Jhansi medical college Incident : उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू में शुक्रवार रात आग लग गई. इस दर्दनाक घटना में 10 बच्चों की मौत हो गई. इस दर्दनाक हादसे के बाद एनआईसीयू के बारे में भी जानना जरूरी है.
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आपको बता दे कि उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार की रात एक दर्दनाक हादसा हुआ है. मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू ( NICU) में आग लग गई. इस दर्दनाक घटना में आग की चपेट में आने से 10 बच्चों की मौत हो गई. झांसी के चीफ मेडिकल सुप्रीडेंटेंड के मुताबिक, एनआईसीयू में रखे ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर में आग लगी थी. जिससे ये पूरे वार्ड में फैल गई थी. फिलहाल इस घटना की जांच की जा रही है.
इस दर्दनाक हादसे के बाद एनआईसीयू के बारे में भी जानना जरूरी है. एनआईसीयू क्या होता है. इसमें ऑक्सीजन का क्या काम होता है. किन बच्चों का एनआईसीयू में इलाज किया जाता है. इस बारे में एक्सपर्ट से जानते हैं.
दिल्ली में क्रिटिकल केयर के डॉ. युद्धवीर सिंह बताते हैं कि कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनको जन्म के तुरंत बाद कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं. इन बच्चों की हालत गंभीर रहती है. ऐसे में इनकी जान बचाने के लिए बच्चों को एनआईसीयू में भर्ती करना पड़ता है. जैसे बड़े लोगों को सेहह बिगड़ने पर आईसीयू में एडमिट किया जाता है. ऐसे ही अस्पताल में बच्चों के लिए NICU होता है. इसको नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट कहते हैं.
एनआईसीयू में मुख्य तौर पर समय से पहले जन्म हुए बच्चे, रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस जैसे न्यूमोनिया- ब्रोंकाइटिस, कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज जैसे हार्ट फेल और हाई बीपी से पीड़ित बच्चों को भर्ती किया जाता है.
एनआईसीयू में इलाज कैसे होता है
डॉ सिंह बताते हैं कि एनआईसीयू मे बच्चों के लिए वेंटिलेटर सपोर्ट, ऑक्सीजन थेरेपी, इंक्यूबेटर और ऑपरेशन थिएटर भी होते हैं. किसी भी तरह की इमरजेंसी के लिए इलाज की सुविधाएं मौजूद होती हैं. जन्म के बाद अगर किसी बच्चे की हालत बिगड़ जाती है तो डॉक्टर की सलाह पर बच्चे को एनआईसीयू में भर्ती किया जाता है. इसमें भर्ती बच्चे ऑक्सीजन या फिर वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहते हैं. डॉक्टर बच्चों की नियमित जांच करते हैं. एनआईसीयू में कई तरह की मशीन होती हैं. जिनसे बच्चों की जांच की जाती है.
डॉ सिंह बताते हैं कि एनआईसीयू वार्ड में नियोनेटोलॉजिस्ट (नवजात शिशु विशेषज्ञ ) पीडियाट्रीशियन, नर्स रेस्पिरेटरी थेरेपिस्ट और डाइटीशियन होते हैं. यह अपने- अपने तरीके और बच्चे की स्थिति के हिसाब से उसका इलाज करते हैं. शिशु की स्थिति का मूल्यांकन किया जाता है और आवश्यक देखभाल की योजना बनाई जाती है. इसके लिए उसकी आवश्यक चिकित्सा और सर्जरी की जाती है. माता-पिता को शिशु की स्थिति के बारे में नियमित अपडेट दिया जाता है. बच्चे को जो बीमारी है उसको कंट्रोल किया जाता है और उसकी हालत को सुधारा जाता है. जब बच्चे की स्थिति सामान्य हो जाती है तो उसको एनआईसीयू से सामान्य वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है.
मेडिकल स्टॉफ को किन बातों का ध्यान रखना होता है
गौरतलब है कि एनआईसीयू की सभी मशीनें सही काम करें और इसमें कोई भी ऐसी मशीन न हो जो अपडेट न हो. एनआईसीयू में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है.
इसके अंदर माचिस या फिर ऐसे किसी अन्य चीज का यूज बैन होता है. एनआईसीयू में हमेशा बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण हो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है. अस्पताल प्रशासन यह सुनिश्चित करता है की एनआईसीयू केसभी इलेक्ट्रिकल उपकरण सही हों और किसी तरह के हादसे से निपटने के लिए पूरी योजना तैयार रहनी चाहिए.
यह भी देखें :https://youtu.be/OoE0uYntsQo?si=idOpIvC2iJVs6AR1