दलाई लामा को ‘भारत-रत्न’ दिए जाने की उठी मांग

Demand ‘Bharat Ratna’ For Dalai Lama: हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने अपना 90वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया, जहाँ पर उन्होंने उत्तराधिकार पर भी दलाई ने बयान दिया। इस अवसर पर भारत में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की मांग उठ रही है। हालांकि दलाई लामा को भारत-रत्न मिलता है या नहीं और इस पर सरकार का रुख क्या होगा, यह सुनिश्चित नहीं होगा। उत्तराधिकारी और भारत रत्न के प्रस्ताव को लेकर आने वाले दिन महत्वपूर्ण होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत सरकार इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाती है और इसका भारत-चीन संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

दलाई लामा के लिए भारत रत्न की मांग

दलाई लामा के जन्मदिन के अवसर पर एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया। एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑल पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत ने दलाई लामा को भारत रत्न देने का प्रस्ताव रखा है। इस फोरम, जिसका नेतृत्व बीजद के राज्यसभा सांसद सुजीत कुमार कर रहे हैं, जिन्होंने लगभग 80 सांसदों के हस्ताक्षर अब तक लिए हैं। फोरम का लक्ष्य 100 सांसदों का समर्थन हासिल करना है। इसके बाद ही इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

इस प्रस्ताव में न केवल दलाई लामा को भारत रत्न देने की मांग की गई है, बल्कि उन्हें भारतीय संसद में भाषण देने का अवसर प्रदान करने और भारत में बसी तिब्बती बस्तियों के लिए बेहतर सुविधाओं की व्यवस्था करने की बात भी शामिल है। सांसदों का यह कदम दलाई लामा के शांति, करुणा और मानवता के प्रति योगदान को सम्मानित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।

उत्तराधिकारी पर दलाई लामा का बयान

धर्मशाला में आयोजित समारोह के दौरान दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि उनके उत्तराधिकारी का चयन उनकी मृत्यु के बाद गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा किया जाएगा। इस प्रक्रिया में केवल तिब्बती समुदाय और उनकी बौद्ध परंपराओं को मानने वाले लोग ही शामिल होंगे। दलाई लामा ने अपने बयान में चीन की किसी भी भूमिका को सिरे से खारिज कर दिया, जिससे बीजिंग की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। चीन लंबे समय से दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में अपनी दखलअंदाजी की कोशिश करता रहा है, लेकिन तिब्बती समुदाय और भारत ने इस मुद्दे पर हमेशा स्वायत्तता का समर्थन किया है।

दलाई लामा का यह बयान न केवल तिब्बती बौद्ध परंपराओं की स्वतंत्रता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वह अपनी आध्यात्मिक विरासत को लेकर कितने स्पष्ट और दृढ़ हैं। उनके इस बयान ने तिब्बती समुदाय में उत्साह का संचार किया है, लेकिन साथ ही यह भारत और चीन के बीच कूटनीतिक तनाव का कारण भी बन गया है।

भारत की स्थिति और राजनीतिक महत्व

दलाई लामा को भारत रत्न देने का प्रस्ताव न केवल उनके वैश्विक योगदान को सम्मानित करने का प्रयास है, बल्कि यह भारत की उस नीति को भी रेखांकित करता है, जिसमें वह तिब्बती समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता का समर्थन करता है। दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए उनकी लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना की, जिससे इस मुद्दे का महत्व और बढ़ गया है। हालांकि, भारत रत्न का प्रस्ताव अभी प्रारंभिक चरण में है और इसे औपचारिक रूप से स्वीकार करने के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक होगी। इस प्रस्ताव के पारित होने पर यह भारत-चीन संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है, क्योंकि यह भारत के तिब्बत नीति को और स्पष्ट करेगा।

दलाई लामा का योगदान

दलाई लामा ने न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि शांति, अहिंसा और करुणा के अपने संदेशों के माध्यम से वैश्विक मंच पर एक विशेष स्थान बनाया। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, और भारत में उनके योगदान को देखते हुए भारत रत्न की मांग को व्यापक समर्थन मिल रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *