Dularchand Murder Case : बिहार की राजनीति में बाहूबली सीट कही जाने वाली मोकामा विधानसभा सीट ने हलचल मचा दी है। मोकामा विधानसभा दशकों से बाहुबली राजनीति, जातीय समीकरण और सत्ता के खेल का गढ़ रहा है। लेकिन इस बार यहाँ की राजनीति एक नई दिशा में जा रही है, जिसकी शुरुआत दुलाराचंद हत्याकांड से हुई है। दुलाराचंद की हत्या क्यों हुई, किसने की? ये जानने से पहले ये जान लेते हैं कि मोकामा विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण क्या हैं।
क्या है मोकामा सीट का इतिहास
दरअसल, मोकामा, बिहार का एक ऐसा क्षेत्र है, जो अपनी जातीय विविधता, बाहुबली नेताओं और चुनावी जंग के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ की राजनीति का समीकरण हमेशा से ही जातीय आधार पर तय होता रहा है। यहाँ का इतिहास बताता है कि यादव, भूमिहार, कुर्मी, मुस्लिम और पासवान का समीकरण इस क्षेत्र की सत्ता की दिशा तय करता रहा है। इन जातियों का अपने-अपने वोट बैंक हैं, जो चुनाव के परिणाम को निर्णायक बनाते हैं।
मोकामा की राजनीति में अनंत सिंह की छवि
मोकामा की राजनीति का एक बड़ा नाम अनंत सिंह है, जो भूमिहार जाति से हैं। इस क्षेत्र में वर्षों से दबंग छवि के साथ वर्चस्व कायम किए हुए हैं। उनके नेतृत्व में क्षेत्र ने बाहुबली राजनीति का अनुभव किया है। वहीं, यादव समाज का प्रभाव भी यहाँ बहुत मजबूत है, जो लालू यादव जैसे बड़े नेताओं की वजह से राजनीतिक तौर पर अहम भूमिका निभाता आया है।
दुलारचंद हत्या से बदली मोकामा की राजनीति
अब बात करते हैं उस शख्स की, जिसने इस क्षेत्र की राजनीति को हिला कर रख दिया, वो है दुलारचंद यादव। यह नाम बिहार की राजनीति में एक खास स्थान रखता है। वह कभी लालू यादव के करीबी थे, जिन्होंने यादव वोट बैंक को अपने पक्ष में किया। बाद में, वे अलग-अलग दलों के साथ जुड़े, लेकिन पिछले दिनों की खबरें और घटनाक्रम दर्शाते हैं कि उनका राजनीतिक सफर कई ध्रुवों से गुजरा है। हाल ही में, उनकी हत्या ने पूरे क्षेत्र को सन्नाटा में डाल दिया है। यह घटना सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि जातीय और राजनीतिक समीकरणों में एक बड़ा बदलाव लेकर आई है।
दुलारचंद की हत्या से जातीय राजनीति की एंट्री
दुलारचंद यादव की हत्या एक बाहुबली नेता की हत्या है, अब पूरे क्षेत्र में जातीय गोलबंदी को फिर से जीवित कर रही है। आमतौर पर, इस क्षेत्र में भूमिहार और यादव के बीच टकराव रहा है, लेकिन अब, दुलारचंद यादव की मौत के बाद, यादव समाज का रुझान फिर से आरजेडी की तरफ बढ़ रहा है। वहीं, दूसरी ओर, भूमिहार वोट फिर से अपने पुराने रुख पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं।
1990 जैसे हो गई मोकामा की सियासत
दुलारचंद हत्याकांड इस बात संकेत है कि मोकामा की सियासत अब फिर से 1990 के दशक जैसी जातीय गोलबंदी और ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ रही है। सवाल ये है कि इस बार चुनाव का नेतृत्व किस तरह की रणनीति तय करेगा? कौन कितनी संख्या में वोट प्राप्त कर सकेगा? और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये हत्या और जातीय गोलबंदी मिलकर चुनाव के परिणाम को तय कर पाएँगी?
मोकामा में तीन लोगों के बीच सियासी युद्ध
मोकामा की इस चुनावी जंग में मुख्य रूप से तीन चीजें नजर आ रही हैं। पहले हैं जदयू के अनंत सिंह, जो सालों से इस क्षेत्र में भूमिहार वर्चस्व कायम करने वाले, दबंग छवि वाले नेता हैं। अनंत सिंह का प्रभाव इतना गहरा है कि वे क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों का अहम हिस्सा माने जाते हैं। इस चुनावी जंग में दूसरा नाम राजद के बीना देवी का है, जो लालू यादव की करीबी और यादव समाज की प्रतिनिधि हैं, और अपने प्रभाव के बल पर इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं। वहीं, तीसरा नाम जनसुराज के पीयूष प्रियदर्शी का है, जो खुद धानुक जाति से हैं और इस बार बिहार चुनाव का नया चेहरा भी हैं। उनकी उम्मीद है कि इस जाति का सहानुभूति वोट उन्हें जीत की ओर ले जाएगा। ये तीन नेता, अपने-अपने जातीय और राजनीतिक आधार पर, मोकामा का भविष्य तय करने में लगे हैं।
मोकामा में वोटों का होगा दो भागो में बंटवारा
वहीं, भूमिहार समाज के वोटरों की बात करें तो, वो भी दो भागों में बंट गए हैं। एक तरफ, सालों से इस क्षेत्र में अनंत सिंह के प्रभाव में रहे, तो दूसरी तरफ सूरजभान सिंह का परिवार है, जिनकी पत्नी बीना देवी आरजेडी की प्रत्याशी हैं। अगर भूमिहार वोट दो हिस्सों में बंट जाते हैं, तो इसका सीधा असर एनडीए और आरजेडी दोनों पर पड़ेगा। अगर यह बंटवारा होता है, तो फिर से इस क्षेत्र में समीकरण उलझ सकते हैं और परिणाम काफी हद तक इस विभाजन पर निर्भर करेगा।
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