ना नीले रंग की होती है, ना गाय है, फिर क्यों कहते हैं नीलगाय

Everything About Nilgai In Hindi: भारतीय उपमहाद्वीप में कई तरह के जानवर पाए जाते हैं। कुछ हिंसक होते हैं और कुछ शांत प्रवृत्ति के होते हैं और कई कृषि और किसानों के लिए बहुत नुकसानदायक होते हैं। ऐसा ही जानवर है नीलगाय, जो जंगलों में नहीं बल्कि भारत के पठारी इलाकों में पाया जाता है। जो ना तो नीले रंग का होता है और ना ही गाय की प्रजाति का फिर भी इसे नीलगाय कहते हैं। आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।

क्या है नीलगाय

नीलगाय घोड़े की तरह दिखने वाला एक बड़ा ताकतवर जानवर होता है। हालांकि इसका शरीर भले ही घोड़े की तरह दिखता है, लेकिन यह घोड़े की तरह खूबसूरत नहीं होता है। इसे शरीर का पिछला हिस्सा, आगे हिस्से की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही झुका हुआ होता है जिसके कारण यह घोड़े के जैसे भाग भी नहीं पाता है, और भागते हुए बड़ा अटपटा लगता है। मुख्यतः इसे मृग प्रजाति का माना जाता है। नीलगाय केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलती हैं एक अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या करीब 10 लाख है।

इतिहास में नीलगाय

पश्चिम बंगाल से नीलगाय के हजारों वर्ष पुराने अवशेष मिले हैं। अनुमान है मनुष्य नवपाषाण काल और सिंधु सभ्यता के दौर में भी नीलगाय से परिचित था। नीलगाय का जिक्र ऐतरेय ब्राम्हण नाम के ग्रंथ में भी मिलता है। मुग़लकाल में बादशाह जहांगीर द्वारा इनके शिकार करने का जिक्र मिलता है।

जहांगीर ने जहांगीरनामा में जिक्र किया है उसे नीलगाय का शिकार करते समय बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। तभी एक दूल्हा अपने दो साथियों के साथ वहाँ से निकला, जिसके कारण नीलगाय भाग गई, जिसके बाद जहांगीर ने गुस्से में आकर दूल्हे को मारने तथा उसके दोनों साथियों का अंग-भंग करके गधे में घुमाने का आदेश दिया। जहांगीर के ही दरबारी चित्रकार उस्ताद मंसूर द्वारा नीलगाय का एक चित्र भी मिलता है। उस समय इसे नीलघोर अर्थात नीला घोड़ा कहा जाता था।

किस प्रजाति का है नीलगाय

नीलगाय आखिर किस प्रजाति का है, इसे लेकर विद्वानों में बहुत ज्यादा मतभेद हैं। 1992 में एक फाइलोजेनेटिक डीएनए स्टडी से पता चला है नीलगाय बोसलाफ़िनि (बकरी और भेड़), बोविनी (गाय) तथा ट्रेजलाफ़िनि (हिरण और मृग) प्रजातियों से मिलकर बना है।

नीले रंग का नहीं होता नीलगाय

नर नीलगाय ग्रे और स्लेटी रंग के होते हैं, जबकि मादा नीलगाय भूरे रंग की होती है। पर नर नीलगाय दूर से देखने में नीला नजर आता है, जबकि मादा नीलगाय का कान का रंग और बनावट गाय जैसी होती है। इसीलिए इसे भ्रमवश नीलगाय कहते हैं। नर नीलगाय के गर्दन के नीचे सफेद रंग के बालों का घना गुच्छा रहता है और उसके पैरों में घुटने के पास सफेद पट्टी रहती है। इसका वजन 200 किलो तक का हो सकता है। स्थूल शरीर की वजह से ही कभी-कभी यह बाघ और शेर जैसे जानवरों का शिकार हो जाता है। लेकिन कई बार वह उनके छक्के भी छुड़ा देता है।

नीलगाय की अन्य खासियतें

  • नीलगाय ऊंट की ही तरह कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है।
  • इसके अगले पैरों की अपेक्षा पिछले पैर ज्यादा मजबूत होते हैं।
  • नीलगाय की सूंघने और देखने की शक्ति तो अच्छी होती है, पर इसे सुनाई कम देता है।
  • नीलगाय बहुत ही कम आवाज करते हैं, लेकिन मादा नीलगाय कभी-कभी भैंसों की तरह रंभाती हैं।
  • नीलगाय जंगलों की अपेक्षा पठारी क्षेत्रों में ज्यादा रहते हैं।
  • यह झुंड में रहते हैं, एक झुंड में कई सारे नीलगाय होते हैं।
  • हर नर नीलगाय के साथ दो मादा नीलगाय होती हैं।

कृषि के लिए नुकसानदायक

वैसे तो नीलगाय भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत एक संरक्षित जानवर है। लेकिन यह कृषि और किसानों के लिए बहुत ही ज्यादा नुकसानदायक हैं। क्योंकि यह फसलों की तबाह कर देती हैं। इसीलिए कई बार शासन की अनुमति और मदद से इन्हें मारा भी जाता है। 8-10 साल पहले बिहार से भी खबर आई थी जब प्रशासन द्वारा सैकड़ों नीलगायों को मारा गया था।

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