रीवा का इतिहास भाग-4 | रीवा के प्रशासनिक व्यवस्था का इतिहास

History Of The Administrative System Of Rewa: दोस्तों, ‘रीवा के इतिहास यात्रा’ की इस चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। पिछले तीन भागों में हमने रीवा के बसने और नामकरण से लेकर उसके मोहल्लों तक की कहानियाँ जानी थीं। आज हम रीवा राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था पर बात करेंगे। हम उस दौर में लौटेंगे, जब रीवा एक रियासत हुआ करती थी। जानेंगे उस दौर में रीवा में शासन और प्रशासन किस तरह चलता था। यहाँ तहसीलों की स्थापना कब हुई और इनकी संख्या कितनी थी। उस समय प्रशासनिक दृष्टि से कौन-कौन से अफसर हुआ करते थे, तो आइए चलते हैं एक बार फिर से रीवा के अतीत की तरफ।

कैसे हुई रीवा में तहसीलों की शुरुआत

रीवा आज मध्यप्रदेश का एक जिला है, संभागीय मुख्यालय है। प्रशासनिक दृष्टि से इसमें कई ब्लॉक और तहसीलें हैं। लेकिन रियासती दौर पर यहाँ का प्रशासनिक स्वरूप कैसा था, आइए जानते हैं। प्रशासन के इतिहास पर अगर नजर डालें, तो हमें पता चलता है, हर युग और काल का अपना एक प्रशासनिक स्वरूप होता था, इसीलिए यहाँ पर भी युग अनुसार ऐसा ही रहा होगा। लेकिन रीवा में आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत, भारत के अन्य प्रांतों की तरह ही, ब्रिटिश काल में ही हुई। 1835 में महाराज विश्वनाथ सिंह के जमाने में इसकी नींव पड़ी और समय के साथ इस व्यवस्था में प्रगति होती ही रही।

ग्वालियर के बाद मध्यभारत की दूसरी सबसे बड़ी रियासत थी रीवा

रीवा, मध्यभारत में, ग्वालियर के बाद दूसरी सबसे बड़ी रियासत थी। इसका क्षेत्रफल लगभग तेरह हजार वर्ग किलोमीटर था। भौगोलिक दृष्टि से देखें, तो कैमोर पर्वत पूरे राज्य को,उत्तरी और दक्षिणी दो क्षेत्रों में विभक्त करता था। आज के हिसाब से उत्तरी हिस्से में रीवा और सतना जिले हैं और दक्षिणी हिस्से में सीधी-शहडोल का क्षेत्र है।

ब्रिटिश शासन द्वारा करवाया गया पहला सर्वे बंदोबस्त

ब्रिटिश सरकार द्वारा रीवा में पहला सर्वे बंदोबस्त 1881 में करवाया गया था, तभी व्यवस्थित रेवेन्यू मैनुअल का निर्माण किया गया और शासन के प्रबंध और सुगमता की दृष्टि से रीवा राज्य के समस्त क्षेत्र को सात परगनों में बांटा गया, जिन्हें तहसील कहते थे। इन सात तहसीलों में चार- हुजूर अर्थात रीवा, रघुराजनगर अर्थात सतना, त्योंथर और मऊगंज, कैमोर पर्वत के उत्तरी क्षेत्र में थीं। जबकि तीन तहसीलें- बर्दी, रामनगर और सोहागपुर कैमोर पर्वत के दक्षिणी क्षेत्रों में स्थित थीं।

महाराज व्यंकट रमण सिंह जूदेव के समय में करवाया गया दूसरा सर्वे बंदोबस्त

कालांतर में महाराज व्यंकट रमण सिंह जूदेव के समय 1903 में, दूसरा सर्वे बंदोबस्त करवाया गया और शासन में सुगमता लाने के लिए, राजस्व और दीवानी के न्याय मामलों में प्रजा की सुविधा के लिए, मुख्यतः दक्षिणी क्षेत्रों में फिर से तहसीलों का पुनर्गठन किया गया। पहले जहाँ तहसीलों की संख्या सात थी, बढ़ कर नौ हो गई। उत्तरी क्षेत्रों में हुजूर, रघुराजनगर और मऊगंज तहसील यथावत रहीं, लेकिन त्योंथर की जगह सितलहा को नई तहसील बनाया गया।

सर्वे बंदोबस्त के बाद तहसीलों का पुनर्गठन

जबकि दक्षिणी क्षेत्रों में पहले केवल तीन तहसीलें थीं। पहली थी बर्दी, जिसमें आज के सीधी और सिंगरौली जिले शामिल थे। दूसरी थी रामनगर, जिसमें मुख्यतः आज के शहडोल, सतना और सीधी जिले के कुछ हिस्से शामिल थे। जबकि दक्षिण में स्थित तीसरी तहसील थी सोहागपुर, जिसमें मुख्यतः आज के उमरिया, अनूपपुर के साथ ही शहडोल जिले का भी कुछ हिस्सा शामिल था। इसीलिए प्रशासनिक दृष्टि से इस दक्षिण क्षेत्र में स्थित तहसीलों का पुनर्गठन किया गया, और तीन तहसीलों की जगह पांच तहसीलों का निर्माण किया गया। बर्दी तहसील को दो हिस्सों में बाँटकर दो नई तहसीलें, देवसर और गोपद-बनास बनाईं गईं, गोपद-बनास तहसील का मुख्यालय सीधी को बनाया गया। जबकि रामनगर की जगह ब्यौहारी को नई तहसील बनाया गया। और सोहागपुर से अलगकर एक और तहसील बांधवगढ़ की निर्माण किया गया, बांधवगढ़ तहसील का मुख्यालय उमरिया को बनाया गया।

