History Of Mauritius: मॉरीशस (Mauritius), एक छोटा सा द्वीप जो हिंद महासागर में बसा है, भारत से हजारों किलोमीटर दूर है, लेकिन इसके दिल में भारत की धड़कन बसती है। यह रिश्ता 19वीं सदी में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश शासकों ने बिहार और पूर्वी भारत के गाँवों से गरीब मजदूरों को जहाजों में भरकर मॉरीशस भेजा। इन मजदूरों को “गिरमिटिया” (Girmitiya Labourers) कहा गया, और इनकी मेहनत ने न सिर्फ मॉरीशस की जमीन को हरा-भरा किया, बल्कि वहाँ भारतीय संस्कृति की नींव भी रखी। आइए जानते हैं इस अनोखे बंधन की कहानी (India-Mauritius Historical Ties)
मॉरीशस में कैसे बसे बिहारी मजदूर
How Bihari Went To Mauritius: 1833 में ब्रिटेन ने गुलामी को गैरकानूनी घोषित कर दिया, लेकिन उनके उपनिवेशों में गन्ने के खेतों को चलाने के लिए सस्ते मजदूरों की जरूरत थी। इसके लिए भारत को चुना गया। 2 नवंबर 1834 को पहला जहाज, “एटलस,” कोलकाता से मॉरीशस के लिए रवाना हुआ। इसमें ज्यादातर मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी इलाकों से थे। अगले कई दशकों में, करीब 4.5 लाख भारतीय वहाँ ले जाए गए। इनमें से आधे से ज्यादा कभी वापस नहीं लौटे। आप्रवासी घाट (Aapravasi Ghat), जहाँ ये मजदूर उतरे, आज इस इतिहास का गवाह है और यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है।
गन्ने के खेतों में खून-पसीना
Why Indians Went To Mauritius: गिरमिटिया मजदूरों का जीवन बेहद कठिन था। उन्हें 5 साल के अनुबंध (Indenture Contract) पर काम करना पड़ता था, लेकिन हालात गुलामी से कम नहीं थे। सुबह से रात तक गन्ने काटना, कम मजदूरी, और बीमारियों से जूझना उनकी जिंदगी का हिस्सा था। बिहार से आए इन मजदूरों ने अपनी बोली, भोजपुरी (Bhojpuri Language), को जीवित रखा। वे अपने साथ मिट्टी के बर्तन, गीत, और धार्मिक किताबें ले गए। मॉरीशस में उन्होंने छोटे-छोटे मंदिर बनाए, जहाँ रामचरितमानस की चौपाइयाँ गूँजती थीं।
संस्कृति का फूलना-फलना
Culture Of Mauritius: इन मजदूरों ने मॉरीशस में भारत की ऐसी छाप छोड़ी जो आज भी कायम है। आज मॉरीशस की 68% आबादी भारतीय मूल की है वहाँ भोजपुरी और हिंदी बोलने वाले लोग हैं, और त्योहार जैसे होली, दीवाली, और छठ पूरे उत्साह से मनाए जाते हैं। एक खास जगह है गंगा तालाब जिसे 19वीं सदी में मजदूरों ने अपने साथ लाए गंगा जल से शुरू किया। यह अब मॉरीशस का सबसे बड़ा हिंदू तीर्थ स्थल है। इसके अलावा, “गीत गवई” नाम की परंपरा भी बिहारी महिलाओं की देन है, जिसमें शादी के मौके पर भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं।
मॉरीशस को आज़ादी कैसे मिली?
How Mauritius Gained Independence: मॉरीशस की आज़ादी का सफर 20वीं सदी में शुरू हुआ। 1810 से यह द्वीप ब्रिटिश कब्जे में था, जब उन्होंने इसे फ्रांस से छीन लिया था। लंबे समय तक यहाँ गन्ने के खेतों में काम करने के लिए भारतीय मजदूरों (Indentured Laborer’s) को लाया गया। लेकिन 1947 में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए, जिसने आत्म-शासन की नींव रखी। इसके बाद 1961 में ब्रिटिश सरकार ने मॉरीशस को और स्वायत्तता देने का वादा किया।
आज़ादी की असली लड़ाई तब तेज़ हुई जब 1967 में विधानसभा चुनाव हुए। यह चुनाव आज़ादी पर एक जनमत संग्रह (Referendum on Independence) की तरह था। मॉरिशस लेबर पार्टी (Mauritian Labour Party – MLP), मुस्लिम कमेटी ऑफ एक्शन (Muslim Committee of Action – CAM), और इंडिपेंडेंट फॉरवर्ड ब्लॉक (Independent Forward Bloc – IFB) की गठबंधन ने जीत हासिल की। इस गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे सर सीवूसागुर रामगुलाम (Sir Seewoosagur Ramgoolam – SSR), जो उस समय औपनिवेशिक सरकार में चीफ मिनिस्टर (Chief Minister) थे। फ्रैंको-मॉरिशियन और क्रेओल समुदाय के कुछ लोग, जो गाएतन दुवाल (Gaetan Duval) की मॉरिशस सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (Mauritian Social Democratic Party – PMSD) का समर्थन करते थे, आज़ादी के खिलाफ थे। लेकिन बहुमत ने आज़ादी का रास्ता चुना।
12 मार्च 1968 को मॉरीशस को औपनिवेशिक शासन से आज़ादी मिली (Mauritius Independence Day)। यह तारीख खास थी, क्योंकि यह महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह (Salt March) की शुरुआत की याद दिलाती थी। आज़ादी के बाद मॉरीशस एक संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional Monarchy) बना, जिसमें क्वीन एलिज़ाबेथ द्वितीय (Queen Elizabeth II) नाममात्र की प्रमुख थीं, और उनकी शक्तियाँ गवर्नर-जनरल (Governor-General) को दी गईं।
मॉरीशस को पहला प्रधानमंत्री कैसे मिला?
