अच्छा होगा कि हम बर्दाश्त करना सीखे, धैर्य से काम लें

न्याज़िया
मंथन।
आपको क्या लगता है क्या ज़्यादा मुश्किल है ? किसी की बात का पलट के जबाब देना या सुन लेना, बर्दाश्त कर लेना और सब भूलकर सामान्य हो जाना, शायद आपमें से ज़्यादा लोगों की राय में सहना मुश्किल है पर क्यों ? क्योंकि हम खून के घूंट पी कर रह जाते हैं अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं पर ऐसा क्यों होता है इसकी वजह क्या है हो सकता है कि हम दिल से किसी को माफ नहीं कर पाते बस उसकी बातें भूलने की कोशिश करते हैं इसलिए ऐसा होता है। हां क्योंकि किसी को माफ करने के लिए बहुत बड़ा बनना पड़ता है जिसमें अपनी या सामने वाली की उम्र मायने नहीं रखती है , बहोत बड़ा मतलब विचारों से बड़ा इतना बड़ा कि हम सामने वाले कि मनोदशा का आकलन करके ये ज्ञात कर सकें कि उसने मुझे ऐसा कहा तो क्यों कहा और अगर हम ये जान जाते हैं तो शायद उससे नाराज़ होने ग़ुस्सा होने की बजाय उससे सहानुभूति ,हमदर्दी रखने लगे।

सॉरी कहने से हो जाते है नॉर्मल

पर जिसने आपको सुना लिया है ज़रूरी नहीं कि वो भी चैन से हो, हो सकता है आपसे इस तरह बात करने का उसे भी दुख हो गुस्से में आपको सुना लेने के बाद अब उसे अफसोस हो रहा हो ,ऐसा उस कंडीशन में भी हो सकता है जब आपने भी उसे बराबरी से सुना लिया हो जिसके बाद सब खत्म हो जाता है लौटने का कोई रास्ता नहीं बचता लेकिन जब हम जवाब नहीं देते तो लौटने का रास्ता बचता है, हमारा रिश्ता बच जाता है और जिसे भी पछतावा हो रहा है वो सॉरी कहने की कोशिश कर सकता है जिससे धीरे धीरे सब नॉर्मल हो जाता है। दूसरी तरफ अगर हम बराबरी से सामने वाले को भी सुना लेते हैं तो इस बात को चाह कर भी दोनों के लिए जल्दी भूलना आसान नहीं होता ग़लती किसी की भी हो एक्सेप्ट करना बहुत मुश्किल होता है वहीं अगर बिना ग़लती के कोई ख़ामोश है तो सामने वाले को अपनी ग़लती का एहसास जल्दी होता है।

बर्दाश्त करना सीखे

शायद अच्छा होगा कि हम बर्दाश्त करना सीखे ,थोड़ा धैर्य से काम लें ,सामने वाले की परेशानी को समझने की कोशिश करें।
ताकि हमें कभी इस बात का पछतावा न हों कि हमने किसी की बेइज़्ज़ती की है खुद को सही साबित करने के चक्कर में किसी का दिल दुखाया है, सोचिएगा ज़रूर इस बारे में फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में।

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