International Day Of Deaf 2023: भाषा की उत्पत्ति से पहले प्राचीन मानव इशारों में ही आपसी संवाद करते थे. लेकिन किसे पता था कि इशारों की भाषा आज हजारों वर्ष बाद उन खास लोगों के बोलचाल का ज़रिया बन जाएगी जिनकी आवाज हम आम इंसान सुन नहीं पाते हैं। आज विश्व बधिर दिवस है और इसी खास मौके पर हम आपको उस शख़्सियत से मिलाने वाले हैं जो बोल-सुन न पाने वालों की आवाज हैं. हम बात कर रहे हैं साइन लैंग्वेज इन्टरप्रिटर ‘सोनाली श्रीवास्तव’ (Sign Language Interpreter Sonali Srivastava) की, जिन्होंने मूक बधिरों को सशक्त बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
मध्य प्रदेश के रीवा शहर से ताल्लुक रखने वालीं सोनाली श्रीवास्तव मूक बधिर व्यक्तियों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करती हैं. ऐसे लोग जो हमारे समाज में होने के बाद भी आम लोगों से अलग रहने को मजबूर हैं, उन्हें सोनाली, सामाजिक गतिविधियों की मुख्य धारा से जोड़ने का काम करती हैं. और ये संभव होता है करुणा, अपनापन और सांकेतिक भाषा के मिलाप से.
सोनाली श्रीवास्तव एक प्रोफेशनल ‘सांकेतिक भाषा दुभाषिया’ यानी (Sign Language Interpreter) हैं. वे रीवा की पहली सांकेतिक भाषा एक्सपर्ट हैं. यह ऐसी भाषा है जिसमे कोई शब्द या आवाज नहीं है लेकिन बाकी भाषाओं की तुलना में इसमें भाव (Emotions) अधिक हैं. वो कहते हैं न ‘समझदार को इशारा काफी है’ बस समझ लीजिये कि इस भाषा को समझने वाले ही ‘समझदार हैं’.
मूक बधिरों की आवाज हैं सोनाली
सोनाली ऐसे लोगों/बच्चों को साइन लैंग्वेज का प्रशिक्षण देती हैं जो मूक बधिर हैं. क्योंकि वो बोल-सुन नहीं सकते इसका मतलब ये तो नहीं कि वो संवाद भी नहीं कर सकते! सोनाली का ऐसा काम करने के पीछे एक नेक मकसद हैं. सोनाली कहती हैं कि ऐसे लोग बहुत कलात्मक होते हैं, उनके कुछ स्टूडेंट्स शानदार क्राफ्ट बनाते हैं तो कई क्रिएटिव पेंटिंग्स की रचना करते हैं. ऐसे लोगों की कला को प्रमोट करने के लिए सोनाली एक प्रदर्शनी (Exhibition) भी आयोजित करती हैं.
मूक बधिर भी आम आम लोगों की तरह कम्प्यूटर जानते हैं और लिख-पढ़ भी सकते हैं, काम कर सकते हैं. सोनाली ऐसे लोगों को रोजगार दिलाने का भी काम करती हैं. उन्होंने रीवा और रीवा से बाहर कई मूक बधिरों को नौकरियां दिलवाई हैं.
साइन लैंग्वेज सभी के लिए
सोनाली का कहना है साइन लैंग्वेज सिर्फ बोल-सुन ना पाने वाले लोगों के लिए नहीं है बल्कि आम लोगों को भी इसके प्रति जागरूक होना चाहिए। उन्हें भी सांकेतिक भाषा आनी चाहिए, ताकि वे भी उन लोगों से कम्युनिकेट कर सकें और एक समाज का हिस्सा होने के बाद भी मूक बधिर लोगों को अलग न रहना पड़े.
सोनाली के इस नेक काम की सराहना समाज, शासन-प्रशासन हर तरफ होती है. सोनाली सरकारी कार्यक्रमों में जाकर अधिकारीयों और नेताओं के लिए साइन लेंग्वेज इन्टरप्रिट करती हैं, और सरकारी दफ्तरों में जाकर कर्मचारियों को ‘सांकेतिक भाषा’ का प्रशिक्षण देती हैं.
गरीब बच्चों का भी जीवन सुधार रहीं
सोनाली मूक बधिर लोगों की भलाई के काम करने के रास्ते में चलीं तो उन्हें समाज में ऐसे बच्चों को भी शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने का काम करना शुरू कर दिया जो गरीब तबके से नाता रखते हैं. अंडर प्रिविलेज्ड बच्चों के लिए सोनाली ‘अंकुर पाठशाला’ नाम से एक संस्थान का संचालन करती हैं और लक्ष्मी एजुकेशन एंड ट्रेनिंग सोसाइटी नाम के NGO के साथ काम कर गरीब बच्चों को सप्ताह में दो दिन के लिए फ्री एजुकेश देती हैं जहां अन्य लोग भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.
सोनाली का लक्ष्य है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों में इस भाषा के प्रति जागरुकता फैलाएं और अधिक से अधिक मूक बधिर लोगों को अपने पैरों में खड़े होने के लिए सक्षम बना सकें। इसके लिए सोनाली अब साइन लैंग्वेज को ऑनलाइन एजुकेशन तक बढ़ाने के काम में जुटी हैं, क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफार्म में एक शिक्षक कई लोगों को पढ़ा सकता है. इसके लिए सोनाली अपने दोस्तों के साथ एक एजुकेशनल वेबसाइट डेवलप कर रही हैं.
आज International Day Of Deaf भी है और Daughters Day भी, सोनाली जैसी बेटी होना भी अपने आप में सौभग्य की बात है जिन्होंने अपना जीवन गरीब बच्चों और मूक बधिर लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए समर्पित कर दिया।