भोपाल की हर्षा का महाकुंभ में जलवा, मॉडलिंग व एंकरिंग छोड़ चुना अध्यात्म, धर्मगुरू ने कह दी यह बात

Sadhvi Harsha | Anchor Harsha Richhariya Biography | Prayagraj Mahakumbh 2025 | हर्षा रिछारिया। उत्तर-प्रदेश के त्रिवेणी संगम में आस्था का विशाल कुंभ लगा हुआ है। जिसमें देश के ही नही विदेशों के भी लोग आस्था की डुबकी लगा रहें। इस कुंभ मेंले में इन दिनों मध्यप्रदेश के भोपाल की रहने वाली हर्षा रिछारिया काफी चर्चा में है। दो दिन पहले उनका एक वीडिया सामने आया है, जिसमें वह रथ पर साधु-संतों के साथ बैठी दिखाई दे रही हैं। कई लोगों ने उन्हें साध्वी की संज्ञा दे दी। हर्षा ने बाद में स्पष्ट किया कि वह साध्वी नहीं हैं, लेकिन आध्यात्म से जुड़ी हैं।

हर्षा ने अपने करियर की शुरुआत मॉडलिंग और एंकरिंग से की थी। करीब पांच वर्षों तक उन्होंने अपना प्रोफेशन जारी रखा। करीब दो वर्ष पहले उनका रूझान आध्यात्म की ओर बढ़ा। जिसके बाद वे अक्सर उत्तराखंड की धार्मिक यात्राओं पर जाती थीं। इसी दौरान उन्हें निरंजनी अखाड़ा के साधुओं की संगत मिली, जिसके बाद वह आचार्य महामंडलेश्वर की शिष्या बन गईं।

सुकून के लिए बढ़ी अध्यात्म की ओर

हर्षा रिछारिया कहती हैं कि दो साल पहले सुकून की तलाश में उनका झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ा। उन्होंने काम छोड़कर आध्यात्म का रास्ता चुना था। हर्षा ने यह भी बताया कि पारिवारिक स्थिति के कारण उन्होंने 2015 में नौकरी शुरू की थी। हर्षा का कहना था कि लोगों ने उन्हें मॉडलिंग में करियर बनाने का सुझाव दिया, जिसके बाद हर्षा एक एंकर बनीं। कई कार्यक्रमों को होस्ट किया। उन्हें भोपाल में मॉडलिंग के भी कई कॉन्ट्रेक्ट भी मिले। बीते दो वर्षों से उन्होंने मॉडलिंग और एंकरिंग का कार्य छोड़ दिया था। वह उत्तराखंड में ही रहने लगी हैं।

शंकराचार्य स्वामी ने उठाया सवाल

मॉडल और एंकर हर्षा रिछारिया को महाकुंभ के पहले अमृत स्नान में शामिल कराने और महामंडलेश्वर के शाही रथ पर बिठाए जाने पर विवाद शुरू हो गया है। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाते हुए कहा कि महाकुंभ में इस तरह की परंपरा शुरू करना पूरी तरह गलत है। महाकुंभ में चेहरे की सुंदरता नहीं बल्कि हृदय की सुंदरता देख जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि जो अभी यह नहीं तय कर पाया है कि संन्यास की दीक्षा लेनी है या शादी करनी है, उसे संत महात्माओं के शाही रथ पर जगह दिया जाना उचित नहीं है। श्रद्धालु के तौर पर शामिल होती तब भी ठीक था,लेकिन भगवा कपड़े में शाही रथ पर बैठाना पूरी तरह गलत है। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन के प्रति समर्पण होना जरूरी होता है। जिस तरह पुलिस की वर्दी सिर्फ पुलिस में भर्ती लोगों को मिलती है इस तरह भगवा वस्त्र सिर्फ सन्यासियो को ही पहनने की अनुमति होती है।

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