All About Yogesh Gaud In Hindi | न्याज़िया बेगम: किसी की याद में खोए हुए कैसे ये बोल उसने संजोए होंगे, कितने क़रीब से देखा होगा ज़िंदगी को कितने सपने सजाए होंगे, तभी तो इसे पहेली का नाम दिया होगा, हां उन्होंने ही कहा था.., कहीं दूर जब दिन ढल जाए …..तेरे ख्यालों के आंगन में कोई सपनों के दीप जलाए, रजनीगंधा फूल तुम्हारे यूं ही महके जीवन में, यूं ही महके प्रीत पिया की मेरे अनुरागी मन में या जिंदगी कैसी है पहेली हाय …….
जी ये कोई और नहीं गीतकार योगेश हैं जिनके नग़्में ज़िंदगी की सच्चाई से वाबस्ता है इनमें एक सबक़ है, कई पड़ावों और कई पहलुओं से गुज़रने के लिए ताकि हमारे लिए ज़िंदगी कभी बेमानी न हो, अभी नहीं तो आने वाले पल में ज़रूर हमारे लिए कुछ अच्छा होगा ये उम्मीद हो।
कम उम्र से ही शुरू हो गया संघर्ष
लखनऊ उत्तर प्रदेश में 19 मार्च 1943 को जन्में योगेश गौड़ मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे, आरंभिक शिक्षा भी बहोत अच्छे से हुई पर पिता जी की असामायिक मृत्यु ने उन्हें झकझोंर दिया, पढ़ाई छुट गई और परिवार व दोस्तों की सलाह पर वो काम की तलाश में निकल पड़े मुंबई। पर जब कुछ न समझ आया तो पटकथा व संवाद लिखने लगे और फिल्मों से जुड़ गए इसमें उनके मित्र सत्यप्रकाश ने उनका बहोत साथ दिया, मुंबई की चाल में बीते ये संघर्ष के दिन उन्हें कमज़ोर न कर दें।
इसलिए उन्होंने अपनी कलम का रुख़ कविताओं की ओर कर दिया। जो उन्हें ताक़त के साथ बहोत खुशी देतीं थीं, कई लोगों ने उन्हें फिल्मों में गीत लिखने की सलाह दी पर अब उनके सामने ये मुश्किल पेश आई कि उन्हें किसी धुन पर अपने शब्दों को साधना पसंद नहीं था। वो तो अपनी कल्पना को उन्मुक्त आकाश में उड़ने देना चाहते थे फिर भी उन्होंने रोबिन बैनर्जी की 1963 की फिल्म मासूम में बखूबी गाने लिखे और उसके बाद वो उनकी कई फिल्मों में बतौर गीतकार रहे।
आनंद फिल्म के लिखे गीत ने दिलाई प्रसिद्धि
फिर योगेश की मुलाक़ात सलिल चौधरी से हुई जो 1971 की फिल्म आनंद में बतौर संगीतकार चुने गए थे, लेकिन गीतकार की तलाश जारी थी, इसलिए योगेश जी को ये मौका दे दिया गया और इस फिल्म ने संगीत को लेकर सफलता के नए आयाम तय कर लिए। इसके बाद इस जोड़ी ने हमें कई बेमिसाल गीत दिए रजनीगंधा, मीनू , आनंद महल और अनोखा दान जैसी फिल्मों में। हालंकि अब तक योगेश के लिए सलिल दा की घुमावदार धुनों में बोल लिखना आसान हो गया था, वो पटकथा संवाद गीत लिखने के बाद शायरी की बारीकियों को भी समझने लगे थे, और जाने कहां से संगीत में छोटे, बड़े उम्दा दिलनशीं अल्फ़ाज़ो का ताना बना संजोते थे, जिन्हें स्वर मिलने के बाद वो बड़े ही दिलकश हो जाते थे।
इन गीतों को अगर आप बोल के देखें, तो ये आपको सरल नहीं लगेगें, पर अगर गायेंगे तो ये बहोत सीधे, कर्णप्रिय और मीठे लगेगें ये खासियत है योगेश के गीतों की। उन्होंने सचिन देव बर्मन ही नहीं उनके बेटे आर, डी बर्मन के लिए भी उसी जोश के साथ सजीले गीत लिखे पर वो दिन भी आ गया जब इन लफ्ज़ों की जादूगरी थम गई ये जादूगर 29 मई 2020 को हमें छोड़कर चला गया।
पुरस्कार और सम्मान
फिल्मों में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
चलते चलते उनके कुछ और दिलनशीन नग़्मों को आज हम याद करें, तो ज़िंदगी की हक़ीक़त के अलावा सावन में बूंदों की तरह गिरने वाला लोकप्रिय गीत रिमझिम गिरे सावन ….भी आपने ही कलमबद्ध किया था, या दिलों से राब्ता कायम करने वाले, न बोले तुम न मैने कुछ कहा…, या कई बार यूं ही देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है ….., या फिर न जाने क्यूं होता है ये ज़िंदगी के साथ …., योगेश के ऐसे जाने कितने ही गीत हैं जो हमारे ही जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को उनकी एक अनुपम शैली में उजागर करते हैं। जिनमें हम खो जाते हैं।