Yamraj and Nachiketa Story In Hindi: नचिकेता और यमराज का दार्शनिक संवाद जो कठोपनिषद में वर्णित है, भारतीय वेदांत दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संवाद आत्मा, मृत्यु, जीवन का उद्देश्य और मोक्ष जैसे गहन विषयों पर केंद्रित है। कठोपनिषद से प्रेरित यह कहानी न केवल मृत्यु, आत्मा और जीवन के उद्देश्य के बारे में गहन दार्शनिक शिक्षा देती है। बल्कि साथ ही यह मानव की जिज्ञासा, साहस और सत्य की खोज की शक्ति को भी बताती है। यह कहानी भारतीय दर्शन और अध्यात्म की आधारशिला मानी जाती है।
यम-नचिकेता की संवाद कथा
प्राचीन काल में वाजश्रवास नामक एक विद्वान ब्राह्मण थे, जो अपने यज्ञों और दान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका पुत्र नचिकेता एक जिज्ञासु, बुद्धिमान और साहसी बालक था, जिसमें सत्य और धर्म के प्रति गहरी निष्ठा थी। एक बार वाजश्रवास ने विश्वजित नाम के यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें दान का विशेष महत्व था। यज्ञ की परंपरा के अनुसार, उन्हें अपनी सभी मूल्यवान संपत्ति दान में देनी थी। लेकिन वाजश्रवास ने केवल पुरानी, रोगग्रस्त और बेकार गायें दान में दीं, जो उनके किसी काम की नहीं थीं।
बालक नचिकेता जो यज्ञ को ध्यान से देख रहा था, यह समझ गया कि यह दान धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। उसने अपने मन में विचार किया कि सच्चा दान वही है, जो त्याग और उदारता को दर्शाए। अपनी जिज्ञासा और धर्मनिष्ठा के चलते, उसने अपने पिता से मासूमियत से पूछा- पिता जी, आप मुझे किसे दान करेंगे? यह प्रश्न सुनकर वाजश्रवास क्रोधित हो गए। बार-बार पूछने पर उन्होंने गुस्से में कह दिया, मैं तुझे यमराज को दान करता हूँ।
नचिकेता ने अपने पिता के शब्दों को बहुत गंभीरता से लिया। वह समझ गया कि पिता का क्रोध क्षणिक है, लेकिन उनके शब्दों में एक गहराई और रहस्य है। धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और पिता के वचन को पूरा करने के लिए नचिकेता ने मृत्युलोक जाकर यमराज के निवासस्थान की यात्रा करने का निश्चय किया।
यह यात्रा आसान नहीं थी, क्योंकि कोई भी जीवित प्राणी सामान्य रूप से यमलोक नहीं जा सकता। फिर भी नचिकेता का साहस और दृढ़ संकल्प उसे यमराज के द्वार तक ले गया। जब नचिकेता यमलोक पहुँचा, तो यमराज वहाँ मौजूद नहीं थे। उसने तीन दिन और तीन रात तक यमराज के द्वार पर बिना भोजन, पानी या विश्राम के प्रतीक्षा की। उसकी यह तपस्या और धैर्य असाधारण थे। यमदूतों के बार-बार कहने के बाद भी वह लौटना टो दूर द्वार से हटा भी नहीं।
जब यमराज लौटे, तो उन्हें पता चला कि एक बालक उनके द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। यमराज ने नचिकेता की भक्ति और धैर्य से प्रभावित होकर उससे क्षमा माँगी, क्योंकि अतिथि को प्रतीक्षा करवाना धर्म के विरुद्ध था। उन्होंने नचिकेता को समझाते हुए लौट जाने के लिए कहा। और तीन दिन की प्रतीक्षा से प्रसन्न होकर तीन वरदान माँगने के लिए कहा।
नचिकेता का पहला वरदान
नचिकेता ने कहा हे ! यमराज, मेरा पहला वरदान यह है कि मेरे पिता का क्रोध शांत हो जाए। वे मुझे प्रेम और स्नेह के साथ स्वीकार करें, और मेरे प्रति उनके मन में कोई अपराधबोध या दुख न रहे। यमराज ने मुस्कुराते हुए यह वरदान दे दिया और कहा कि जब नचिकेता लौटेगा, तो उसके पिता उसे खुशी-खुशी गले लगाते हुए स्वीकार करेंगे।
नचिकेता का दूसरा वरदान
नचिकेता ने दूसरा वरदान माँगा, मुझे वह अग्नि यज्ञ की विधि सिखाएँ, जिससे मनुष्य स्वर्गलोक प्राप्त कर सके। यमराज ने उसे नाचिकेत अग्नि की पूरी विधि विस्तार से समझाई। यह यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि इसे करने वाला व्यक्ति स्वर्ग के सुख प्राप्त कर सकता था। नचिकेता ने इस ज्ञान को पूरी श्रद्धा से ग्रहण किया। यमराज ने प्रसन्न होकर इस यज्ञ का नाम नचिकेता के नाम पर रखा।
नचिकेता का तीसरा वरदान
नचिकेता ने तीसरे वरदान के लिए कहा, हे यमराज, मुझे मृत्यु के बाद आत्मा की सच्चाई बताएँ। क्या मृत्यु के बाद आत्मा जीवित रहती है? जीवन और मृत्यु का रहस्य क्या है? यह प्रश्न सुनकर यमराज आश्चर्यचकित हुए, क्योंकि यह प्रश्न न केवल गहरा था, बल्कि इसे समझना और जवाब देना भी कठिन था। उन्होंने नचिकेता की परीक्षा के लिए कहा, “तुम कोई और वरदान धन, वैभव, लंबी आयु, राजपाट, स्वर्ग के सुख जो चाहो माँग लो। यह प्रश्न बहुत कठिन है, और इसे समझना तुझ जैसे सामान्य बालक के लिए ही नहीं देवताओं के लिए भी कठिन है।
लेकिन नचिकेता अडिग रहा। उसने यमराज से कहा- धन और सुख क्षणिक हैं। ये सब काल के साथ नष्ट हो जाते हैं। मुझे केवल आत्मा का सत्य चाहिए, क्योंकि वही एकमात्र शाश्वत सत्य है। नचिकेता की दृढ़ता और ज्ञान की जिज्ञासा को देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुए। और यमराज ने नचिकेता को ब्रह्मविद्या अर्थात आत्मा का ज्ञान प्रदान किया। इस ज्ञान को प्राप्त कर नचिकेता आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में पहुँच गया। वह अपने पिता के पास लौटा, जहाँ उसके पिता ने उसे प्रेम से गले लगा लिया। नचिकेता ने अपने ज्ञान को संसार में फैलाया और एक महान दार्शनिक के रूप में उन्हें भारतीय संस्कृत में आज भी याद किया जाता है।