History Of Sambhal Jama Masjid: संभल मस्जिद का असली इतिहास

Sambhal Masjid Ya Harihar Mandir : आज से हज़ारों साल पहले जब दुनिया में असभ्य बर्बर युग चल रहा था, उससे भी हजारों साल पहले से भारतवर्ष में सनातन सभ्यता फलफूल रही थी. जब दुनिया के दूसरे हिस्सों में लोगों के पास अपनी भाषा तक नहीं थी तब भारत में वेदों की रचना हो रही थी. विज्ञान, चिकित्सा, शिक्षा, धर्म और अध्यात्म और धन हर मामले में भारत, विश्वगुरु था. भारत ने दुनिया के कोने – कोने में रहने वाले लोगों को अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाने के लिए अपनेपन का दरवाजा खोला रखा लेकिन एक वक़्त ऐसा आया जब इस दरवाजे से विदेशी आक्रांताओं का आना हुआ. जिन जाहिल आक्रांताओं से ये बात बर्दाश्त नहीं हुई कि सनातनी इतना खुशहाल और संपन्न क्यों हैं ? तब उन्होंने हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति और हमारी विरासतों को तोडना शुरू कर दिया लूटना शुरू कर दिया और पहचान मिटाने के लिए सनातन की बुनियाद पर अपनी मजहबी इमारतों को तान दिया।

संभल हरिहर मंदिर का इतिहास

History Of Harihar Mandir Sambhal : चाहे अयोध्या का राम मंदिर हो या काशी विश्वनाथ, मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि हो या फिर सोमनाथ न जाने कितने मंदिर और मठों को बेरहमी से ध्वस्त कर दिया गया और उनपर मजहबी मीनारे गढ़ दी गईं. ऐसा ही एक प्रचीन विष्णु मंदिर उत्तर प्रदेश के संभल में था. सम्भल का जिक्र पुराणों में मिलता है, अग्निपुराण में उल्लेखित है कि यहीं इसी स्थान के हरिहर मंदिर में रहने वाले एक ब्राह्मण के घर भगवान विष्णु के दसवे अवतार कल्कि (Kalki Avatar Sambhal mandir) का जन्म होना है. लेकिन संभल में अब ना तो वह ब्राह्मण परिवार है और ना ही उनका वो हरिहर मंदिर। यहां कुछ बचा है तो वो है (14) शाही जामा मस्जिद और मस्जिद की दीवारों के अंदर का सच.

सच एक न एक दिन बाहर आता है, आखिर झूठ की बुनियाद पर बनी इमारतें कितनी टिक पाती हैं ? आज हम आपको उसी सच की दास्तान सुनाने जा रहे हैं.

संभल जामा मस्जिद का ASI सर्वे

Sambhalj Jama Masjid ASI Survey Report 1875: संभल की जामा मस्जिद, जिसे मुग़लिया आक्रांता बाबर ने सन 1529 के आसपास बनवाया था. ये सच है. लेकिन वो मस्जिद जिसकी बुनियाद पर बनी इसे छुपाया गया. आज जो ASI सर्वे हुआ उसे लोग कुछ भी कहें मगर सन साल 1875 में हुए ASI सर्वे के तथ्यों को तो झुठलाया नहीं जा सकता न. आपने हड़प्पा सभ्यता के बारे में तो सुना ही होगा, उसे खोजने वाले और विश्व पुरातात्विक मानचित्र पर पाने वाले कोई और नहीं मेजर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम थे, उनके ही द्वारा सन 1874 से लेकर 76 तक सम्भल शहर के प्राचीन पुरावशेषों का सर्वे हुआ. इसपर एक किताब भी छपी ‘मध्य दोआब और गोरखपुर में भ्रमण ‘ इस किताब के पेज नंबर 24 से लेकर 27 तक संभल का उल्लेख है.

संभल जामा मस्जिद के हरिहर मंदिर होने के सबूत

Evidence Of Sambhal Harihar Temple : इस किताब में लिखा है कि प्राचीन शहर संभल, रोहिलखण्ड में महिष्मति नदी पर बसा है. सतयुग में इस जगह का नाम सबृत या सब्रित और सम्भलेश्वर था. त्रेताकाल में इसे महदगिरि और द्वापर में पिंगला का जाता था बाद में इसका नाम सम्भल पड़ा. जब सर्वे टीम ने शाही जामा मस्जिद का सर्व किया। ASI रिपोर्ट में यह बताया गया कि मस्जिद के अंदर और बाहर बने स्तंभ हिन्दू मंदिरों से मिलते – जुलते हैं, इन स्तम्भों में प्लास्टर लगाकर इसके मंदिर होने के प्रमाण को छिपाने की कोशिश भी हुई है, कुछ स्तम्भों के प्लास्टर टूटे हुए थे और उनके अंदर लाल – भूरे रंग का स्तंभ दिख रहा था जो हिन्दू मंदिर जैसा था. 1875 में हुए सर्वे में मस्जिद के अंदर एक शिलालेख भी मिला था, जिसमे लिखा था इसका निर्माण 933 हिजरी में हुआ और ये भी लिखा था कि इस ढांचे का निर्माण मीर हिन्दू बेग ने पूरा कराया था, ASI रिपोर्ट कहती है मीर बेग़ ने हिन्दू मंदिर को मस्जिद में तब्दील किया था, शिलालेश इस बात का प्रमाण है. मीर हिन्दू बेग कोई और नहीं बाबर का दरबारी था.

न सिर्फ ये ASI रिपोर्ट बल्कि मुग़लियाँ आत्मकथाओं में भी इसका जिक्र है. जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर की आत्मकथा ‘बाबरनामा ‘ के पेज नंबर 687 में लिखा है कि 10 जुलाई 1529 को बाबर संभल आया था, इसमें ये भी लिखा है बाबर का दरबारी मीर हिन्दू बेग ने संभल में एक मंदिर को मस्जिद में तब्दील कर दिया था. जो बात बाबरनामा में लिखी है वही बात तो मस्जिद में रखे शिलालेख में भी मिली थीं.

इसके अलावा मुग़लकालीन इतिहासकार अबुफजल की लिखी किताब ‘आइन ए अकबरी में भी लिखा है कि संभल में एक मंदिर है जो एक ब्राह्मण का है, जिसके वंशज में से दसवा अवतार होना है. ये मंदिर अब शेख फरीद ए शकर गंज के उत्तराधिकारी जमाल का है.

ASI रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि संभल में सन 1529 के पहले तक मौजूद रहे हरिहर मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वक़्त हुआ था. मंदिर के गुंबद में भी हिन्दू चिन्ह थे जिन्हे बाद में प्लास्टर से ढक दिया गया.

आज जो लोग संभल की बाबरी मस्जिद को अपनी विरासत मान रहे हैं वो बाबर की आत्मकथा बाबरनामा में लिखी बातों को नहीं मानते, वो ASI सर्वे को भी नहीं मानते। लेकिन जानते सब है कि सच क्या है? सवाल ये है कि ये लड़ाई किस बात की है? सच को छुपाने की ? या सच के सामने आने के बाद भी झूठ को बचाने की ? इसका जवाब आप हमें कमेंट बॉक्स में दें. धन्यवाद।

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