Yami Gautam Imran Hashmi ‘Haq’: सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं होता बल्कि समाज का आईना भी होता है। कई बार फिल्में उन घटनाओं से रूबरू कराती है जिन्होंने इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है और ऐसी ही एक फिल्म जल्द ही बॉक्स ऑफिस पर रिलीज होने वाली है। जी हां हम बात कर रहे हैं यामी गौतम और इमरान हाशमी द्वारा अभिनीत आगामी फिल्म ‘हक’ की। ‘हक’ एक ऐसी कहानी है जिसे 1980 के दशक में पूरे भारत को हिला दिया। यह कहानी शाहबानो के केस पर आधारित है, एक ऐसा मुकदमा जिसने न्यायपालिका और पर्सनल लॉ के बीच का टकराव सामने लाकर महिलाओं को नई दिशा दी।
‘हक’ फ़िल्म में महिला के हक की असली कहानी
बता दे ‘हक’ मूवी एक असली घटना पर आधारित है। हक में यामी गौतम एक ऐसी साहसी महिला का किरदार निभा रही हैं जो अपने अधिकारों के लिए समाज और कानून से टकराती है। वही इमरान हाशमी न्यायिक प्रणाली और संवैधानिक दृष्टिकोण को दर्शा रहे हैं। यह फिल्म 1980 में उठे उसे मुद्दे को रोशनी में लेकर आ रही है जिसने औरतों को समाज में एक नया दर्जा दिया जिसने संसद तक को झकझोर दिया। यह कहानी शाहबानो का संघर्ष नहीं बल्कि एक महिला की कहानी है जिसने महिला सशक्तिकरण और धर्म बनाम संविधान की जंग लड़ी भी और जीती भी।
कौन थी शाहबानो? क्या था यह पूरा मुद्दा
शाहबानो वसी अहमद खान एक मुस्लिम महिला थी उनका विवाह इंदौर के एक वकील मोहम्मद अहमद खान से हुआ। इनका विवाह लगभग चार दशक चला और उसके बाद उनका तलाक हो गया। तलाक के बाद शाहबानो को मेंटेनेंस नहीं मिला जिसकी वजह से शाहबानों ने मेंटेनेंस की मांग की और कानून का रास्ता अपनाया। क्योंकि उनके पति ने इस पर असहमति जतायी और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक़ के बाद इस दायित्व को उठाने से मना कर दिया। इसी मुद्दे पर हुई बहस, कोर्ट केस और संवैधानिक जंग को हक मूवी में परोसा जा रहा है।
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क्या रहा इस मामले में पूरा फैसला
बता दे इस पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने इस पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। जहां एक धर्मनिरपेक्ष कानून भी तैयार किया गया और सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू किया गय। जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया कि यदि किसी भी धर्म की महिला को तलाक दिया जाता है तो महिला को मेंटेनेंस मिलना चाहिए। यदि तलाक के बाद महिला आत्मनिर्भर नहीं है तो यह मेंटेनेंस लंबे समय तक चलता रहना चाहिए।
कुल मिलाकर शाहबानो का केस एक महिला की मांग नहीं बल्कि भारत के संवैधानिक मूल्य धर्मनिरपेक्षता समानता और न्याय की एक बहुत बड़ी लड़ाई थी और अब इसी लड़ाई को ‘हक’ फिल्म के द्वारा लोगों तक पहुंचा जा रहा है ताकि लोग जान सके कि किस प्रकार एक सशक्त महिला अपने हक के लिए खड़ी हो सकती है फिर चाहे वह किसी भी समाज की क्यों ना हो।