Bagheli Ukhan: अपने इहन बघेलखंड मा एकठे उक्खान खूब कहा जात हय- “सरि घुन जाय, ता सरि घुन जाय, गोतिया के खाय अकारथ जाय”, मने कउनउ चीज खराब होइ जाय ता होइ जाय, लेकिन अपने भूखा भाई के खाय का उया ना दीन-देबरय। अउर सरल भाषा मा मनई कहय ता, कउनउ चीज भले घरे मा रक्खी-रक्खी खराब हो जाय, सरि जाय, के अपने कउनउ उपयोग के ना रहय, लेकिन कोउ आपन भाई-बंधु, के कोउ आपन सग, जेखा उया चीज के जरूरत ही, ओखा मनई दई ना सकय अउर उया ओखा उपयोग नहीं कर सकय।
Bagheli Ukhan | “सरि घुन जाय, ता सरि घुन जाय, गोतिया के खाय अकारथ जाय”
