An Inspirational Story – आनन्द की तलाश क्यों ?

An Inspirational Story – Why the Search for Happiness – आखिर आनंद की ही तलाश क्यों – मनुष्य चाहे कितना भी समृद्ध क्यों न हो, उसके भीतर कहीं न कहीं संतोष और आनन्द की तलाश बनी रहती है। दुनिया के तमाम राजाओं से लेकर साधारण इंसान तक, हर कोई अपने जीवन में सुख-शांति चाहता है। लेकिन बड़ा प्रश्न यह है कि क्या वास्तविक आनन्द भौतिक साधनों और धन से मिलता है, या आत्मसंतोष और परमात्मा से जुड़कर ? यही प्रश्न इस कहानी का मूल है। इसमें एक राजा और एक साधारण कुम्हार (प्रजापति) के बीच का संवाद हमें यह सिखाता है कि आनन्द देने से आता है, पाने से नहीं; संतोष से आता है, लालसा से नहीं।

कहानी – एक राजा और कुम्हार की मुलाक़ात -Meeting of a King and a Potter
एक नगर का राजा था। ईश्वर ने उसे सब कुछ दिया था – विशाल और समृद्ध राज्य,सुशील और गुणवती पत्नी, संस्कारी संतान,भव्य महल और वैभव, फिर भी उसके हृदय में शांति नहीं थी। बाहरी सुख-सुविधाओं के बावजूद वह भीतर से दुःखी और बेचैन रहता। दिन ऐसे ही बीतते रहे एक दिन राजा ने सोचा “मेरे पास सब कुछ होते हुए भी मैं क्यों अशांत हूं ? आखिर वह आनन्द कहां मिलेगा जिसकी तलाश मैं वर्षों से कर रहा हूं। इसी उधेड़बुन में एक दिन राजा अपने राज्य से बाहर निकल पड़ा। चलते-चलते वह एक छोटे से गांव में पहुंचा । गांव के मंदिर के बाहर एक साधारण सा कुम्हार बैठा था। उसने मिट्टी की कुछ मटकियां बनाई थीं और उनमें से कुछ में पानी भर रखा था। पास ही लेटा हुआ वह बड़ी तल्लीनता से भगवान भोलेनाथ के भजन गा रहा था। राजा वहां पहुंचा और मंदिर में भगवान के दर्शन किए और फिर कुम्हार के पास बैठ गया। कुम्हार ने सहजता और आदर से राजा को पानी पिलाया। राजा उस कुम्हार की सरलता, संतोष और शांति देखकर अचरज में पड़ गया। उसे लगा – यह व्यक्ति इतनी कमाई करके भी कितना सुखी दिखता है, और मैं राजमहल में रहते हुए भी दुःखी क्यों हूं ? और यह सोचते हुए उसने कुम्हार से बातचीत शुरू की उसका नाम – गावं पूछा।

राजा और कुम्हार का संवाद-Dialogue Between the King and the Potter
राजा ने पूछा – क्यों भाई प्रजापति जी, क्या तुम मेरे साथ नगर चलोगे ?
कुम्हार – नगर चलकर क्या करूंगा राजा जी ?
राजा – वहां जाकर खूब मटकियां बनाना।
कुम्हार-फिर उन मटकीयों का क्या करूंगा ?
राजा – उन्हें बेचना, खूब पैसा आयेगा तुम्हारे पास।
कुम्हार-फिर उस पैसे का क्या करूंगा ?
राजा – पैसे से सब कुछ कर सकोगे,ऐश्वर्य, सम्मान, सुख-सुविधा, आखिर पैसा ही तो सब कुछ है।
कुम्हार -पर राजन, उस पैसे से आखिर मैं करूंगा क्या ?
राजा – फिर आराम से रहना, भजन करना और जीवन का आनन्द लेना।
कुम्हार (मुस्कुराकर) – क्षमा करना हे राजन, अभी मैं क्या कर रहा हूं आप स्वयं बताइये।
राजा कुछ देर सोचता रहा और फिर बोला – राजा – हाँ, अभी तो तुम आराम से भजन कर रहे हो और पूरे आनन्द में हो।
कुम्हार-तो राजन, यही तो मैं कह रहा हूं ,आनन्द पाने के लिए लंबा रास्ता तय करने की जरूरत नहीं। जब मन संतुष्ट है, तो वही आनन्द है, पैसा साधन है, साध्य नहीं।

राजा का प्रश्न – आनन्द कैसे मिले ?
राजा – कुम्हार के इस उत्तर से गहरे से प्रभावित हुआ , उसने विनम्र भाव से कहा – “हे प्रजापति जी, कृपया बताइये कि वास्तविक आनन्द की प्राप्ति कैसे होगी ?
कुम्हार ने मुस्कराकर उत्तर दिया – सावधान होकर सुनो राजन,अपने हाथों को उल्टा कर लो।
राजा ने हैरानी से पूछा – यह क्यों ?
कुम्हार ने कहा – हे राजन,मांगना मत, देना सीखो, जब मनुष्य देने लगता है – समय, धन, सेवा, प्रेम, दया,तब वह आनन्द की राह पर कदम रख लेता है। स्वार्थ को त्यागो और परमार्थ को अपनाओ। यही आनन्द का रहस्य है

सच्चे आनन्द का सूत्र-Expansion – The Secret of True Joy
कुम्हार ने आगे समझाया – राजन – अधिकांश लोगों के दुःख का कारण यह है कि वे जो उनके पास है उसमें सुखी नहीं रहते। हर कोई उस चीज़ की तलाश में लगा रहता है जो उसके पास नहीं है और इसी लालसा की आग में जीवन का सारा आनन्द खो देता है। फिर उसने उदाहरण देते हुए कहा – एक व्यक्ति के पास सोने का महल हो, लेकिन यदि वह चाँदी की कोई चीज़ न होने पर दुःखी है, तो उसके महल का सुख व्यर्थ है। दूसरी ओर, एक साधारण झोपड़ी में रहने वाला व्यक्ति यदि अपनी साधारण रोटी और ईश्वर के नाम से संतुष्ट है, तो वही सबसे धनी है। राजा यह सुनकर मौन हो गया। उसके भीतर वर्षों से चल रही उथल-पुथल शांत होने लगी।

शिक्षा- आत्मसंतोष ही सबसे बड़ा सुख – Self-Contentment is the Greatest Joy
कुम्हार की बातों से राजा को जीवन का सबसे बड़ा संदेश मिला – आनन्द वस्तुओं से नहीं, दृष्टिकोण से आता है।
जो है उसमें संतोष रखो, वही सच्चा सुख है,मांगने से नहीं, देने से आनन्द मिलता है,भलाई करो, परमार्थ अपनाओ, तभी जीवन सार्थक होगा। आत्मसंतोष रूपी धन सबसे बड़ा खजाना है।

विशेष – आनन्द की खोज का अंतिम उत्तर-Conclusion – The Final Answer to the Quest for Joy – राजा ने कुम्हार के शब्दों को हृदय से स्वीकार किया। उसने समझ लिया कि राजा वही नहीं है जिसके पास राज्य हो, बल्कि राजा वही है जिसके पास आत्मसंतोष हो। उस दिन से राजा ने निर्णय लिया कि वह भी केवल धन और वैभव के पीछे नहीं भागेगा, बल्कि अपने जीवन को भजन, सेवा और दान के लिए समर्पित करेगा। “भलाई कर, भला होगा।” जीवन का असली आनन्द तभी है जब हम देने का आनंद लें, जो है उसमें खुश रहें और ईश्वर का स्मरण करते हुए दूसरों की भलाई करें।

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