बघेली उक्खान-“नेमाइन के तुपकदार मूड़े मा गोरसी” की कहानी

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Bagheli Ukhan Kahani: इंहन कहत हें “नेमाइन के तुपकदार मूड़े मा गोरसी’। मने नेमाइन के तुपकदार होइगे हाँ ता दिनभर मूड़े मा गोरसी लए बागत हें। इया उक्खान जादातर मनई तब कहत हय, जब कोहु कउनउ काम का बहुत देखाय-देखाय के करत हय, मने काम करय के जादा दुनिया का देखाबय के इरादा जादा रहत हय।

बघेली उक्खान की कहानी

अब इया उक्खान के एकठे पुरान मजेदार कहानिउ इहन खूब चलत ही, लेकिन कहानी जानय से पहिले अइ मनई थोर का, एखर मतलबउ जान लेत हय। तुपकदार के अर्थ होत हय, जे तुपक चलाबत होय, तुपक मने होत हय बड़ी-बड़ी भरमार बंदूक, जउन पहिले के जमाना राजा-रजवाड़न के इहन होत रही हैं, उया समय इनखा चलाबय खीतिर दुई जने के जरूरत परबा करय, ईं जउन बंदूक रहयं, इनमा पहिले बारूद भर दीन जात रहा, अउर फेर आगी छुआय देयं और फेर बंदूक फायर करय। अब पहिले के जमाना मा आज के तरह माचिस लाइटर ता रहा नही, मशालउ ता दिनभर जालये नहीं रहत रहें। ता आपत्तिकाल खातिर गोरसी मा गोबर के कंडा लगाए, आगी सुलगाए रहबा करयं। पहिले अइसनय घरउ मा होत रहा, जब घरे के निस्तार का चूल्हबा मा आगी राख के नीचे दहकाए रहत रहयं। कोउ अपना पन्चेन के घरे मा सयानमा होई अगर, ता उया जरूर बताबत होई इया बात।

खैर अब मनई आबत हय अपने उक्खान के कहानी मा, कुछु पुरान बात आय अपने विंध्य मा एकजने रहंय ता उनकर नोकरी रीमा राज के फउज-फाटा मा लग गय, उँ भर्ती ता पैदल सिपाही के पद मा रहें, पय तरक्की होत-होत तुपक चलाबय लागें अउर रीमां के सेना मा तुपकदार होइगें। अब तुपकदार बने के बाद जब ऊँ अपने गाँव मा लउट के आएं, ता उनके शान का कहय, उनकर पूरा हुलियअ बदल गा, दिन भर अपने मेंछा का टेमय, अउर आपन शान झाड़यं। होइगा गाँव बाले आमय ता उनसे हाल-चाल पूछयं, लेकिन ऊँ इया ना बताए पामय कि तुपकदार बनि गान हय। अब तुपक ता छुट्टी मा जाय से पहिले जमा होइ जात ही कि ओहिन का देखाई ता सब मानयं, अब जो अइसन बताउब ता कहाउँ झूठ मानि के हंसी ना उड़ामय। ता अब गाँव-मेड़ा बालेन का हम कइसन बताई, कि अब हम पैदल सिपाही नही आहन तुपकदार बन गयन हय। ता ऊँ अब एकठे नया तरीका निकालिन आपन, ता ऊँ का किन्हिन के गोरसी मा कंडा रखि के आगी सुलगाबाइन अउर ओखा मूड़े मा लय के घूमय लागें, ता जेहिन उनकर इया हुलिया देखय मूड़े मा बरत गोरसी लए, ता उहय चौआय अउर हँसय अउर पूंछय फलाने इया का अघोरी अस भेस बनाए मूड़े मा गोरसी लए घूमता हय, ता उँ बड़े शान से मेछा टेबत बताबय लागें, कि अब हम पैदल सिपाही नहीं आहन रीवा राज मा बड़ी-बड़ी तुपक चलाबय लागन हय।

गाँव मा एकजन सयान का रहयं, उनका सब कक्का-कक्का कहंय, बताय मा बड़े निपुण रहंय , जमानी मा बड़े पहलमान रहयं अउर उनहू कुद दिन रीमां राज के सेना माँ काम करे रहें, गाँव से बाहर घूमे-फिरे रहें, ता एहिन से उनके दुआरे मा खूब दरबार लागय, गाँव भरे के मनई उनके लघे आमय। ऊँ ता समझि गें इया सार, आपन सानि देखाबय खीतिर आय इया गोरसी लादे हय, ता ऊँ कहिन के दादू तू तुपकदार होइगया है, राजा किहन ठीक आय, ता मूड़े मा इया सुलगत गोरसी लए काहे बगतया हया, गोरसी ना लए ढोउबा मूड़े मा तबहूँ तुपकदारय कहबउबा, कहउँ तू गाँव मेड़ा का देखाबय खातिर, ता इया मे नही कीन्हे आह्या इया। अब फलाने इया सुनि सकपकाने, लागत हय कक्का जान गें, ता उया बात बनाबय के गरज से, लंबी-चौड़ी हाँकय लागें, कहिन- अरे! नहीं कक्का का कहित हे अपनउ, कहउँ कउनउ दुश्मन राजा इहन चढ़ाई करि देय राज मा, का पता केत्ती देर आदेश आय जाय लड़य जाय का, गोरसी ता एंसे आय मूड़े मा लादे रहित हे। कक्का कहिन दादू अगर अइसन हय तब ता ठीक हय फे, बढ़िया सोचतया हय तूँ, होइगा जें ओनठे दरबारे मा बईठ रहंय सबय वाहवाही कीन्हिन। गाँव भरेउ मा उनके राजभक्ति के बड़ी सराहना भय।

Bagheli Ukhan | “नेमाइन के तुपकदार मूड़े मा गोरसी”

