History Of Vindhya Congress: 20वीं शताब्दी के शुरुआत के वर्ष थे, जब कांग्रेस स्थापना के साथ ही देश भर में राष्ट्रीय चेतना के स्वर उठने लगे थे, तब उसकी गूंज विंध्य में भी कुछ गूंजने लगी थी। जहाँ सदियों तक राजशाही आबाद थी वहाँ के युवाओं के मन में अब राष्ट्रवाद, स्वतंत्रता, उत्तरदायी शासन और समानता की भावना के बीजों का अंकुरण होने लगा था, जिसके फलस्वरूप स्थापना हुई, बघेलखंड कांग्रेस कमेटी की। जिसने ना यहाँ केवल राजनैतिक चेतना और आधुनिक राष्ट्रवाद की नींव रखी, बल्कि यहाँ की जनता को एक सशक्त आवाज भी दी, जिसने विंध्य में लोकतंत्र की नींव रखी।
रीवा राज्य के युवाओं की राजनैतिक सक्रियता
आधुनिक राजनैतिक चेतना का उदय भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह विंध्य में भी नवजागरणकाल में हुआ, जब कांग्रेस की स्थापना हुई और उसके साथ ही गांधी युग का प्रारंभ हुआ। उस समय विंध्य के कुछ गिने-चुने शिक्षित युवा, जो रीवा से बाहर इलाहाबाद में पढ़ाई कर रहे थे, कांग्रेस की गतिविधियों से गहराई से प्रभावित हुए। इनमें प्रमुख थे कप्तान अवधेश प्रताप सिंह,राजभानु सिंह तिवारी, हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह और लाल यादवेन्द्र सिंह। कप्तान अवधेश प्रताप सिंह और राजभानु सिंह तिवारी ने ही पहली बार रीवा और विंध्य का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस के कराची अधिवेशन में भाग लिया था, हालांकि कमेटी ने लाल यादवेन्द्र सिंह का भी नाम प्रस्तावित किया था, लेकिन किसी कारणवश में वह नहीं जा सके।
अजमेर प्रांत के अंतर्गत थी बघेलखंड कांग्रेस कमेटी
उसके पहले 1928 में कलकत्ता अधिवेशन के दौरान कांग्रेस ने, देसी रियासतों में उत्तरदायी शासन और प्रतिनिधि संस्थाओं के स्थापना की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया था, जिसके फलस्वरूप देसी रियासतों में भी कांग्रेस की शाखाएं स्थापित होने लगी, पहले-पहल अजमेर प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की स्थापना हुई और बघेलखंड क्षेत्र को उसी के अंतर्गत रखा गया। लेकिन कहाँ अजमेर, कहाँ रीवा, इसीलिए रियासत में कांग्रेस का कार्य सुचारु ढंग से चलाने के लिए, हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह के प्रयासों के चलते, पंडित नेहरु की मदद से, 30 मई 1931 को कटनी की एक धर्मशाला में बघेलखंड कांग्रेस की विधिवत स्थापना की गई। इस कमेटी के अंतर्गत सेंट्रल इंडिया के बघेलखंड पॉलिटिकल एजेंसी की रियासतों को रखा गया था।
विंध्यक्षेत्र में कैसे हुई कांग्रेस की स्थापना
इस कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष बने लाल यादवेंद्र सिंह, जबकि कप्तान अवधेश प्रताप सिंह महामंत्री और राजभानु सिंह तिवारी पहले कोषाध्यक्ष बने। पं. शंभूनाथ शुक्ल कार्यकारिणी के सदस्य बने, उस समय कांग्रेस से जुड़ने वाले बहुत कम लोग थे। अब कमेटी तो स्थापित हो गई लेकिन उसके कार्यालय के लिए भवन की जरूरत थी, तब कांग्रेस के ही एक कार्यकर्ता मुंशी रामकुमार ने घोघर मोहल्ले का अपना मकान पार्टी को समर्पित कर दिया, जो उस समय से अब तक कांग्रेस भवन के नाम से जाना जाता है।
राज्य में कांग्रेस स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे
महाराज गुलाब सिंह के नए पवाई रूल्स
