वर्ष 1987 में राजस्थान के जयपुर के पास स्थित सीकर जिले के दिवराला गाँव में भारत देश की अंतिम सती रूप कांवर सिंह सिर्फ 18 साल की आयु में अपने मृत पति के पार्थिक शरीर के साथ बैठ कर जलती हुई चिता पर झुलसने वाले आखरी महिला । इसके बाद भारत देश में ऐसा भयावह नज़ारा नहीं देखा गया। 15वि शताब्दी से चली आ रही एक ऐसी कु-प्रथा जो औरतों के लिए एक श्राप के समान थी। जानिये पूरी कहानी
कू-प्रथा का इतिहास :
15वी शताब्दी में एक ऐसी कु-प्रथा का निर्माण हुआ जो औरतों के लिए एक श्राप साबित हुआ ,एक ऐसा श्राप जिसे यदि आज के समय में ख़याल में भी लाये तो रूह काँप जाती है। उस समय के लोगो के लिए ये प्रथा काफ़ी आम रही होगी, क्योंकि इसका विरोध करने वाला कोई नहीं था लोगो को ये प्रथा एक वरदान सी लगती थी। इस कू -प्रथा का नाम सती प्रथा था। शायद आज के इस आधुनिक समय में गिनती नहीं लगाई जा सकती के कितने प्रतिशत विधवा औरतों को इसका शिकार होना पड़ा था। आचार्य वामन जो एक प्रसिद्द अलंकारशास्त्री थे जिनके द्वारा 8वि -9वि शताब्दी में रीतियों का सिद्धांत लाया था। लेकिन समाज के कुछ क्रूर लोगो ने इस भयावह कू-प्रथा का निर्माण किया। गुप्ता साम्राज्य के समय से चली आ रही ये प्रथा भयावह थी। इसका सर्व प्रथम उदाहरण नेपाल में देखा गया था उसके पश्चात मध्य प्रदेश और राजस्तान में यह कू-प्रथा अधिक्तम तौर पे मानी जाती थी।
दिवराला की सती :
राजस्थान की राजधानी जयपुर के कुछ किलोमीटर दूर सीकर जिले के एक गाँव दिवराला में एक 24 साल का नौजवान रहा करता था ग्रेजुएट था नाम था माल सिंह शेखावत। माल सिंह की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी अब बारी थी उसके विवाह की,घर -परिवार वालो ने कहा इसकी अब शादी करा देते हैं। दिवराला गाओ से 2-3 गाँव छोड़ कर एक गाँव में अच्छे घराने की लड़की देखी परिवार वालों को लड़की पसंद आई रिश्ता तय हो गया था, लड़की का नाम रूप कांवर था। 18 वर्षीया रूप का रिश्ता माल सिंह से पक्का हो गया। रूप के पिता का ट्रांसपोर्टेशन का कारोबार था। रूप और माल की शादी जनवरी 1987 में संपन्न हो जाती हैं। रूप की उम्र कम होने की वजह से उस समय एक परंपरा थी शादी के बाद गोना यानी शादी के बाद लड़की की जल्दी विदाई नहीं की जाती थी उसे अपने माता ,पिता के पास ही रखा जाता था। शादी होने के पश्चात अगले 8 महीने में मुश्किलों से किश्तों में 20 बार रूप ने अपने पति माल सिंह के साथ अपने ससुराल में बिताया था। समय बीत जाता हैं सितम्बर का महीना आ जाता है ,अचानक 2 सितम्बर के दिन रूप के मायके में खबर जाती है की माल की तबियत खराब हो गयी है पेट में दर्द व उल्टिया हो रही है। खबर सुनते ही रूप सीकर के एक अस्पातल में पहुँचती है वहा वो माल सिंघ से मिलती है 3 सितम्बर को माल के तबियत में सुधारा आ जाता है और क्योंकि अभी रूप का गौंना नहीं हुआ था इसलिए उसे वापस उसके मायके भेज दिया जाता है ।
4 सितम्बर को माल की वापस तबियत बिगड़ जाती है और इस बार उसको बचाया नहीं जा सका और माल सिंह को मृत घोषित कर दिया गया। इस खबर को रूप और उसके परिवार तक पहुंचाया गया रूप जो अपने मायके जा चुकी थी वापस अपने ससुराल फिरसे आ जाती है। रूप कांवर सिर्फ 18 साल की उम्र में अपने शादी के बाद 8 महीने के भीतर विधवा हो चुकी थी। दोपहर का वक्त था अंतिम संस्कार की तैयारियां हो रही थी। उस समय दिवराला गाओ की आबादी ज्यादा नहीं सिर्फ 100 की थी। तैयारी चल ही रही थी की एक अफ़वा गाँव में बड़ी तेज़ी से फैलती नज़र आ रही थी।