तहसील का प्रमुख कहलाता था नायब तहसीलदार

तहसील के प्रधान अफसरों को तहसीलदार कहा जाता था। जो दीवानी और न्याय से संबंधित कार्य करते था। तहसीलदरों के नीचे आवश्यकतानुसार नायाब तहसीलदार, कानूनगो, खासकलम और पटवारी होते थे। इन्हीं के अंदर में ही रीवा रियासत का पूरा फौजदारी और दीवानी मामलों के काम होते थे। प्रत्येक तहसीलों के तहसीलदरों को अपने-अपने क्षेत्रों में डिप्टी मजिस्ट्रेट का अधिकार भी प्राप्त होता था।

कई तहसीलों में स्थानीय ठाकुर थे आनरेरी मजिस्ट्रेट

इसके साथ ही यदि किसी तहसील में किसी पवाईदार अर्थात ठाकुर को आनरेरी मजिस्ट्रेट का अधिकार प्राप्त होता था, तो वह भी तहसीलदार के साथ मिलकर विवादों को निपटाने में प्रमुख भूमिका निभाते थे। राज्य में पांच ऑनरेरी मजिस्ट्रेट- रघुराजनगर, ब्योहारी, गोपद-बनास, देवसर और रीवा खास में थे। इनमें से रीवा को छोड़कर बाकि चार जगह उस इलाके के पवाईदार ही आनरेरी मजिस्ट्रेट थे। रघुराजनगर अर्थात सतना तहसील में रामपुर बघेलान, ब्योहारी तहसील में देवराज नगर, गोपद-बनास तहसील अर्थात सीधी में रामपुर नैकिन और देवसर तहसील में मड़वास के ठाकुर साहब को आनरेरी मजिस्ट्रेट का दर्जा प्राप्त था।

रीवा रियासत में थे दो जिले

बहुत दिनों तक रियासत में केवल एक ही मजिस्ट्रेट होता था, जो फौजदारी के मुकदमे देखता था। दीवानी से संबंधित मुकादमे को जो अधिकारी देखता था, उसे सिविल जज कहते थे। कालांतर में सिविल जज का पद समाप्त करके उसका अधिकार भी मजिस्ट्रेट को ही दे दिया गया। और राज्य को दो भागों अर्थात आज के हिसाब से जिलों में बाँट दिया गया। उत्तरी जिला, जिसका मुख्यालय रीवा था और दक्षिणी जिला, जिसका मुख्यालय रामनगर था। डिप्टी मजिस्ट्रेट और ऑनरेरी मजिस्ट्रेट के द्वारा किये गए फैसलों की अपील, इसी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहाँ ही होती थी।

रियासत में एक ज्यूडिशियल कमिश्नर भी होता था

एक पद ज्यूडिशियल कमिश्नर का होता था। जो अदालत सेशन का जज होता था और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के भी सारे अधिकार इसे प्राप्त होता था। दीवानी के मामले में इस अधिकारी के अधिकार अपरिमिति होते थे। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए दीवानी और फ़ौजदारी के फैसले की अपील भी इसी अफसर के पास होती थी।

रीवा की सर्वोच्च संस्था थे रीवा के महाराज

लेकिन रियासत में शासन और प्रशासन की दृष्टि से जो संस्था सर्वोच्च हुआ करती थी। वह थे स्वयं रीवा के महाराज, जिनके यहाँ दीवानी और फौजदारी मामलों की अंतिम सुनवाई और निर्णय होता था। इसीलिए जो यह अदालत होती थी, उसे हाईकोर्ट कहा जाता था, इसके प्रधान स्वयं रीवा नरेश हुआ करते थे। जिनको अपनी प्रजा पर शासन और न्याय संबंधी पूर्ण अधिकार प्राप्त होता था। जबकि, राज्य के प्रधानमंत्री अर्थात दीवान, इन कार्यों में महाराज की मदद किया करते थे, अर्थात वह राज्य के प्रशासन के प्रमुख हुआ करते थे। खास-कलम भी एक प्रमुख अधिकारी होता था, जिनका कार्य सम्पूर्ण लेखा-जोखा रखना था। इसी तरह तहसीलों में भी खासकलम और उनके मुहर्रिर होते थे, जो लेखा-जोखा का कार्य करते थे।

1871 में बनी थी बघेलखंड पॉलिटिकल एजेंसी

रीवा रियासत प्रारंभ में मध्यभारत के बुंदेलखंड एजेंसी में आती था, लेकिन 1871 में इस क्षेत्र के लिए एक नई एजेंसी बघेलखंड का निर्माण किया गया। जिसका मुख्यालय सतना हुआ करता था। जहाँ पर एक पॉलिटिकल एजेंट बैठा करता था, जो केंद्रीय ब्रिटिश सरकार की तरफ से रियासतों से संबंधित होता था।

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