Halshashti (Halchhath) Vrat 2025-हलषष्ठी,(हलछठ) व्रत 2025,तिथि-महत्व,पूजन विधि और कथा

Halshashti (Halchhath) Vrat 2025-Date, Significance, Legend & Puja Method – भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हलषष्ठी व्रत (Halshashti Vrat) भारतीय ग्रामीण और पारंपरिक जीवन का एक प्रमुख पर्व है। इसे हलछठ, हरछठ या ललई छठ भी कहा जाता है। यह पर्व विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था, जिनका मुख्य शस्त्र हल और मूसल है। इसी कारण इस व्रत में हल की पूजा का विशेष महत्व है। वर्ष 2025 में हलषष्ठी व्रत 14 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा। यह व्रत जन्माष्टमी से दो दिन पहले आता है और महिलाओं के लिए विशेष धार्मिक आस्था और भावनाओं से जुड़ा होता है।

पौराणिक कथा-Mythological Storyग्वालिन के बलराम का पुनर्जन्म
पुराणों के अनुसार, एक समय एक ग्वालिन का पुत्र बीमार हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उस दिन भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि थी और गांव की सभी महिलाएं हलषष्ठी का व्रत कर रही थीं। ग्वालिन ने शोक में आकर अपने पुत्र को एक झोले में रख दिया और पास के खेत की मेड़ पर बैठ गई। उसी समय वहां खेत जोतने वाले किसान ने हल चला दिया, जिससे भूमि फट गई और उसमें एक गहरी दरार बन गई। ग्वालिन ने अपना मृत पुत्र उस दरार में रखकर उसे मिट्टी से ढक दिया और चली गई।
कुछ समय बाद गांव की महिलाएं बलराम जी की पूजा कर लौट रही थीं। उन्होंने ग्वालिन से व्रत का महत्व और नियम बताए और छठ माता से अपने पुत्र की कामना के लिए हरछठ का व्रत करने को कहा और कहा कि हल से जोती गई भूमि का अन्न, फल या सब्जी इस दिन नहीं खाना चाहिए। ग्वालिन ने उनका अनुसरण करते हुए छठ माता और बलराम जी की पूजा की और व्रत का पालन किया। चमत्कार स्वरूप उसका पुत्र जीवित हो गया और महिला ने अपने पुत्र का नाम भी बलराम रखा ,तभी से यह व्रत संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए संतानवती माताएं हलषष्ठी का पर्व निराहार व्रत कर अटूट श्रद्धा के साथ मनानें लगीं ।

हलषष्ठी व्रत 2025 की तिथि और शुभ समय – Halshashti Vrat 2025 Date & Timings

  • षष्ठी तिथि प्रारंभ – 14 अगस्त 2025, प्रातः 04:23 AM
  • षष्ठी तिथि समाप्त – 15 अगस्त 2025, प्रातः 02:07 AM
  • व्रत का महत्व – Significance of the Vrat – हलषष्ठी व्रत को करने से संतान के जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन बलराम जी के साथ हल (plough) की पूजा की जाती है, क्योंकि हल खेती और अन्न का प्रतीक है, लेकिन व्रत के दौरान खेती से जुड़ी वस्तुओं का सेवन वर्जित होता है।

व्रत के विशेष नियम-Special Rules of Halshashti Vrat इस दिन जमीन में उगाई हुई कोई भी चीज़ जैसे अनाज, फल, साग-सब्जी आदि नहीं खाई जाती। महिलाएं यह व्रत बिना अन्न-जल के रखती हैं,पूजा और सेवन के लिए केवल भैंस का दूध, दही और घी प्रयोग में लाते हैं, जबकि गाय का दूध, दही और घी का उपयोग वर्जित है।

विशेष और अनिवार्य सामग्री – महुआ,पसई के चावल,सतनजा यानि सात तरह के अनाज ,झपला और महुआ के पत्ते,भैंस का दूध, दही और घी,भैंस का गोबर,मिट्टी के छोटे कुल्हड़,पलाश की शाखा।

पूजन विधि – Puja Method – पलाश की एक शाखा को जमीन या गमले में गाड़कर पूजा स्थान पर रखें। अपने पुत्र के नाम से सात छोटे मिट्टी के कुल्हड़ों में भुने हुए अनाज या मेवा भरें,भैंस के दूध, दही और घी से पूजा करें,संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए व्रत का संकल्प लें और इसके बाद ही पूजन शुरू करें ।

सांस्कृतिक महत्व – Cultural Importance – हलषष्ठी व्रत सिर्फ धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि खेती-किसानी, मातृत्व और जीवन की समृद्धि से भी जुड़ा है। यह पर्व ग्रामीण जीवन की मिट्टी और परंपराओं को संरक्षित करता है। इसमें खेती के औजार, फसल और प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान की भावना प्रकट होती है।

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