Bhangarh Ki Ek Raat | Author: Nazia Begam | आज मैं अपने दोस्त ,राहुल ,आशुतोष और विनय के साथ भान गढ़ का क़िला देखने आया था ये सब तो बहुत डर रहे थे पर मैने समझाया” अरे भूत प्रेत , आत्मा वात्मा ,जैसा कुछ नहीं होता” ये हमारे मन का भ्रम होता है और कुछ नहीं ,बस फिर क्या था सबको मेरी बातों पे थोड़ा यक़ीन आ गया और हम बढ़ चले आगे क़िले में एक मंदिर था सो मैने हांथ जोड़कर प्रणाम कर लिए और मुझे देखकर इन तीनों ने भी प्रणाम किए और और मन ही मन में प्रार्थना भी कर ली” हे प्रभु हमारी रक्षा करना ” क़िले की नक्काशी देखते – देखते, दर ओ दीवार को छूते- छूते ,इस हवेली से उस हवेली जाते फोटो खिंच वाते, जाने कब शाम हो गई सबने कहा “अब चलो चलते हैं ,अंधेरा होने लगा है वो गाइड भी जा रहा है”लेकिन मैने ही कहा, अरे अभी कहां थोड़ा रुको फिर चलते हैं ,
इतना कहकर मै गुरजों के बीच से सूरज को डूबते देखने लगा और फिर झट से फोन में फोटो खींचने लग गया ,कि इतने में मुझे पीछे से आवाज़ आई “शिवाय अब बहुत देर हो गई है” मुझे लगा राहुल है और मैने कहा हां चल पर पीछे पलट के देखा तो कोई नहीं था ,मै बारी बारी से सबको आवाज़ देता हुआ क़िले से बाहर की ओर जाने का रास्ता ढूंढने लगा लेकिन मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि हम किधर से आए थे ख़ैर मै आगे बढ़ता गया मोबाइल फोन की रौशनी में, और एक बड़े आंगन तक आ पहुंचा ,जहां थोड़ी रौशनी सी थी चांदनी रात की वजह से और आगे एक बड़ा गेट भी दिख रहा था तो मैं उधर ही चल पड़ा कि शायद कोई बाहर का रास्ता मिल जाए मै दरवाज़े के पास पहुंचा कि मेरे पैर किसी से टकराए झुक के देखा तो वो राहुल का बैग था और और उसके आगे वो ख़ुद पड़ा था मैने उसे आवाज़ दी” राहुल राहुल उठ तुझे क्या हुआ “जब बहोत पुकारने के बाद उसने आंख नहीं खोली तो मैने उसकी नब्ज़ टटोली और धड़कन महसूस करने की कोशिश की पर वो चुप थी मै समझ गया कि राहुल मुझे छोड़कर जा चुका है,
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मै बड़ी हिम्मत करके उठा और फिर रस्ता ढूंढने लगा ,पर कहीं कोई सुराग़ न मिला थक कर दूसरी तरफ़ मुड़ा तो वहां और अंधेरा था फिर मोबाइल का टॉर्च दीवारों के पास तक ले गया तो वहां एक झरोखे सा दिखा जिसमें कोई बैठा था ,मैने ग़ौर से देखा तो वो आशुतोष था, मै एक पल के लिए खुश हो गया कि ये ठीक है पर जैसे ही उसे छुआ वो मेरे ऊपर ही गिर पड़ा, मै समझ गया वो भी मुझे छोड़कर जा चुका है, पर कैसे ?ये मेरी समझ के बाहर था अब मुझे अपना भी यही हश्र नज़र आ रहा था इसलिए मैने बड़ी फुर्ती से झरोखें के उस तरफ निगाह डाली तो दूसरी तरह मुझे काली मां का मंदिर समझ आया मैने वहीं से मां को शीश झुका कर प्रणाम किए प्रार्थना की कि ” मां मेरी और अब विनय की रक्षा करना”,
और फिर दूसरी ओर आगे बढ़ा तो वहीं पहुंचा जहां राहुल पड़ा था मोबाइल ऊपर करके टॉर्च की रौशनी सामने की तरफ डाली तो सीढ़ियां दिखीं लगा कि अभी ऊपर से ही तो आया था ये भी कोई ऊपर जाने का ही रास्ता होगा लेकिन फिर भी मै चल पड़ा और और सीढ़ियों के पास जाते ही किसी चीज़ से टकरा कर गिर गया नीचे देखा तो ये एक छोटा सा संदूक था मैने खिसकाने की कोशिश की पर वो ज़रा भरी था तो मैने सोचा खोल के देखूं और उसके कुंदे की तरफ टॉर्च किया तो देखा संदूक की सिधाई से और अगल बगल सब तरफ सिक्के पड़े हैं उनकी चमक देखकर मैने अपने मोबाइल को आगे किया सिक्को की ओर रौशनी ले गया तो सीढ़ियों के कोने में विनय टिका हुआ बैठा था, मै चौक गया पर आराम से आवाज़ दी विनय विनय,
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जब वो नहीं बोला तो मैं समझ गया मेरी आखिरी उम्मीद भी टूट गई है पर मुझे एक बात अजीब लगी वो थी विनय की बंद मुट्ठियां जिसे ग़ौर से देखा तो उसमें भी कुछ सोने जैसा चमक रहा था खोल के देखा तो उसमें भी सिक्के थे ,मै कुछ समझने की कोशिश करने लगा और आगे जाकर संदूक खोला तो देखा उसमें भी सिक्के थे और फिर राहुल का बैग देखा तो उसमें भी सिक्के थे, ये सब देखकर मुझे इतना तो समझ में आ गया कि मुझे सिक्के किसी भी हाल में नहीं लेने हैं ,पर अब बाहर कैसे निकलूं ये समझ नहीं आ रहा था ,तो मै मां के मंदिर की तरफ देखने लगा और उन्हें ही अपनी मदद के लिए पुकारने लगा इतने में मां के मंदिर के पट खुल गए और मानो खुद देवी मां ही मुझे मां की मूर्ती के सामने बैठी दिखाई दी और मैं दौड़ के उनके पास आ गया वो मुस्कुरा के बोलीं तू क्यों परेशान है? क्या अपने दोस्तों के लिए!
मैने कहा हां क्योंकि मैं ही इन्हें यहां लेकर आया था , ये सुनकर वो हंस कर बोलीं तू चिंता मत कर वो जहां हैं खुश हैं उन्हें जो चाहिए था उन्हें वो मिल गया ,आ मेरे साथ आकर खुद ही देख ले ,मै उनके पीछे गया तो देखा ,राहुल ,आशुतोष और विनय सिक्के उछालते हुए सिक्को से खेल रहे हैं और मुझे भी हंसकर बुला रहे हैं ,”आ शिवाय आ “,मै आश्चर्यचकित था कि वो बोलीं “अब तू बता तुझे क्या चाहिए”मैने कहा , बस मां मुझे इस क़िले से बाहर निकाल दे , मैने हांथ जोड़ते हुए आंखे बंद कीं और उन्होंने कहा तथास्तु ।अगले ही पल आंख खुली तो मै सुबह की खिली सी धूप में सड़क के किनारे खड़ा था और दूर भानगढ़ का क़िला दिख रहा था , मै हैरत से उसे देख रहा था कि एक ट्रक का हॉर्न सुनाई दिया और मैने उससे लिफ्ट मांग ली और ट्रक में बैठे हुए यही सोचता रहा कि ये ख़्वाब था या हक़ीक….