खैर अब ऊँ कुद दिना मा अपने गाँव से रीमां अपने नोकरी मा चले गें अउर दुबारा बैशाख के महीना मा उनका छुट्टी मिली अउर ऊँ अपने गाँव लौटें, लेकिन इया दरकी ऊँ अपने मूड़े मा गोरसी ना रखे रहंय। अब एकि दिन का भा संझा बेरा, ऊँ फेर काकू दुआरे मा पहुंचे जहाँ पंचायत जुरी रहय। अब फलाने कोशिश ता कीन्हिन के बच के निकर जई, पय काकू देखि डारिन, घोरय के कहिन- कस फलाने आबा-आबा, एंकई आबा, कबय आया, जना तू लुकाता ह्या। फलाने मनय-मन सोचय लागें, बड़ी तेज चील जइसन नजर ही बुढ़बा के, इहय मनय-मनय बुदबुदात पहुंचे बुढ़ऊ के दरबारे मा, अउ होइगा जेखर जईसन रिश्ता-नाता, ओसे ओइसन मिलय लागें। अब बुढ़ऊ चतुर-सुजान मनई, हंसिन-हंसिन मा पुछि मारिन, कस दादू कइसन इया दरकी तोंहार गोरसी कहाँ गय, फूटि गय का, के तोंहार राजभक्ति कम होइगय, के कहउँ तोंहका फौज-फाटा से निकाल ता नहीं दीन्हिन। उनकर एत्ता कहब के सब हंसय लागें, अब उया सकपकाय गा अउर आँय-बाँय बोलिय लाग, अउर काम के बहाना कय के निकल भाग। अब एंकईं का भा के ऊँ कक्का का कउनउ काम से रीमां जाय का रहा, ता बईठे-बईठे बुढ़ऊ के मने मा एकठे खुराफात सूझि, ऊँ गाँव के एकठे कोटवार का अपने कई मिलाइन और ओहि सिखाय के सब कुछु समझाइन। अगर अपना ना जानत होब ता पहिले के जमाना मा, गामन में राज के तरफ से एकठे कोटवार नियुक्त कीन जात रहा, जेखर काम राजसी-सरकारी आदेश का गामन मा पहुंचाबय होत रहा है।

ता उया कोटवार अगले दिन आबा अउ गाँव के लोगन का इकट्ठा कईके कहिस, रीमा से संदेश आबा हय, दूसर राज के सेना केत्तउ देर हमला कई सकत ही, एहिन से तुपकदार साहब का आदेश हय, ऊँ तुरंत जउन हालत मा होंय चले आमंय। एखे अलाबा जउन पुरान सैनिक हें जईसन कक्का, उनहू चले आमयं अउर गाँव के जउन लड़ि लड़िकबा होंय, उहूँ साथेन मा आ जायँ। अउर बहुत जल्दबाजी ही, एहिन से आदेश हय तुपकदार साहब गोरसी सुलगाय के, मूड़े मा रक्खि के आमयं। अब सबके चलय के जब तैय्यारी भय, सब कोउ आयके काकू के दुआरे मा एकट्ठा भें। काकू जब तुपकदार का दिखिन, ता कहिन- के ना दादू, जना आज गोरसी नहीं लए आह्या, अब ता हमला केत्तउ देर होइ सकत हय, गोरसी लय के मूड़े मा रखि ल्या। अब ऊँ सकपकाने लेकिन पूरा गाँव इकट्ठा रहा, ता कहिन काकू आगी गोरसी ता सुलगबाएन नहीं आहन। ता काकू कहिन, अरे दादू हमका तोंहार पूरी चिंता ही, हम सुलगबाए हान। अब यूं बोलि कुछु ना पाएं, काकू बढ़िया दहकत आगी के गोरसी तैय्यार करबाए रहयं, निकलबाय के तात-तात गोरसी, ओखे मूड़े मा लादि के सब चल दिहिन। अब चइत-बईशाख के धूप अउर गरमी, ऊपर से दस किलो माटी के, दहकत और गरम गोरसी। अब तुपकदार ओहि मूड़े मा लादे-लादे मरे जायँ, उनकर मूड़ दहका अउर ऊँ पसीना से तल्ल-बल्ल होइगें, मुंह बरि के लाल होबा जाय, एहिन से ऊँ कुछु धीरे-धीरे चलयं, ता ऊँ बुढ़ऊ काकू ता लखयं अउर ठुमाकी मारय का कहंय- दादू तेजु-तेजु चल कइसा गोड़े मा मेहंदी अस लगाए चलते लाग हए, अब ऊँ जहँय थोर का तेज चलें, ता खोड्डाने ता उनकर मूड़े की गोरसी टेढ़क गय। अउ एकठे अंगरा उनके गोड़े मा गिरिगा ता ऊँ गोरसी फेंकिन अउर तिनगत भाग दिहिन।

दादू कइसन करते लाग हए, लाद-लाद मूड़े मा जल्दी से फरमान आबा हय, तुपकदार अउर तुनुक गें अउर बरबराय लागें, अरे पदनी आगी लागय इया नौकरी मा, एखे चक्कर मा जरि गान रे। अउर तू पीछे पड़े हया हमरे। काकू कहिन नहीं दादू तूँ नउकरी नहीं, अपने बड़बाड़ी अउर शान देखाबय के चक्कर मा तोंहार इया गति भय ही दादू, अउर फेर काकू सब पोलपट्टी खोलयं लागें, कहिन दादू तू नेमाइन के तुपकदार भया, ता मूड़े मा गोरसी लइके बागत रहा हय, उनकर एतना कहब रहा, ता सब हंसय लागें, अउर ऊँ मुंह ओरमए, सिसियात घरे चले गें।

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