हालांकि कांग्रेस से जुड़ने वाले लोगों में से सभी वर्गों के लोग थे, लेकिन पार्टी की स्थापना के साथ ही इसमें पवाईदार वर्ग का प्रभुत्व था, ऐसा क्यों था, इसका भी एक कारण था, जिसके बारे में आइए हम जानते हैं। दरसल 1927 में यूरोप यात्रा से लौट के आने के कुछ समय बाद ही, रीवा महाराज गुलाब सिंह ने रियासत में नए पवाई रुल्स लागू किए थे, इस पवाई रूल्स के कई प्रावधानों से यहाँ का सामंत वर्ग नाराज था, उसे लग रहा था यह रूल उनके पैतृक अधिकारों में कमी और उनके प्रतिष्ठा के विरुद्ध है, इसीलिए धीरे-धीरे यहाँ का पवाईदार वर्ग रीवा महाराज के विरुद्ध एकजुट हो रहा था, इन पवाईदारों का नेतृत्व कर रहे थे बैकुंठपुर के इलाकेदार हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह, दरसल नए पवाई रूल्स के अनुसार संतानहीन जागीरदारों की पवाई जब्त करने का आदेश था, जिसके कारण राज्य द्वारा कुछ पवाइयाँ जब्त भी की गईं, जिसके बाद हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह ने इस रूल को काला कानून कहते हुए, इसके विरुद्ध आंदोलन की योजना बनाई, लेकिन सामंतवर्ग रीवा महाराज के प्रत्यक्ष विरोध की हिम्मत नहीं कर सका, जिसके बाद हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह को रीवा छोड़कर प्रयाग जाना पड़ा, वहाँ रहकर वह इसके विरोध में आवाज उठाते रहे, चूंकि इलाहाबाद उस समय राजनैतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था, तो वहाँ रहते ही उनके घनिष्ठ संपर्क कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेताओं से हुए और यह प्रमुख आधार बना विंध्य में कांग्रेस की स्थापना का।
इसी समय रीवा के अवधेश प्रताप सिंह और लाल यादवेन्द्र सहित कुछ छात्र, इलाहाबाद से उच्च शिक्षा प्राप्त करके लौटे और वहाँ के राष्ट्रीय आंदोलनों और राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित होते हुए कांग्रेस से जुड़ गए। इन पर कांग्रेस के राष्ट्रवाद का प्रभाव तो था, लेकिन वे स्वयं पवाईदार परिवारों से संबंधित थे। इन सबने मिलकर चुरहट के राव साहब लाल शिवबहादुर सिंह को अपना अध्यक्ष बनाते हुए, रीवा महाराज के समक्ष अपनी कई मांगों को लेकर आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, हालांकि रीवा दरबार की तरफ से तत्काल उन मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया, लेकिन असंतोष इतना था कि पवाईदारों द्वारा आंदोलन की भी सुगबुगाहट होने लगी। इसी बीच महाराज गुलाब सिंह प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन चले गए, तो उनकी उनकी अनुपस्थिति में आंदोलन को उचित नहीं मानते हुए योजना को स्थगित कर दिया गया, इस तरह पवाईदारों का आंदोलन अधिक जोर नहीं पकड़ सका, लेकिन उनमें असंतोष बना रहा। परिणामस्वरूप इस वर्ग के कुछ लोग ऐसे मंच की तलाश करने लगे, जिसके माध्यम से वह अपने हितों के साथ ही दरबार के निरंकुश सत्ता का विरोध भी कर सकें।
हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह की भूमिका
हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह को रीवा छोड़कर प्रयाग जाना पड़ा, वहाँ रहकर वह इसके विरोध में आवाज उठाते रहे, चूंकि इलाहाबाद उस समय राजनैतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था, तो वहाँ रहते ही उनके घनिष्ठ संपर्क कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेताओं से हुए और यह प्रमुख आधार बना विंध्य में कांग्रेस की स्थापना का।यद्यपि लाल नर्मदा प्रसाद सिंह इलाहाबाद चले गए थे, लेकिन रीवा महाराज की सभी कार्यवाइयों और आदेशों की खिलाफत कर रहे थे। वे इस क्षेत्र के राजनैतिक कार्यकर्ताओं से व्यक्तिगत संपर्क रखकर उनका मार्गदर्शन कर रहे थे। राज्य में सबसे प्रभावशाली पवाईदार वर्ग में असंतोष व्याप्त था, यहाँ कांग्रेस की स्थापना का उचित वातावरण बन चुका था, ब्रिटिश भारत का प्रमुख राजनैतिक केंद्र इलाहाबाद, रीवा राज्य से सटा हुआ था, और यहाँ के राजनैतिक गतिविधियों को भी प्रभावित कर रहा था।
