भारतीय पैरा-एथलीट दीप्ति जीवनजी (Deepthi Jeevanji) ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में महिलाओं की 400 मीटर टी20 स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल करके भारत के लिए 16वां पदक जीता। उन्होंने दौड़ को 55.82 सेकंड में पूरा कर पोडियम पर स्थान हासिल किया।
पैरालंपिक में दीप्ति को गौरव हासिल करना आसान नहीं था। बौद्धिक विकलांगता के साथ जन्म लेने के कारण उन्हें सामाजिक चुनौतियों और व्यक्तिगत संघर्षों से पार पाना पड़ा। उनकी दृढ़ता और कड़ी मेहनत ने उन्हें भारत की सबसे प्रेरणादायक एथलीटों में से एक बना दिया है।
वारंगल में प्रारंभिक संघर्ष
दीप्ति जीवनजी Deepthi Jeevanji आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के एक छोटे से गांव कल्लेडा की रहने वाली हैं। बचपन में उन्हें अपने साथी ग्रामीणों से बहुत आलोचना और ताने सुनने पड़े, जिन्होंने उनकी संज्ञानात्मक विकलांगता के कारण उन्हें “मानसिक विक्षिप्त” और “बंदर” जैसे अपमानजनक नामों से पुकारा। इन अनुभवों ने उन्हें हतोत्साहित नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने वैश्विक मंच पर खुद को साबित करने के लिए अपने दृढ़ संकल्प को मजबूत किया।
उनके माता-पिता, जीवनजी यादगिरी और धनलक्ष्मी ने उन्हें सहारा देने में अहम भूमिका निभाई। खेत बेचने और गुजारा करने के लिए संघर्ष करने जैसी कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने अपनी बेटी की क्षमता पर कभी भरोसा नहीं खोया।
विश्व एथलेटिक्स पैरा चैम्पियनशिप में शानदार जीत
पैरालिंपिक में अपनी सफलता से पहले, दीप्ति ने जापान के कोबे में विश्व एथलेटिक्स पैरा चैंपियनशिप में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया था। इस जीत ने उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया, जिससे भारत के शीर्ष पैरा-एथलीटों में से एक के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हो गई।
उनकी माँ ने याद किया कि कैसे एक बार समुदाय ने उनसे दीप्ति की विकलांगता के कारण उसे अनाथालय भेजने का आग्रह किया था। आज, उनकी उपलब्धियाँ उनकी ताकत और उनके परिवार के अटूट समर्थन का प्रमाण है।
पैरालिम्पिक्स की सफलता पर परिवार की भावनात्मक प्रतिक्रिया
पैरालिंपिक में Deepthi Jeevanji के कांस्य पदक ने उनके परिवार को बहुत गर्वित किया। उनके पिता यधागिरी, जो ड्राइवर के तौर पर काम करते हैं, ने बताया कि वे इतने बड़े दिन पर भी काम से छुट्टी नहीं ले सकते थे, लेकिन उनका ध्यान हमेशा अपनी बेटी की पेरिस में हुई उपलब्धि पर था।
उनकी माँ के लिए यह जीत उनकी बेटी की दृढ़ता और आत्मविश्वास का प्रतीक थी। दीप्ति, जो कभी एक शांत बच्ची थी और जिसे लोग चिढ़ाते थे, आज पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।
बाधाओं को तोड़ना और लाखों लोगों को प्रेरित करना
दीप्ति जीवनजी की कहानी विपरीत परिस्थितियों पर काबू पाने का एक सशक्त उदाहरण है। विकलांगता से जुड़ी सामाजिक वर्जनाओं के बावजूद सफलता की ओर उनका बढ़ना उनकी ताकत और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। Deepthi Jeevanji भारत और उसके बाहर लाखों लोगों को प्रेरित करती रहेंगी, यह साबित करते हुए कि अगर आपमें सफल होने की इच्छाशक्ति है तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं है।
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