दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन पर लगाई रोक

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Patanjali Chyawanprash Case: कोर्ट ने कहा कि पतंजलि की विज्ञापन रणनीति से उपभोक्ताओं में भ्रम फैल रहा है और इससे डाबर की साख को नुकसान पहुंच सकता है। डाबर ने पतंजलि पर अपने उत्पाद की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए पतंजलि को भविष्य में इस तरह के विज्ञापन न चलाने की हिदायत दी है।

Patanjali Chyawanprash Case: दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ भ्रामक और अपमानजनक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है। कोर्ट ने कहा कि पतंजलि की विज्ञापन रणनीति से उपभोक्ताओं में भ्रम फैल रहा है और इससे डाबर की साख को नुकसान पहुंच सकता है। डाबर ने पतंजलि पर अपने उत्पाद की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए पतंजलि को भविष्य में इस तरह के विज्ञापन न चलाने की हिदायत दी है। यह फैसला प्रतिस्पर्धा और नैतिक विज्ञापन के क्षेत्र में एक अहम उदाहरण बन सकता है।

दिल्ली हाईकोर्ट में डाबर इंडिया लिमिटेड और पतंजलि आयुर्वेद के बीच च्यवनप्राश से जुड़े विज्ञापन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। डाबर का आरोप है कि पतंजलि अपने विज्ञापनों के ज़रिए डाबर के च्यवनप्राश को जानबूझकर “साधारण” और “कमज़ोर” बताकर बदनाम कर रहा है, जिससे उपभोक्ताओं में भ्रम पैदा हो रहा है और डाबर की साख को नुकसान हो रहा है।

डाबर बनाम पतंजलि: कब हुई थी विवाद की शुरुआत

इस विवाद की शुरुआत साल 2017 में हुई थी, जब डाबर ने पतंजलि के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उस समय कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए पतंजलि को ऐसे भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया था। कोर्ट ने माना था कि पतंजलि के विज्ञापनों में डाबर की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई जा रही है और इससे बाज़ार में असंतुलन पैदा हो सकता है।

दिसंबर 2024 में डाबर ने फिर से पतंजलि के खिलाफ एक नई याचिका दायर की। इस बार मामला और भी गंभीर था। डाबर का दावा था कि पतंजलि के विज्ञापनों में स्वामी रामदेव ने सीधे तौर पर यह कह दिया कि केवल पतंजलि का च्यवनप्राश ही प्राचीन आयुर्वेदिक परंपराओं के अनुसार तैयार किया गया है, जबकि अन्य ब्रांड्स को आयुर्वेद का सही ज्ञान नहीं है।

पतंजलि पर झूठ बोलने का आरोप

डाबर ने कोर्ट में यह भी बताया कि उनका उत्पाद ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत बनाए गए सभी नियमों का पालन करता है, और वे बाज़ार में 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पतंजलि ने अपने विज्ञापन में 51 जड़ी-बूटियों के प्रयोग का दावा किया, जबकि उत्पाद में केवल 47 जड़ी-बूटियां पाई गईं। यहां तक कि उसमें पारा (mercury) जैसे हानिकारक तत्वों के उपयोग का भी आरोप लगा।

इस मामले में कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया। 24 दिसंबर 2024 को अदालत ने पतंजलि को समन जारी कर जवाब मांगा और 30 जनवरी 2025 को सुनवाई की तारीख तय की। इसके बाद 10 और 27 जनवरी को भी सुनवाई हुई, जिसमें डाबर ने अपने पक्ष में दलीलें रखीं। अंततः कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए पतंजलिtoभविष्य में इस तरह के भ्रामक और अपमानजनक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया।

हमने डाबर का नाम नहीं लिया: पतंजलि

पतंजलि की ओर से वकील जयंत मेहता ने कहा कि उनके विज्ञापनों में कहीं भी डाबर का नाम नहीं लिया गया है। हमने केवल अपने उत्पाद की गुणवत्ता की बात की है। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रांड्स को अपनी vorsorge अपनी बात कहने का性अन्यायिक रूप से बदनाम करने और गलत विज्ञापन करने की कोशिश कर रहे हैं। पतंजलि ने कहा कि हमने डाबर का नाम नहीं लिया, लेकिन उनके विज्ञापनों में यह संदेश था कि केवल पतंजलि का च्यवनप्राश ही प्रामाणिक है।

हालांकि पतंजलि के विज्ञापनों में स्वामी रामदेव का बयान था कि “जिनको आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धन्वंतरि और च्यवन ऋषि की परंपरा में ‘असली’ च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?” यह बयान यह संदेश देता था कि केवल पतंजलि का च्यवनप्राश प्रामाणिक है, और अन्य ब्रांड्स नकली या साधारण हैं।

ये विज्ञापन विभिन्न टीवी चैनलों और कई अखबारों में प्रकाशित हुए। डाबर के अनुसार, इन्हें तीन दिनों में 900 बार प्रसारित किया गया, जिससे उपभोक्ताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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