Bagheli Kahavat | बघेली कहावतों में छुपे हुए हैं जीवन जीने के सूत्र

Bagheli Kahavat Ki Kahani: बघेलखंड में प्रचलित उक्खान और मुहावरों का बहुत ही विशेष और गूढ़ महत्व होता है। इनके प्रचलन के पीछे की कहानी बहुत ही मजेदार होती है। हालांकि इन कहानियों में सत्यता कितनी है यह तो नहीं पता, लेकिन बघेली लोकसंस्कृति और ग्राम्य जीवन में यह बहुत ही प्रचलित रहीं हैं। उक्खानों की इसी कड़ी में आज बात एक मजेदार कहावत की, जिसमें हास्य है लेकिन एक छिपा हुआ गूढ़ संदेश भी है।

बघेली कहावत- “नेमाइन के गोह दिखिन कहिन मौसी पलागो”

ऐसी ही एक यहाँ प्रचलित कहावत है-
“नेमाइन के गोह दिखिन कहिन मौसी पलागो” अर्थात पहली बार मगर गोह को देखकर प्रणाम करना।
यह कहावत ज्यादातर उन लोगों के लिए कही जाती है, जो शहरों में जाकर तो खूब पढ़ते लिखते हैं, लेकिन उन्हें सामाजिक ज्ञान तनिक भी नहीं होता है। अर्थात उनका ज्ञान केवल किताबी होता है। इस कहावत की एक बड़ी ही मजेदार कहानी विंध्यक्षेत्र के बघेली भाषा में प्रचलित है।

बघेली कहावत की कहानी

कहानी है कुछ पुराने समय की बात है- बघेलखंड के किसी गाँव के लड़के को उसके माँ-बाप ने बाहर पढ़ने के लिए शहर भेजा। लड़का पढ़कर लौट के आया तो उसकी विद्वता की चर्चा दूर-दूर तक थी, वह सबसे बड़े ही प्रेमपूर्वक विनयपूर्वक मिलता था। उसकी यह प्रसिद्धि उसके ननिहाल भी पहुंची, अब चूँकि लड़का बहुत दिनों के बाद लौटकर आया था, तो उसके ननिहाल के लोगों ने लड़के की माँ के पास खबर भिजवाई और लड़के से मिलने की इच्छा व्यक्त की। तो एक दिन माँ ने कहा- बेटा अपने नाना-नानी के यहाँ घूमने चले जाओ और सबसे मिल आओ, माँ कि बात मानकर लड़का ननिहाल के लिए तैयार होकर जाने लगा। तो अपनी माँ से पूछा वहाँ कौन-कौन होगा, माँ ने सबके बारे में बताया और कहा बेटा ननिहाल के घर में तेरी एक हमउम्र मौसी भी है, तो मौसी मिले तो उसे प्रणाम करना। अब बेटे ने बाकि सबको तो देख रखा था, इसीलिए पहचानता था। लेकिन हमउम्र होने के कारण मौसी को कभी देखा ही नहीं था। तो बेटे ने अपनी माँ से पूछा- मैं मौसी को पहचानूँगा कैसे, माँ ने कहा तेरे आने का सुनकर मौसी मारे ख़ुशी के सबसे पहले घर के बाहर निकलेगी।

लड़का चला अपने ननिहाल

लड़के ने हामी भरी और चल दीया मामा के घर। ननिहाल पहुँचने पर लड़के को कुछ पहचान के लोग मिल गए और हाल-चाल पूंछने लगे। उन्हीं में से किसी ने मामा के घर भी उसके आने की खबर कर दी। इधर ननिहाल वाले उसके आने की खबर सुन बड़े खुश हुए और घर के बाहर निकल आए, आस-पास के लोग भी इकट्ठा हो गए क्योंकि लड़का बहुत दिनों बाद आ रहा था ऊपर से सबने लड़के की विद्वता के बारे में सुन रखा था, इसीलिए सब उससे मिलने के लिए बहुत इच्छुक थे। लड़का सबसे मिलते-मिलाते हुए मामा के घर पहुंचा, सबसे मिला और नानी से पूँछा- मौसी कहाँ हैं? नानी ने मौसी को आवाज लगाई। मौसी उस समय रसोई में कुछ काम कर रही थी।

लड़के ने गोह को किया प्रणाम

संयोगवश उसी समय घर के भीतर से एक मगरगोह बाहर भाग के निकली। उस लड़के ने मगरगोह कभी देखी नहीं थी, ऊपर से उसके पास महज कोरा और किताबी ज्ञान था, उसने स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया। उसने सोचा- माँ ने कहा था जो सबसे पहले घर के अंदर से बाहर आएगा वही मौसी होगी, घर के भीतर से सबसे पहले यही आई है। और नानी के आवाज लगाने के बाद आई है यह जरूर मेरी मौसी ही होगी। सामाजिकता से अनभिज्ञ लड़का उठा और गोह की तरफ दोनों हाथ जोड़कर बोला मौसी पलागो. अब घर के दरवाजे में बहुत से लोग बैठे हुए थे, उसकी उस हरकत के बाद सब जोर-जोर से हंसने लगे. और उसके बाद एक कहावत का जन्म हुआ- नेमाइन के गोह दिखिन कहिन मौसी पलागो.
इस कहानी की पीछे का भाव शायद यह रहा होगा, बच्चों को महज किताबी ज्ञान बस नहीं सामाजिक शिक्षा की भी अत्यंत जरूरत होती है।

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