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कहानी शीर्षक “घूंघट की आड़ में”-based on a true story-behind the veil “ghunghat ki aadh men” (सामाजिक व ग्रामीण रूढ़िवादी मान्यताओं को आईना दिखाती लघुकथा)

लेखिका – ( सुषमा पाण्डेय)

कहानी का विषय प्रवर्तन –
based-on-a-true-story-behind-the-veil-ghunghat-ki-aadh-men – हॉस्पिटल कॉलोनी में वार्ड ब्वाय श्यामलाल काछी का घर, जो हमेशा चर्चा में रहता। चाहे बात हो देसी खाने की या फिर कॉलोनी की छोटी-बड़ी समस्याओं की, हर सवाल का जवाब ,उनकी अम्मा यानी “बऊ” के पास मिल जाता। उनका परिवार और उनका घर पूरे मोहल्ले के लिए जैसे सेवा और अपनत्व का प्रतीक बन गया था।

पात्रों का परिचय – (Characters)
काछी परिवार में कुल आठ सदस्य थे जिसमें –

पारंपरिक माहौल और बऊ का प्रभाव
घर का वातावरण पूरी तरह ग्रामीण और रीति-रिवाजों का पालन करने वाला था। 50 वर्ष की उम्र में भी बऊ आजा के सामने हमेशा घूंघट करतीं। कॉलोनी के हर घर से रोज़ कोई न कोई उनके घर एक फेरा जरूर लगाता,कभी बऊ की बगिया की सब्ज़ी लेने, कभी धूप सेंकने तो कभी किसी स्वादिष्ट व्यंजन की महक खींच लाती। बऊ के व्यवहार में विनम्रता, अनुशासन और मिलनसारिता थी। कॉलोनी के लोग उन्हें सम्मान देते और कोई भी नया अधिकारी या डॉक्टर आता तो बऊ और उनका परिवार उसे सहजता से अपना बना लेता।

शादी का उत्सव और पारंपरिक गौरव
श्यामलाल और दीदी की शादी कॉलोनी का सामूहिक उत्सव बन गई। रीति-रिवाज़ों के साथ पांच दिन तक उत्सव चला। आजा की शानदार उपस्थिति और बऊ की परंपरागत घूंघट वाली गरिमा ने सबका ध्यान खींचा। पूना भाभी के रूप में आई नई बहू ने आते ही सबका मन जीत लिया। उनकी पारंपरिक सज्जा, पायल की छम-छम, लंबा घूंघट, और बऊ के सभी कामों को खुद करने की आदत ने लोगों को विश्वास दिलाया कि बऊ ने अपनी परंपराओं को निभाने के लिए ,सही उत्तराधिकारीचुना है।

बऊ का जाना और घर का बदलता स्वरूप
अचानक बऊ की तबीयत बिगड़ी और वह खाट पकड़ बैठीं। कुछ महीनों बाद उनका निधन हो गया। बऊ के जाने से पूरे घर और कॉलोनी का माहौल जैसे ठहर सा गया। आजा अंदर से टूट चुके थे। धीरे-धीरे पूना भाभी ने घर संभालना शुरू किया लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता गया। श्यामलाल की संतान न होना, छोटे भाइयों की बेरोजगारी, गुड्डी की शादी की चिंता, और आजा की बिगड़ती तबीयत ने माहौल को भारी बना दिया।

घूंघट की मर्यादा में बदलती छवि
पूना भाभी ने बऊ के घूंघट की परंपरा को तो निभाया, पर उनका व्यवहार अक्सर कठोर होता गया। कभी आजा से बहस, कभी देवरों को ताने, कभी गुड्डी की शिकायत,इस सबने घर का माहौल तनावपूर्ण कर दिया। कॉलोनी के लोगों ने धीरे-धीरे काछी परिवार से दूरी बनाना शुरू कर दी। घर में घूंघट तो रहा, पर उसकी गरिमा खोती चली गई।

आजा की अवहेलना और अंतिम दिन
एक दिन कॉलोनी में खबर फैली कि आजा को पूना भाभी ने उनके कमरे से हटाकर पीछे की कुठरिया में शिफ्ट कर दिया है, जहां जानवर बंधते थे। कारण था आजा की खांसी और बार-बार आंगन से गुजरना। कुठरिया साफ-सुथरी थी लेकिन उसमें जानवरों और कबाड़ के बीच आजा को भी एक कोना दे दिया गया। आजा चुपचाप सब सहते रहे। एकदिन आजा की तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब थी,अपच का अंदेशा लगा तो उन्होंने मूंग की खिचड़ी खाने की इच्छाकी थी ,चूँकि खाना बन चुका था,और वो भी बैगन की सब्जी के साथ उड़द की दाल और चावल ,वही पूना ने लेजाकर आजा के सामने रख दिया था। बात बस इतनी सी थी की आजा ने थाली अपने तरफ़ खींचते हुए पूँछ लिया था की. ..क्या मूंग की खिचड़ी नहीं बनाई ?,दाल ही मूंग की बना देती। बस इतना सुनते ही पूना मानों बिफ़र पड़ी. ..कड़कड़ाती आवाज़ में चिल्ला कर बोली। ..बुड्ढा आज मरे की कल ,लेकिन व्यंजन छत्तीस प्रकार के चाहिए …..कहते हुए ,पूना भाभी ने झटक कर आजा के सामने से थाली उठाई और झल्लाती हुई पूरा खाना जानवरों को डाल दिया और आजा पर तमाम सारे न सुने जाने वाले कठोर शब्दों की बौछार कर दी,आजा ने मानों दिल पर पत्थर रखा होगा ,कानों में ऊँगली भी ठूस ली होगी और थोड़ा बहुत सुन भी लिया होगा लेकिन शायद जो सुना ,शायद वो सहन नहीं कर पाए। उस रात आजा शून्य से हो गए और चुपचाप कोठरी के अपने लिए तयशुदा कोने में सो गए,……फिर कभी न जागने के लिए ,आजा ऐसे कि फिर कभी नहीं उठे।

अंत और समाज का आईना
सुबह गुड्डी की चीखें सुन कॉलोनी वाले दौड़े आए। आजा इस दुनिया से विदा ले चुके थे। पूना भाभी भी एक कोने में खड़ी सुबक रही थीं,अब भी अपने लंबे घूंघट की आड़ में।

विशेष टिप्पणी
“काश कि घूंघट की जगह आजा को दो घूंट स्नेह और सम्मान के मिले होते”

कहानी से सीख – (Moral of the Story)
इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि पारिवारिक अनुशासन और परंपराएं तब तक ही सार्थक हैं जब तक उनमें मानवता, संवेदना और आदर बना रहे। “घूंघट” जो कभी मर्यादा और सम्मान का प्रतीक था, यदि रिश्तों की उपेक्षा और क्रूरता का आवरण बन जाए तो उसकी गरिमा समाप्त हो जाती है।
यह कहानी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पल रही उन सामाजिक कुरुतियों की ओर संकेत करती है, जहाँ बुजुर्गों की उपेक्षा और संवेदनहीन परंपरा पालन आम होता जा रहा है।

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