फिल्म के गीत और संगीत

गानों की बात करें तो आज भी महबूब की नींद उड़ा देने का माद्दा रखता है गीत- खोया खोया चाँद खुला आसमाँ, आज़मा के देख लीजिएगा, इसे आवाज़ दी है मोहम्मद रफ़ी ने। “रिमझिम के तराने लेके आई बरसात” बरसात की फुहार में डूबी किसी से मुलाक़ात का मंज़र आंखों में खींच देता है, इसे गाया है मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त ने।
मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में “अपनी तो हर आह एक तूफान” आप सुन के देखिएगा, इस प्यार के तूफान के गुज़रने का इंतज़ार आपको भी हो जाएगा और आप फिल्म देखने को मजबूर हो सकते हैं।
सत्य के प्रकाश की अनुभूति कराता भजन है “ना मैं धन चाहूँ” स्वर हैं गीता दत्ता और सुधा मल्होत्रा के। प्यार की पुकार है गीत “साँझ ढली दिल की लगी” युगल स्वर हैं मन्ना डे, आशा भोंसले के। सिक्का उछाल कर पैसे की क़ीमत बताता है गाना
“तेरी धूम हर कहीं” जिसे गाया मोहम्मद रफ़ी ने। धिगी धिगी धिग ता, ता थय, के बोलों के साथ आपको झूमने पे विवश कर सकता है गीत “सच हुए सपने तेरे” जिसे गाया है आशा भोंसले ने।
कहानी को एक पायदान से दूसरे पायदान पर बख़ूबी पहुंचाते इन दिलनशीं नग़्मों को लिखा है गीतकार शैलेन्द्र ने। दिलकश धुनों में पिरोया है संगीत कार एस॰ डी॰ बर्मन ने।

तीनों भाइयों को साथ लाने वाली एक मात्र फिल्म

ये फिल्म कई सितारों की कैमियो भूमिका के लिए प्रसिद्ध हुई तो वहीं दूसरी तरफ तीनो आनंद भाइयों को एक साथ लाने वाली एकमात्र फिल्म भी बनी , “काला बाज़ार”।

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