BJP मंडल और कमंडल को साधने में सफल हो गई?

BJP succeeded in controlling Mandal and Kamandal

हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सभी अटकलों को ख़ारिज करते हुए जीत हासिल की. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा ने बहुमत से ज्यादा सीटें हासिल की है. 3 राज्यों में सम्पन हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण के बाद इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। कांग्रेस को विश्वास था कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी को नुकसान हो सकता है. लेकिन नतीजा कांग्रेस की सोच से विपरीत था.

MP Politics: भारतीय जनता पार्टी ने अपने चिर-परचित वोट के अलावा बड़ी संख्या में OBC वोट भी हासिल किया। भाजपा ने छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी इलाकों की ज्यादातर सीटें जीतीं, वहीं अगर बात मध्य प्रदेश की करें तो पार्टी को अच्छी खासी संख्या में ओबीसी समुदाय का वोट मिला। इन नतीजों के बाद एक सवाल जो राजनीति में रूचि रखने वालों के मन में उठ रहा है कि क्या हिंदुत्व के मुद्दे के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष को जातिगत राजीनीति में भी पीछे छोड़ दिया है?

क्या जिस तरह से भाजपा ने विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन किया है, लोकसभा चुनाव में भी बढ़त हासिल कर पाएगी या विपक्ष बड़ी चुनौती पेश करेगा? क्या ओबीसी वोट बैंक लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी के साथ ही जाएगा?

थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं ‘मंडल’ ने कैसे बदल दी देश की सियासत

भारत के मोस्ट लव्ड प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की जरुरत जाहिर करने के लिए कहे थे- ‘जब तक समाज में विषमता है, तब तक सामाजिक न्याय की आवश्यकता है‘. “अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के इन शब्दों से ये जाहिर होता है कि कैसे मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद इसने देश के पॉलिटिकल एजेंडे को बदल दिया. जाति समाज के एक वर्ग से अधिक राजनीतिक वर्ग के तौर पर देखी जाने लगी.”

मंडल आयोग ने क्षेत्रीय पार्टियों और जातिगत पहचान से जुडी पार्टियों को मौका दिया। उत्तर प्रदेश, बिहार में समाजवादी, जनता दाल यूनाइटेड और आरजेडी जैसी पार्टी को कद मिला। साथ ही छोटे-छोटे जाती आधारित समूह भी पनपने लगे. जैसे अकेले यूपी में राजभर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी। कुर्मी समुदाय की बात करने वाली अपना दल और निषाद समुदाय की आवाज उठाने वाली पार्टी का जन्म हुआ. ये छोटी-छोटी पार्टी मुख्यधारा वाली पार्टियों के लिए अहमियत रखने लगीं.

राजनीति की ये धारा 1990 के दशक में वीपी सिंह की गवर्नमेंट में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की बात करने वाले बीपी मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद शुरू हुई थी. ये वो दौर था जब भाजपा राम मंदिर के अभियान में बहुत जोर-शोर से लगी थी, इसे कमंडल की राजनीति कहा गया. वीपी सिंह की सरकार के बाद हर सरकार ने आरक्षण का समर्थन किया . भारतीय जनता पार्टी भी हिंदुत्व की राजनीति को धार तो देती रही थी, लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर पार्टी की राय अन्य पार्टियों के जैसी ही रही.

मुद्दा कैसे हुआ बेअसर

1979 में मोरारजी देसाई की सरकार ने बीपी मंडल की अगुवाई में मंडल कमीशन का गठन किया। लेकिन इसकी सिफाऱिशों को 10 साल बाद वीपी सिंह ने लागू करवाया। ये कहा जाता है कि वीपी सिंह ने चुनाव में ओबीसी वोटबैंक को साधने के लिए इस आयोग की सिफारिशें लागू की. ये वो समय था जब भारतीय जनता पार्टी वीपी सिंह को समर्थन देने के साथ ही राम मंदिर अभियान पर ज़ोर दे रही थी. हालांकि आरक्षण लागू करने वाले वीपी सिंह ओबीसी समुदाय के नेता कभी नहीं बन पाए. इन समुदाय का झुकाव हमेशा से अपनी जाती से आने वाले नेताओं की तरफ ज़्यादा दिखा। लेकिन ये जरूर हुआ कि वीपी सिंह के इस फ़ैसले ने देश में नई ओबीसी लीडरशिप खड़ी कर दी, जो अगले दो दशक तक भारत की सत्ता का अहम अंग बने रहे.

मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, उमा भारतीय, शिवराज सिंह चौहान, नितीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, कल्याण सिंह अशोक गहलोत और कई नेताओं ने यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार में सरकार चलाई। धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी के पीढ़ी में भी परिवर्तन हुआ साल 2014 में OBC समुदाय से आने वाले भाजपा नेता नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने. हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा इसके बाद चुनाव-दर-चुनाव बढ़त ही हासिल करती रही.