सर कोनार्ड कोरफील्ड ने भी किया था जिक्र
इस स्थिति की व्याख्या करते हुए रीवा महाराज के सलाहकार और रीवा स्टेट कौंसिल के वाइस प्रेसीडेंट रहे सर कोनार्ड कोरफील्ड ने लिखा है, अन्य राज्यों के विपरीत यहाँ के इलाकेदार और पवाईदार प्रजामंडल अर्थात कांग्रेस का आर्थिक बोझ उठा रहे थे। उन्होंने आगे अपने संस्करण में लिखा- मुझे राज्य के पुलिस महानिरीक्षक सरदार संतोष सिंह ने बताया कि, राज्य का प्रशासन पुराने ढर्रे का था, जमींदार- किसान कर के बोझ से लदे थे, देहात के लोग असन्तुष्ट थे, राज्य में विकास का कोई कार्य नहीं हो रहा था। इधर राज्य के सामंत वर्ग की भी, शासन के प्रति वफादारी कम होती जा रही थी, क्योंकि पवाई रूल्स के माध्यम से उनके पैतृक अधिकारों में कमी की जा रही थी, जिसके कारण उनका मन असंतोष से तप रहा था और वे रीवा महाराज के विरोध में संगठित हो रहे थे। इसीलिए अगर ये कहा जाए रीवा राज्य में कांग्रेस पार्टी की स्थापना में शिक्षित राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ ही, सामंत वर्ग के हितों के संरक्षण की भी भावना थी, तो यह गलत नहीं होगा।
महाराज गुलाब सिंह की दुविधा
ऐसा नहीं थे महाराज गुलाब सिंह इन बदलती परिस्थितियों से बेखबर थे, या कांग्रेस की स्थापना के विरोध में थे, उन्होंने तो बघेलखंड कांग्रेस कमेटी के स्थापना का स्वागत किया था, वह महात्मा गांधी और कांग्रेस की सुधारवादी नीतियों से भी अत्यंत प्रभावित थे, जैसा कि उन्होंने आने वाले समय में रियासत में सुधारवादी कार्य किए भी। पर वह कई मर्तबा पॉलिटिकल एजेंट के माध्यम से यूनाइटेड प्रोविंस की सरकार से हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह के प्रत्यार्पण की मांग कर चुके थे, लेकिन वहाँ की सरकार वैधानिक अड़चनों का हवाला देते हुए, रीवा प्रशासन से इंकार कर देती थी। वास्तविकता में इसके पीछे कोई वैधानिक अड़चन नहीं थी, बल्कि कुछ लोग दावा करते हैं उस समय हरौल साहब ब्रिटिश सरकार द्वारा, महाराज गुलाब सिंह के ऊपर महाभियोग लगाने की तैयारी कर रहे थे। दरसल ब्रिटिश सरकार बघेलखंड कांग्रेस कमेटी द्वारा नागौद में किए गए झंडा आंदोलन के कारण, रीवा महाराज से कुछ रुष्ट चल रही थी, क्योंकि उन्होंने इन आंदोलनकारियों के विरुद्ध कुछ कार्यवाई नहीं की थी।
राज्य में आंदोलनों में कांग्रेस की सक्रिय भूमिका
कांग्रेस ने अपनी स्थापना के साथ ही, रीवा राज्य में उत्तरदायी शासन की मांग करने लगी, यद्यपि इस मांग का प्रमुख कारण कांग्रेस को पोषित करने वाले पवाईदार वर्ग का असंतोष था। लेकिन इसके साथ ही देशभर में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हो गया था, जिससे विंध्य भी प्रभावित था और यहाँ के लोग बड़ी संख्या में कांग्रेस के इस राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर शामिल हुए। रीवा और सतना जैसे नगर ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस सत्याग्रह से लोग जुड़ रहे थे। रीवा प्रशासन भी आंदोलन के दमन के लिए सख्त था, कांग्रेस के लगभग सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद, पवाईदार वर्ग हतोत्साहित हो गया और यह आंदोलन उग्र नहीं हो सका। महाराज इस समय रीवा में नहीं थे, बल्कि राजनैतिक विभाग से मशविरे के लिए दिल्ली गए थे, उन्होंने वापस आकर कांग्रेस के लगभग सभी नेताओं को रिहा कर दिया।
