सद्गुरु परमहंस स्वामी ने जानकारी देते हुए बताया कि लम्हेटा घाट का यह क्षेत्र भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाता है जहां पर भृगु ऋषि एवं जाबालि ऋषि ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। और यही नर्मदा तट के किनारे ही जाबालि ऋषि का देहावसान भी हुआ था। यही कारण है कि इस तपोभूमि को जबलपुर के नाम से भी जाना जाता है।
जबलपुर शहर में विश्व के इकलौते जाबालि ऋषि के मंदिर जाबालि ऋषि की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम संपन्न कराया गया। जबलपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर लम्हेटा घाट में सतगुरु परमहंस द्वारा वैदिक मंत्रों के साथ महर्षि जाबालि की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। गौरतलब है कि जबलपुर शहर का नाम इन्हीं जाबालि ऋषि के नाम से जाना जाता है। ऐसे में नर्मदा घाट के तट पर महर्षि जाबालि की प्रतिमा के अनावरण के समय बड़ी संख्या में शहर वासी और संत जन उपस्थित रहे।
सद्गुरु परमहंस स्वामी ने जानकारी देते हुए बताया कि लम्हेटा घाट का यह क्षेत्र भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाता है जहां पर भृगु ऋषि एवं जाबालि ऋषि ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। और यही नर्मदा तट के किनारे ही जाबालि ऋषि का देहावसान भी हुआ था। यही कारण है कि इस तपोभूमि को जबलपुर के नाम से भी जाना जाता है।
महर्षि जाबलि ऋषि की प्रतिमा के अनावरण के बाद भजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, इस दौरान सद्गुरु परमहंस ने मीडिया से कहा कि ये जबलपुर के लिए सौभाग्य की बात है कि ऋषि की जाबलि की प्रतिमा का आज अनावरण हो चुका है. साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने गुरु की वाणी पर विराम विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि गुरु लोग कभी- कभी बाहर नहीं बोलते हैं. अन्तः मन में भी बोलते हैं. इसके अलावा स्वप्न में ध्यान में किसी विचार का चित्रण करेंगे।
सत्संग केवल बाहर का नहीं बल्कि ध्यान में होता है. सत्वस्तु पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सत्वस्तु जब ध्यान में मिलती है तो उसका मिलन परमात्मा से होता है. त्रिकालावधी जो तत्व है वह सत्य कहलाता है. भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों को यदि ध्यान में देखा जाता है तो वही सत्य होता है. और सत्य कभी नहीं मिटता है.