2019 में फिर से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बानी और इस दौरान कई राज्यों में भी पार्टी ने भारी बहुमत के साथ सत्ता पाई. इसी साल बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के आँकड़े जारी किए गए और अब अगले महीने 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है. बिहार के सर्वे में सबसे अधिक 36.1 फ़ीसदी आबादी अत्यंत पिछड़ा वर्ग की बताई गई. वहीं, कुल हिंदुओं की संख्या 82 फ़ीसदी है. इसके बाद कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने देशभर में जातिगत गणना का मुद्दा उठाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस सर्वे का समर्थन करते हुए भारत के जातिगत आँकड़े जानने की ज़रूरत बताई. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का प्रण है जितनी आबादी, उतना हक़ दिला कर रहेंगे. ऐसा कहा जाने लगा कि बिहार में जातिगत सर्वे के आँकड़ों के सामने आने के बाद बीजेपी को चुनाव में इसका नुक़सान हो सकता है.

जानकार इसे मंडल बनाम कमंडल राजनीति के दौर की वापसी के तौर पर देखने लगे. हालांकि, लोकसभा चुनाव का सेमीफ़ाइनल कहे जा रहे पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों में ये मुद्दा बेअसर दिखा. उल्टे अपने चुनावी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहा कि देश में सिर्फ़ चार जातियाँ हैं- ग़रीब, किसान, महिला और युवा.उन्होंने कहा कि जाति सर्वेक्षण के ज़रिए देश को बाँटने की कोशिश हो रही है. इसके बाद जब बीजेपी ने इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों का चुनाव किया तो इसे 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष के जातीय मुद्दे को साधने की कोशिश के तौर पर देखा गया. शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को चुनने की बजाय पार्टी ने मोहन यादव, भजन लाल शर्मा और विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री के पद दिए हैं.

हालांकि विपक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्रियों के चुनाव के पीछे वजह जातीय समीकरण को साधना नहीं बल्कि मोदी की हाँ में हाँ मिलाने वालों को अहम् भूमिका में लाना है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि मध्य प्रदेश की सीमा उतर प्रदेश से लगती है ऐसे में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे यूपी और बिहार के यादवों को 2024 के चुनाव में साधने में कामयाब हो सकेगी।

विपक्ष का तो ये भी कहना है कि जिस तरह से उतर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ को मुख्यमंत्री बना के मोदी और शाह ने अपने हाथ जला लिए है. इसलिए इन्होने तीनो जगहों पर बैकबेंचर्स को फॉरवर्ड किया है, ताकि 2024 से पहले इन राज्यों में हाँ में हाँ मिलाने वाले की नियुक्ति की गई है. इन्होने अपने पार्टी के वरिष्ठ और सक्षम नेतृत्व को बैकबेंचर बना दिया है.

क्या है बीजेपी की रणनीति

BJP ki Ranniti Kya hai: OBC यूपी और बिहार की राजनीति का अहम प्रभाव रखते हैं. लेकिन बीजेपी ने ग़ैर-यादव OBC के बीच एक मज़बूत आधार बनाकर सपा और आरजेडी के यादव-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को पीछे छोड़ दिया है. 2019 में BJP की जीत के पीछे इस वर्ग का विशेष योगदान रहा. एमपी में 50 फ़ीसदी OBC मतदाता हैं. मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत में ओबीसी वर्ग के वोटरों की बड़ी भूमिका रही है.

भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ OBC समुदाय के मोहन यादव (Mohan Yadav MP New CM) को ही CM बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला (Deputy CM Rajendra Shukla )और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीश देवड़ा (Deputy CM Jagdish Deora) को डिप्टी सीएम बना दिया. छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाक़ों में मिली बढ़त को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इसी समुदाय के विष्णुदेव साय (Chhattisgarh New CM Vishnudev sai) को सीएम पद दिया है. जिसका फायदा पार्टी को ओडिशा और झारखण्ड में मिल सकता है, जहाँ अच्छी संख्या में आदिवासी हैं और लोकसभा चुनाव के बाद यहाँ भी विधानसभा चुनाव होने हैं. राजस्थान में भी पार्टी ने ब्राह्मण सीएम के साथ क्षत्रिय और दलित समुदाय से आने वाले दो डिप्टी सीएम भी नियुक्त कर दिए हैं. लेकिन क्या इन चेहरों के सहारे बीजेपी यादव-मुस्लिम समुदाय के बीच मज़बूत समर्थन रखने वाली और मंडल आयोग का समर्थन करने वाली समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जैसे दलों को क्या पीछे छोड़ पाएगी?

इसका जवाब भी चाँद महीनो में लोकसभा चुनाव में मिल जाएगा। राजनितिक जानकारों की मने तो “मंडल समर्थक पार्टियों के बीच मतभेद हुए. इस मतभेद की वजह पिछड़ों की एकता ख़त्म हुई. उसको भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तरफ़ जोड़ा. उत्तर प्रदेश में, बिहार में ओबीसी वोटरों को भारतीय जनता पार्टी ने अपनी तरफ़ किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं और इसका लाभ भाजपा उठाती है.

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