Vedic History | उत्तर वैदिक काल की इतिहास

Uttar Vaidik Kal Ka Itihas Hindi Mein: भारतीय इतिहास में ऋग्वैदिक काल के बाद का समय उत्तर वैदिक काल कहा जाता है, इसका समय काल 1500 ईसा पूर्व से लेकर 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है। हालांकि कुछ विद्वान इसका समयकाल 1000 ईसा पूर्व से लेकर 500 ईसा पूर्व तक भी मानते हैं। इस समय माना जाता है गण और कबीले अब जनपदों में बदल रहे थे अर्थात छोटे-छोटे राज्यों का उदय हो रहा था। उत्तर वैदिक युग में आर्य संस्कृति का विस्तार विंध्य और हिमालय के बीच के भू-भागों में हो चुका था। आइए जानते हैं, उस समय राज्यव्यवस्था के बारे में।

उत्तर वैदिक काल में आए परिवर्तन

माना जाता है, उत्तरवैदिक काल में समाज में कई सारे धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन हुए, इसी समय में यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का की भी रचना हुई। ब्राम्हण ग्रंथ और उपनिषदों की रचना और संकलन का भी यही समय माना जाता है। वेदों की जगह मूर्ति पूजा का प्रचलन लगभग इसी समय हुआ, माना जाता है जातियों के निर्माण का प्रारंभ भी लगभग इसी समय हुआ। कुछ विद्वान महाभारत और रामायण को भी समय इसी युग का ही संकलित मानते हैं। लोग समुदायों में रहते थे कृषि करते थे, जौ इस समय तक की प्रमुख फसल थी, इसके बाद चावल और गेहूं ने कृषि उत्पादों में प्रमुख स्थान ले लिया, लकड़ी के हलों से कृषि की जाती थी, जिसकी फाल लोहे की बनी होती थी, लोहे का प्रयोग भी खूब होता था।

उत्तर वैदिक काल का प्रशासन

उत्तर वैदिक काल में राजन्य का पद सबसे बड़ा था। उसके पश्चात् सबसे बड़ा अधिकारी पुरोहित होता था। राजा के परामर्श के लिए पुरोहित समेत कई पदाधिकारी होते थे जिन्हें ‘रत्निन’ कहते थे। राज्याभिषेक समेत कुछ प्रमुख अवसरों पर राजा को इन रत्निन के घर भी जाना होता था। अलग-अलग ग्रंथों में रत्निन की संख्या और कुछ नाम भी अलग-अलग मिलते हैं। कुछ प्रमुख रत्निन थे –

महिषी (राजा की मुख्य रानी), सेनानी (सेनापति), सूत(राजा का सारथी), ग्रामणी(गाँव का मुखिया), भागद्ध (कर संग्रहकर्ता), संग्रहीता(कोषाध्यक्ष), क्षता(प्रतिहारी), गोविकर्तन(आखेट के समय राजा का मुख्य साथी, वनों में आखेट का प्रबंधक), पालागल (विदूषक, राजा का मित्र), अक्षावाप/अक्षवाप (पासे के खेल में राजा का सहयोगी)

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