How Mauritius Got Its First Prime Minister: मॉरीशस को उसका पहला प्रधानमंत्री चुनने का मौका 1967 के चुनावों के बाद मिला। जब देश आज़ाद हुआ, तो संविधान के तहत प्रधानमंत्री का पद बनाया गया यह पद उस शख्स को दिया जाना था जो राष्ट्रीय विधानसभा में बहुमत का समर्थन हासिल कर सके। सर सीवूसागुर रामगुलाम, जो पहले चीफ मिनिस्टर थे (1961-1968), ने अपनी पार्टी और गठबंधन की जीत के बाद यह जिम्मेदारी संभाली।
12 मार्च 1968 को, जब मॉरीशस आज़ाद हुआ, रामगुलाम देश के पहले प्रधानमंत्री बने (First Prime Minister of Mauritius)। उनकी नियुक्ति औपचारिक रूप से गवर्नर-जनरल ने की, लेकिन असल में यह जनता के वोट और उनकी पार्टी की जीत का नतीजा थी। रामगुलाम को “राष्ट्रपिता” (Father of the Nation) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में बड़ी भूमिका निभाई और देश को एकजुट रखा। वे 1982 तक प्रधानमंत्री रहे, बीच में 1976 के चुनाव में भी दोबारा चुने गए।
प्रधानमंत्री का पद यहाँ कैसे आया?
मॉरीशस में प्रधानमंत्री का पद ब्रिटिश वेस्टमिंस्टर सिस्टम (Westminster System) से प्रेरित है। आज़ादी से पहले, 1961 से 1968 तक, यहाँ चीफ मिनिस्टर का पद था, जो औपनिवेशिक सरकार का हिस्सा था। लेकिन जब 1968 में मॉरीशस आज़ाद हुआ, तो नया संविधान (Constitution of Mauritius) बनाया गया। इस संविधान ने प्रधानमंत्री को सरकार का प्रमुख बनाया, जबकि राष्ट्राध्यक्ष की भूमिका पहले गवर्नर-जनरल और 1992 के बाद राष्ट्रपति के पास रही।
प्रधानमंत्री का पद इसलिए बनाया गया ताकि देश में लोकतांत्रिक सरकार चल सके। यहाँ हर पाँच साल में चुनाव होते हैं (General Elections), और जो पार्टी या गठबंधन बहुमत पाता है, उसका नेता प्रधानमंत्री बनता है। रामगुलाम के बाद सर अनिरुद्ध जगन्नाथ (Sir Anerood Jugnauth) और नवीन रामगुलाम (Navin Ramgoolam) जैसे नेता इस पद पर आए। 1992 में मॉरीशस गणतंत्र बना (Republic of Mauritius), लेकिन प्रधानमंत्री की भूमिका वही रही—सरकार का सबसे शक्तिशाली पद।
भारत से मॉरीशस का रिश्ता (India-Mauritius Relations)
India Mauritius Friendship: इन मजदूरों के वंशज आज मॉरीशस में हर क्षेत्र में आगे हैं—चाहे वह राजनीति हो, व्यापार हो, या कला। भारत और मॉरीशस का रिश्ता अब सिर्फ अतीत की कहानी नहीं है। हाल ही में 11 मार्च 2025 को पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने मॉरीशस का दौरा किया, जहाँ गीत गवई कलाकारों ने उनका स्वागत किया। दोनों देश हिंद महासागर में सुरक्षा और व्यापार के लिए साथ काम कर रहे हैं। मॉरीशस भारत का एक भरोसेमंद दोस्त बन गया है, जो इस ऐतिहासिक बंधन को और मजबूत करता है।
Mini India बना मॉरीशस
भारत और मॉरीशस की यह कहानी उन बिहारी गिरमिटिया मजदूरों की हिम्मत और संघर्ष की गवाही देती है, जिन्होंने एक अनजान देश में अपनी पहचान बनाई। यह हमें याद दिलाती है कि मेहनत और संस्कृति की ताकत क्या होती है। मॉरीशस आज “मिनी इंडिया” (Mini India) कहलाता है, और यह सब उन मजदूरों की बदौलत है जिन्होंने अपने खून-पसीने से इस रिश्ते की नींव रखी।