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क्या जो भी हमारे साथ ग़लत करे उससे नाराज़ होना या समझाना ज़रूरी

न्याज़िया

मंथन। क्या जो भी हमारे साथ ग़लत करे उससे नाराज़ होना या समझाना ज़रूरी है कि उसने कुछ ग़लत किया है जबकि उसे अपनी ग़लती का ख़ुद से एहसास ही नहीं है और क्या हमारे समझाने से उसे समझ आ जाएगा कि उसने क्या किया है , पर क्या पहले हमारा ये समझना ज़रूरी नहीं है कि हमारा उससे रिश्ता क्या है हम उसके लिए कितनी अहमियत रखते हैं ,क्या एक बार हमारे समझाने से उसको समझ में आ जाएगा और वो कभी किसी के साथ फिर ऐसा नहीं करेगा, शायद ये सब कुछ सोच कर ही किसी को भी समझाना चाहिए, उसकी नज़र में अगर आपकी इज़्ज़त हैं तो वह सुनेगा अन्यथा उल्टा नाराज़ भी हो जाएगा कि आपने उसे कुछ कह दिया।

फिर यूं कर लें, कि उस इंसान की फितरत को समझने की कोशिश करें

अगर उसकी फितरत ही दिखावा करके रहने की है या वो ऐसे ही सबको बेवकूफ़ बनाता रहता है तो वो आपसे भी नाटक करेगा कि उसे आपकी बात समझ आ गई है पर वो कुछ भी सही नहीं बोलेगा। वहीं दूसरी तरफ अगर वो प्यारा भोला भाला अच्छा इंसान है और कोई ग़ैर भी है तो वो अपनी ग़लती मानेगा, साथ ही आपका भी एहसान मानेगा कि आपने उसे उसकी ग़लती का एहसास दिलाया है तो अगर अगली बार कोई ऐसा करे तो उसे कुछ कहने से पहले ख़ुद ये समझने की कोशिश करिए कि वो कैसा इंसान है अगर अच्छा है तभी कुछ कहिए नहीं तो वो आपको और परेशान कर देगा छोटी सी बात बढ़ जाएगी ,बात का बतंगड़ बन जाएगा और बेइज़्ज़ती भी हो सकती है क्योंकि ऐसे लोगों को किसी का डर नहीं होता है।

पर हमें तो है, कि नहीं!

इसलिए अपनी इज़्ज़त की खातिर ही ऐसे लोगों के मूँ नहीं लगना चाहिए वो कहे दिन तो दिन, वो कहें रात तो रात क्योंकि जिसे अपनी भूल का एहसास न हो और वो अकड़ भी दिखाए तो वो बेवकूफ ही है, लेकिन वो अपने जो अभी कच्ची उम्र में हैं,न समझ हैं,उन्हें मूर्ख नहीं बनने दीजिए उन्हें समझाइए सही ग़लत की पहचान कराइए। ठीक है न ग़ौर करिएगा इस बात पे, फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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