ख़बर ये थी की रूप कांवर अपने पति माल सिंह से इतना प्रेम करती थी की वह उसके जाने के बाद जिंदा नहीं रहना चाहती है। उस समय सती प्रथा राजस्थान के राजपुताना बिरादरी में बहुत आम बात थी। खबर यह थी रूप कांवर अपने पति माल सिंह के साथ जलती चिता में सती होना चाहती है। उस समय के लोग सती प्रथा से वाकिफ़ थे हलाकि ,सब लोग इस बात से भी वाकिफ़ थे की सती प्रथा अंग्रेज़ो के समय में वर्ष 1829 में ( Governor-General Lord William Bentinck ) द्वारा समाप्त कर दी गयी थी। इस बात को जानते हुए भी की ये प्रथा गैर-कानूनी है, धीरे -धीरे करके लोगो ने गाँव पहुंचना शुरू कर दिया देखते ही देखते गाँव में हज़ारों की भीड़ इक्क्ठा होना शुरू हो जाती है। एक ऐसे भयावह नज़ारे को देखने के लिए जहा एक पत्नी अपनी मृत पति के पार्थिक शरीर के साथ चिता पर बैठने जा रही थी।
दोपहर सब तैयारी हो रही थी रूप के ससुराल वालो ने रूप को ठीक उसी दिन की तरह सजाया जिस दिन उसका विवाह था।सर्व प्रथम रूप को पूरे गाँव का चक्कर लगवाया गया उसके बाद रूप को माल सिंह के चिता के पास ले जाया गया वहा उससे उसकी चिता की परिक्रमा करवाई गयी कुल सात चक्कर लगाने थे रूप दुःख से विलीन थी वो चल भी नहीं पा रही थी लोग पुलिस के आने के डर से रूप को परिक्रमा जल्दी करने के लिए कहते है। इसके बाद रूप को सहारा देकर माल के पार्थिक शरीर के साथ चिता पर बिठाया गया। गाँव वाले विरोध करने के वजाय चिता को जलाने के लिए अपने -अपने घरों से घी ला रहे थे। परंपरा के मुताबिक गाँव वालों के लिए यह बड़ी बात थी की उनके गाँव से कोई पत्नी सती होने जा रही थी। चिता को आग लगाई गयी आग की लपटे उठी और धीरे -धीरे रूप के पाओ तक पहुँची जैसे ही उस तक आग पहुँची वो ज़ोर से चीखी -चिल्लाई कराही और नीचे गिर गयी गाँव वालो ने उसे वापस उठाया और चिता पर फिर बिठा दिया और घी डाला ताकि चिता अच्छे से जल सके। देखते ही देखते चिता ने आग पकड़ी और रूप उसी आग के साथ झुलस गयी।
परंपरा के माने तो वहा मौजूद लोगो के लिए वो सती हो गयी और पुलिस को कानो कान ख़बर नहीं लगी। उस वक्त राजस्थान और सेंटर दोनों में कांग्रेस की सरकार थी। देश के प्रधान मंत्री राजीव गाँधी थे और राज्य के मुख्य मंत्री हृदय जोशी थे। अचानक गाँव के कुछ पढ़े लिखे विद्वानो ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी लगायी, सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने इसे आदेश की तरह लिया और पुलिस को जिम्मेदारी सौंपी की इस मामले की तह तक जांच की जाए। 9 सितम्बर को FIR दर्ज़ की गयी और इस मामले की पूरी जानकारी इक्कठा की गयी, पर पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला।
समय बीतता गया अचानक गाँव में एक खबर फैली की रूप और माल के 13वि के दिन दिवराला गाँव में रूप कांवर सिंह के नाम पर एक मंदिर का निर्माण किया जायेगा। ये खबर राजस्थान से दिल्ली तक पहुँचती है और पुलिस मोके में पहुँचती है इस पूरे मामले में कुल 39 लोगो के ख़िलाफ़ FIR दर्ज़ किया गया उन्हें हिरासत में लिया गया उनमे से कुछ की अब मौत हो चुकी है कुछ 2004 में बरी कर दिए गए थे और जो बाकी बचे आरोपी थे उन्हें भी अब 37 साल बाद बरी कर दिया गया है । कानून का कहना है की इनमे से कोई भी दोषी नहीं था। हलाकि, की कुछ चश्मदीद गवाहों का कहना है की रूप को जबरन सती बनाया गया वो खुद से नहीं जाना चाहती थी साथ ही साथ उनका ये भी कहना है की रूप चिता पर से भागने की कोसिस कर रही थी पर उसे जबरन वापस बिठाया गया और गाँव वालो द्वारा दिए गए घी से जलाया गया। सच क्या था और क्या है ये रूप के साथ ही चला गया।