वैश्विकपटल पर कई देश हैं जिनके बीच युद्ध की स्थितियां हैं.कहीं युद्ध सीधे तौर पर लड़ा जा रहा है जैसे रशिया-यूक्रेन और इजराइल -फिलिस्तीन, वहीँ दुनिया की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाएं कूटनीतिक माध्यम से दुश्मन देशों पर प्रेशर बना कर रखती हैं.जिओपॉलिटिक्स के स्तर पर इसे ग्रे ज़ोन वारफेयर कहते हैं.बात हाल फिलहाल में ईरान और इजराइल के बीच हुए अटैक्स की करेंगे और सबसे जरुरी जैसा कि इंटरनेशनल लेवल पर अक्सर होने वाले अटैक्स को सीधा वर्ल्ड वॉर से जोड़कर देखा जाने लगता है.इस विषय पर बात करेंगे।
मिडिल ईस्ट के दोनों देश इजराइल और ईरान मिलिट्री के स्तर पर मजबूत हैं और एग्रेसिव भी.ऐसे में ऊपरी स्तर पर इन अटैक्स को युद्ध के रूप में देख लेना आसान लगता है लेकिन देश को चलाना या कोई भी बड़ा फैसला लेना भावनाओं को केंद्र में रख कर नहीं किया जा सकता है.उसके लिए कूटनीतिक तरीके अपनाये जाते हैं और ये देश के भीतरी चल रहे राजनितिक, आर्थिक और सामाजिक परस्थितियों पर सीधे तौर पर निर्भर करता है.
आपको इंसिडेंट बता देते हैं .दरअसल इजराइल ने सबसे पहले ईरान की सीरिया में स्थित एम्बेसी पर हमला किया था.जिसके जवाब में ईरान ने इजराइल पर अटैक किया।अब यहाँ से हालात को समझिये।सबसे पहले ईरान की ओर रुख करेंगे।ईरान के द्वारा किये गए हमले को synchronised attack कहा जा रहा है.उसके कुछ कारण हैं.एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर ईरान को हमला करना था तो वो पूरी प्लानिंग के साथ अचानक से अटैक करता जैसा हमास के साथ हुआ था जो इजराइल के लिए एक शॉक की स्थिति थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया बल्कि लगातार ईरान इस बारे में बोलता रहा कि हम बदला लेंगे,हम इजराइल को सबक सिखाएंगे जिस वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग ये भान सबको था कि ऐसा कुछ होने वाला है और इसलिए इन इन्सिडेंट्स को देश के लोगों को प्रभावित करने के रूप में देखा जा रहा है.माना जा सकता है कि देश में लोगों की राष्ट्रीयता की भावना को भुनाया जा रहा है.अब इजराइल का ये दावा है कि ईरान के अटैक को 99 फ़ीसदी तक टैकल कर दिया गया ,लेकिन सच्चाई ये है कि ईरान के द्वारा जो भी अटैक्स किये गए और इसमें जिन भी औजारों का इस्तेमाल किया गया उनमे से 60 फ़ीसदी ख़राब थे. इसे महज एक को इन्सिडेन्स के रूप में देखना गलत होगा क्योंकि पहली बात कि मिडिल ईस्ट में ईरान एक मजबूत मिलिटरी पावर है और कोई भी देश जिसकी युद्ध की मंशा है वो खराब युद्ध सामग्री का, वो भी इतनी बड़ी संख्या में क्यों इस्तेमाल करेगी।ये बात कुछ हज़म नहीं होती।युद्ध सामग्री से जुड़ा एक और विषय सामने आता है.वो ये है कि ईरान ने ये हमले 300 मिसाइल्स के साथ किये।हमास जो एक देश भी नहीं है और खुद उसे ईरान का सपोर्ट हासिल है उसने जब इजराइल पर हमला किया था तब 5000 मिसाइल्स का इस्तेमाल किया था.ये सभी इन्सिडेंट्स ऐसा प्रतीत कराते हैं कि जैसे ये अटैक महज एक फॉर्मेलिटी थी.
खस्ताहाल में है ईरान की अर्थव्यवस्था
अब बात करते हैं ईरान की इकनोमिक कंडीशन की.आज के समय में ईरान एक इकनोमिक क्राइसिस से जूझ रहा है और ये कोई एक दो सालों के अन्तराल में नहीं हुआ है बल्कि ये स्थिति साल 2011 से ही निर्मित है.ईरान पर अमेरिका ने इकनोमिक सैंक्शंस लगा दिए थे हालाँकि साल 2015 में ईरान,अमेरिका और अन्य कई देशों ने मिलकर JCPO यानि Joint Comprehensive Plan of Action पर साइन किया था जिसके तहत ईरान पर लगाए गए इन सैंक्शंस को हटा लिया गया था लेकिन साल 2018 में अमेरिका में राजनीतिक बदलाव हुआ और सत्ता पर आये डोनाल्ड ट्रम्प। ट्रम्प ने फिर से सैंक्शंस लगा दिए. इस बार ये और भी मजबूती से लगाए गए.इस वजह से ईरान की आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा ख़राब हो गयी.IMF[15] का ही डाटा है.ईरान में इन्फ्लेशन रेट 54.8 फ़ीसदी है.ये कितना खतरनाक है इसका आकलन करने के लिए ये समझिये कि अर्थशास्त्री कहते हैं कि अगर इन्फ्लेशन रेट 25 फ़ीसदी से ऊपर जाता है तो मान कर चलिए कि देश की आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है.ऐसे में युद्ध करना ईरान के लिए कितना घातक हो सकता है आप सोच सकते हैं.ऐसी युद्ध की स्थितियां हम बड़ी पावर्स जैसे अमेरिका,रूस या चीन के मध्य सोच भी सकते हैं लेकिन इजराइल और ईरान के बीच ये संभव नहीं है.
पॉलिटिकल अस्थिरता का शिकार इजराइल
अब इजराइल पर आते हैं.आज के समय में इजराइल का हमास के साथ जो युद्ध है उसके बारे में सब जानते हैं.इज़राईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का बड़े स्तर पर देश भर में विरोध हो रहा है.हाल ही में लोगों ने नेतन्याहू के खिलाफ हमास द्वारा बंधक बनाये गए लोगों के लिए प्रदर्शन किया। लोग नेतन्याहू की लीडरशिप पर सवाल उठा रहे हैं. देश में ही हुए एक सर्वे के मुताबिक 75 फ़ीसदी इजराइली चाहते हैं कि नेतन्याहू प्रधान मंत्री का पद छोड़ दें .इजराइल के पास से अमेरिका का सपोर्ट भी हट रहा है.युद्ध के कारण चुनाव नहीं हो पा रहे हैं.इजराइल के 50 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि चुनाव हो.इस राजनीतिक उथल पुथल के बीच बिना किसी मजबूत ALLY के युद्ध करना एक समझदार फैसला कभी नहीं होगा।वैसे भी युद्ध के कारण इजराइल खुद आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है.तो इसे इसी तरह से देखा जा सकता है कि इन हमलों के जरिये देश के लोगों को खुश रखने का एक शार्ट टर्म प्रयास किया गया है. ये सोचना कि स्थितियां तीसरे विश्व युद्ध तक पहुँच जाएंगी थोड़ा एक्सट्रीम और जल्दबाज़ी से भरा हुआ विचार हो सकता है.