आखिर कौन है मासूम मयंक की मौत का जिम्मेदार?

mayank -

160 फीट गहरे बोरवेल में फंसे मयंक को बचाया नहीं जा सका. 44 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद वह बोरबेल के भीतर मिट्टी और पत्थरों के बीच दबा मिला। उसके शरीर में कोई हलचल नहीं थी. मेडिकल टीम उसे लेकर अस्पताल पहुंची। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. जिला पंचायत सीईओ सौरभ सोनवडे ने भी मयंक की मौत की पुष्टि की है.

14 अप्रैल की दोपहर 12 तक लगभग 46 घंटे बाद 6 साल के मासूम को मृत अवस्था में 160 फीट गहरे बोरवेल से निकाला गया। रीवा जिले के जनेह थानांतर्गत मनिका गांव में रहने वाला 6 साल का मासूम मयंक 12 अप्रैल की दोपहर खेत में गेंहू की बाल बीनते हुए बोरवेल में जा गिरा। उसको बचाने के उसके दोस्त ने रस्सी डाली, लेकिन उसे क्या पता कि उसका दोस्त अब वापस आने के बाद उसके साथ खेल नहीं पाएगा। उस दोस्त ने अपनी तरफ से वो सभी प्रयास किए जिससे वह अपने दोस्त को बचा सके. लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।

इसके बाद सूचना दी जाती है जनेह थाने में, लेकिन तीन घंटे तक पुलिस भी अपना सिर खुजलाते हुए बैठी रही. किसी भी अधिकारी की बुद्धि काम नहीं कर रही थी कि क्या करें, कैसे करें? जब किसी के बस की बात नहीं रही तब सूचना दी जाती है जिला कलेक्टर को. सूचना मिलते ही पूरा जिला प्रशासन अपने दल-बल के साथ मनिका गांव में उस जगह जा पहुंचा जहां मयंक बोरवेल में गिरा था. इतना ही नहीं इस घटना की जानकारी मिलते ही पूरे प्रदेश की मीडिया भी घटना स्थल तक जा पहुंची। इसके बाद यह खबर पूरे प्रदेश में छा गई. इस घटना की जानकारी मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को भी मिली। सीएम ने अपना बयान देते हुए उस मासूम को बचाने के लिए हर संभव मदद का वादा किया और डिप्टी सीएम ने घटना स्थल का जायजा लेते मयंक के वापस आने की प्रार्थना की.

इतना ही नहीं क्षेत्रीय विधायक तो घटना की जानकारी मिलने के बाद से वहीं जमे रहे. इसकी जानकारी उन्होंने अपने X हैंडल पर देते हुए कहा कि ‘जब तक मयंक सकुशल बाहर नहीं आ जाता है तब तक मैं घटनास्थल से हिलूंगा नहीं’। खैर सबने अपनी-अपनी जुगत लगाई। घटना के बाद 500 किलोमीटर दूर राजधानी से रिपोर्टर्स की भीड़ जमा हो गई. लेकिन इधर प्रशासन मयंक को बाहर नहीं निकालने का कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. बाद में प्रशासन ने लगभग 7-8 जेसीबी मशीनों से खुदाई शुरू करवाई। दूसरे दिन यानि कि 13 अप्रैल को जिला कलेक्टर ने अपडेट दिया कि बोरबेल की गहराई 70 फीट है, 50 फ़ीट तक खुदाई कर ली है और कैमरे के माध्यम से जो जानकारी मिली है, उससे यही पता चला है कि बच्चा 45 से 50 फ़ीट की गहराई में फंसा है.

लेकिन कलेक्टर महोदया की बातों से ये सवाल उठता है कि यदि बच्चा 45 से 50 फ़ीट की गहराई में फंसा था, जबकि इधर 50 फ़ीट की खुदाई भी कर ली गई थी तो बच्चे को निकालने में इतना समय कैसे लगा? वो भी कलेक्टर के बयान के पूरे 24 घंटे बाद बच्चे को बाहर निकाला गया.

आखिर इस घटना का दोषी कौन है?

एक तरफ बच्चा बोरवेल में फंसा था. दूसरी तरफ प्रशासन सिर्फ इसी बात का कयास लगाए बैठा रहा कि आगे क्या करें? इसके बाद बनारस से NDRF की टीम को बुलाया गया, जो कि 13 अप्रैल की भोर में 3 बजे मनिका गांव पहुंचती है. उसने अपना काम शुरू किया। लेकिन उनके पास भी कोई ऐसी सामग्री नहीं थी जिससे कि वो समय पर बच्चे को निकाल सकें। ये कोई नया मामला नहीं है कि जब कोई बच्चा बोरवेल में गिरा है. इससे पहले भी मध्यप्रदेश में लगभग आधा दर्जन से अधिक ऐसे हादसे हो चुके हैं. इसके बाद भी समय पर न कोई ठोस कदम उठाया जाता है और न ही कोई दोषी होता है. आखिर इस घटना का दोषी कौन है?

चूंकि अब मयंक लौट के आने वाला तो नहीं है. लेकिन उसके बोरवेल में फंसे होने पर कुछ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए पहुंच गए. उस मासूम की मां और घर वाले इसी आस में बैठे रहे कि बड़े-बड़े, पढ़े-लिखे अधिकारी हैं, साथ ही क्षेत्र के बड़े नेता हैं तो हमारे बच्चे को बचा लेंगे। लेकिन जब समय लगता गया तो उसकी आस भी टूटती गई और उसका भरोसा पूरे सिस्टम से कम होता गया, जिसका परिणाम आज पूरा प्रदेश देख रहा है. मयंक तो बचा नहीं पर राजनीति चमकाने वाले नेता अब उस गरीब के घर में डेरा डाल के एक-दूसरे पर आरोप लगाने जरूर आएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *