EPISODE 50: कृषि आश्रित समाज के भूले बिसरे मिट्टी की वस्तुए या बर्तन FT. पद्मश्री बाबूलाल दहिया

Babulal Dahiya

Babu Lal Dahiya: आज हम कृषि आश्रित समाज से जुड़े कुछ अस्त्र शस्त्रों की जानकारी दे रहें हैं कि उनका हमारे खेती किसानी में क्या अवदान था? क्योकि यह जानना आवश्यक है।

बोड़हाई तुपक

प्राचीन समय में आजादी के पहले जब बंदूख का लाइसेंस नही था और उद्देश्य जानवरों से खेत की सुरक्षा हुआ करता था तो उस समय गांव के किसान भी भरमार बन्दूक रखते जिसे बारूद भर कर चलाया जाता था। उन दिनों एक ब्यक्ति बंदूक को पकड़ता और दूसरा उसके ऊपर के एक बारीक छेंद में कपड़े में सुलग रही आग को रखता जिससे तेज आवाज के साथ वह चलती और जंगली जानवर बिदक कर भाग जाते तो फिर कई दिनों तक वे खेत नहीं आते थे।
कपड़े के बोड़ा (गुच्छे) से आग लगाने पर चलने के कारण गांव की बोली में लोग उसे( बोड़हाई तुपक) कहते थे। परन्तु बंदूकों में जबसे लाइसेन्स लगने लगा तो अब खास लोगों के पास ही शेष है।


रहिकला

यह पुत्र जन्म आदि के खुसी के अवसरों में मात्र बारूद भर कर चलाई जाने वाली तुपक थी जिसकी नार तुपक से मोटी तोप के आकार की हुआ करती थी। पर लम्बाई मात्र एक हाथ की ही होती थी। इस में लौह के ही दो पहिये लगे रहते थे। इधर जब से बंदूक आदि आग्नेय अस्त्र प्रतिबंधित हुए तो यह भी चलन से बाहर है।

लोहांगी

प्राचीन समय में गांव- गांव में जहाँ लाठी चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता था वहीं लाठी लेकर चलने का एक शौक भी था। लोग एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत लाठियां लेकर चलते। वह और सुन्दर आकर्षक दिखे अस्तु कुछ लोग अपनी लाठी के निचले भाग में लौह का एक गुट्ठठा लगबा लेते थे।ऐसी लौह के गुट्ठे वाली लाठी को (लोहाँगी) कहा जाता था। इस पर तो एक कहावत कही जाती थी जिसमें पत्नी अपने पति को उलाहना देती कह रही है कि–

नदी थहावन कर गहन
तोड़त गज के दंत।
इतने गुण की आग़री,
कहां गुमाया कंत।।

पर अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है।


छुरिया

यदि प्राचीन समय में भाला बरछी तलवार आदि आयुध थे तो छुरा कटार आदि को भी लौह शिल्पी बनाते थे। छुरा मात्र एक बालिन्स का एक अस्त्र होता था जिसे वस्त्रों के बीच छिपाकर योद्धा संकट के समय केलिए रखते थे। परन्तु यूं भी घर में सब्जी य शिकार आदि काटने में उपयोगी था।

बांका

यह लौह शिल्पियों द्वारा निर्मित लगभग एक हाथ लम्बा अस्त्र होता था जिसे लोग आत्म रक्षार्थ घर में रखते थे।

गुप्ती

यह लकड़ी के डंडे के अन्दर छिपा तलवार नुमा एक अस्त्र होता था जो ऊपर से तो डंडे नुमा दिखता पर उसके अन्दर आत्मरक्षार्थ लगभग एक हाथ का पतला तीक्ष्ण लौह अस्त्र रहता।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

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