रीवाराज्य में सविनय अवज्ञा आंदोलन
इस क्षेत्र में कांग्रेस के नेतृत्व में हुआ यह पहला आंदोलन था, इस आंदोलन को महकौशल प्रांत के बड़े नेता हरिभाऊ उपाध्याय ने अपना मार्गदर्शन दिया था और जबलपुर के प्रमुख अखबार लोकमत ने इसकी खबरों को प्रमुखता से छापा था। बघेलखंड कांग्रेस कमेटी के इस आंदोलन को कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने भी महत्व दिया और बघेलखंड कांग्रेस कमेटी का प्रभारी पंडित जवाहर लाल नेहरु बना दिया गया, इसके साथ रीवा महाराज ने भी स्थितियों में सुधार का आश्वासन दिया। इस आंदोलन पर टिप्पणी करते हुए हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह ने कहा था- “प्रजा को तलवार लेकर बगावत का हक है, और जीतने पर वे ही मालिक बन जाते हैं।”
बघेलखंड कांग्रेस कमेटी के कार्य
आंदोलन की समाप्ति के बाद बघेलखंड कांग्रेस कमेटी ने यहाँ रचनात्मक कार्य प्रारंभ कर दिए। उनके द्वारा यहाँ चरखासंघ और वाचनालय की स्थापना की गई। उन्होंने अपने संगठन का विस्तार करते हुए बघेलखंड में कांग्रेस की 19 शाखाएं स्थापित की। रीवा राज्य की प्रत्येक तहसीलों में मंडलों की स्थापना भी की गई, प्रत्येक गाँव से एक प्रतिनिधि बनाया गया, 1932 तक आते-आते यहाँ लगभग 20 हजार लोग कांग्रेस से जुड़ चुके थे। कांग्रेस संगठन के अंतर्गत ही हिन्दुस्तानी सेवादल की एक शाखा रीवा में खोली गई, और उसके स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण के लिए केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से पी. एन. दास को भेजा गया। रीवा जिले से एक महिला स्वयंसेवक को प्रशिक्षण के लिए मुंबई भेजा गया, लेकिन सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ होने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा। रीवा के साथ ही नागौद रियासत में भी पंडित नर्मदा प्रसाद के नेतृत्व ब्रिटिश सरकार के विरोध के बाद भी कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ।
रीवा राज्य की जनता का कांग्रेस की तरफ रुझान
खैर जैसा हमने ऊपर बताया था कांग्रेस पार्टी की यहाँ स्थापना हो गई, और इसके साथ ही यहाँ के लोगों द्वारा बढ़-चढ़ कर राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया जाने लगा। पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन और बाद में भारत छोड़ो आंदोलन में यहाँ की जनता ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध बढ़-चढ़ कर भाग लिया। राष्ट्रीय आंदोलन ही नहीं रियासत में उत्तरदायी सरकार के लिए भी लगातार मांग यहाँ के कांग्रेस नेता करते रहे, इसके साथ ही वह अंग्रेजों विरुद्ध रीवा के स्थानीय आंदोलनों के भी नेतृत्वकर्ता थे। तो बघेलखंड में कांग्रेस की स्थापना के कारण यहाँ बहुत सारे सामाजिक और राजनैतिक बदलाव हुए, एक तरह से देखा जाए कांग्रेस और उसकी राजनैतिक गतिविधियों ने यहाँ के नवांकुरों को पोषित किया, जो आगे चल कर विंध्य में सोशलिस्ट राजनीति के उभार का प्रमुख कारण बना।
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