Iran Israel War Crude Oil Effects | ईरान के हमले (IRAN-ISRAEL WAR) के बाद इजराइल ने बदला लेने की धमकी दी है, उन्होंने कहा है कि ईरान को इन हमलों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी,,,
ईरान के इजरायल पर मिसाइल हमले (IRAN-ISRAEL WAR) के बाद कच्चे तेल की कीमत में 4 फीसदी का इजाफा हुआ है। इससे तेल आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तेल की कीमतें बढ़ती रहीं तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या बन सकती है।
IRAN-ISRAEL WAR से आयात पर असर
इसका कारण यह है कि भारत अपनी अधिकांश तेल जरूरतों को आयात के जरिए पूरा करता है। ईरान के हमले (IRAN-ISRAEL WAR) के बाद इजराइल ने बदला लेने की धमकी दी है। उन्होंने कहा है कि ईरान को इन हमलों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसे में क्रूड में और तेजी देखी जा सकती है।
भारत में महंगाई दर 0.3 फीसदी बढ़ेगी
विशेषज्ञों के मुताबिक कच्चे तेल की कीमत में हर 10 डॉलर की बढ़ोतरी पर भारत में महंगाई दर 0.3 फीसदी बढ़ जाती है। जबकि चालू खाता घाटा (CAD) 12.5 अरब डॉलर बढ़ जाता है। यह जीडीपी के करीब 43 बेसिस प्वाइंट के बराबर है। तेल महंगा होने से भारत में लोगों की क्रय शक्ति पर भी असर पड़ता है। इसका कारण यह है कि लोगों को परिवहन पर अधिक खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं।
भारत को ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे
जानकारों के मुताबिक तेल महंगा होने से भारत को ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। इससे रुपया कमजोर होगा। ईरान रोजाना 17 लाख बैरल तेल निर्यात करता है। वह तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक के सदस्य हैं। ईरान होर्मुज़ जलडमरूमध्य के पास स्थित है। जहां से तेल की बड़ी आपूर्ति गुजरती है। सऊदी अरब, कतर और यूएई जैसे बड़े तेल उत्पादक देश तेल निर्यात के लिए इस मार्ग का उपयोग करते हैं। विश्व तेल आपूर्ति में ओपेक देशों की हिस्सेदारी लगभग 40% है। ओपेक के फैसले का सीधा असर तेल की कीमतों पर पड़ता हुआ दिखाई देगा। अगर तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची रहीं तो इससे भारत जैसे कई उभरते देशों के लिए दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
अर्थव्यवस्था पर पहले से ही कुछ दबाव
भारत में अर्थव्यवस्था पर पहले से ही कुछ दबाव है। सितंबर में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 8 महीने के निचले स्तर पर आ गया। पहली तिमाही में चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़कर जीडीपी का 1.1% हो गया है। ऐसे में तेल की कीमतें बढ़ने से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा। चालू खाते का घाटा बढ़ने पर भारत को अधिक डॉलर खर्च करने होंगे। इसका मतलब है कि रुपया कमजोर होगा। इससे आयात महंगा हो जाएगा। इससे भारत को आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
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