Delhi high court decision : दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विधवा बहू अपने दिवंगत ससुर की पैतृक संपत्ति (सहदायिक संपत्ति) से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। यह फैसला न्यायमूर्ति अनिल छत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने बुधवार को सुनाया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ससुर की व्यक्तिगत या स्व-अर्जित संपत्ति से गुजारा भत्ता नहीं लिया जा सकता, बल्कि यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति तक ही सीमित है।
ससुर की संपत्ति पर कब तक दावा नहीं रहेगा? Delhi high court decision
उच्च न्यायालय ने हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) की धारा 19(1) का हवाला देते हुए कहा कि यह कानून विधवा बहू को अपने ससुर से गुजारा भत्ता पाने का वैधानिक अधिकार देता है। यह अधिकार तब लागू होता है जब बहू अपने पति की संपत्ति या अपने बच्चों से गुजारा भत्ता प्राप्त करने में असमर्थ हो। हालाँकि, धारा 19(2) के तहत ससुर की ज़िम्मेदारी केवल पैतृक संपत्ति तक ही सीमित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि ससुर के पास पैतृक संपत्ति नहीं है और केवल स्व-अर्जित संपत्ति या अन्य संपत्तियाँ हैं, तो विधवा बहू का कोई कानूनी दावा नहीं है।
क्या है यह पूरा मामला? Delhi high court decision
यह फैसला एक विधवा बहू की याचिका पर आया, जिसने अपने दिवंगत ससुर की संपत्ति से गुजारा भत्ता मांगा था। महिला के पति की मृत्यु मार्च 2023 में हुई थी, जबकि उसके ससुर का दिसंबर 2021 में निधन हो गया था। निचली अदालत ने महिला की गुजारा भत्ता याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ उसने उच्च न्यायालय में अपील की थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए विधवा बहू के पक्ष में फैसला सुनाया।
भरण-पोषण अधिनियम क्या कहता है? Delhi high court decision
न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसे कानूनों की व्याख्या करते समय एक व्यावहारिक और समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए, जो प्राचीन विधानमंडलों के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप हो। हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 (vii) के अंतर्गत, विधवा बहू को अपने ससुर की संपत्ति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्ते वह अपने पति या अपने बच्चों की संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ हो। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति पर लागू होता है, ससुर की निजी संपत्ति पर नहीं।
न्यायालय के इस निर्णय का क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह निर्णय उन विधवा बहुओं के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है, जिन्हें अपने पति की मृत्यु के बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह निर्णय न केवल उनके अधिकारों को मज़बूत करता है, बल्कि सामाजिक न्याय और पारिवारिक सुरक्षा के मूल्यों को भी बढ़ावा देता है। यह निर्णय उन परिवारों को भी स्पष्ट संदेश देता है कि पैतृक संपत्ति में विधवा बहू का अधिकार कानूनी रूप से सुनिश्चित है। यह समाज में विधवाओं की स्थिति में सुधार की दिशा में एक मिसाल बन सकता है।