पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में ,आज आपके लिए प्रस्तुत है, कृषि आश्रित समाज के लकड़ी के उपकरण।
कल हमने खटोलबा रहल बेलना पांची ढेरा आदि लकड़ी के उपकरणों की जानकारी दी थी। आज उसी श्रंखला में अन्य उपकरणों की जानकारी दे रहे हैं।
कुरुआ
यह लकड़ी का चौथाई सेर माप का एक खोका होता है जिसका प्राचीन समय में भोजन बनाते समय दाल चावल आदि अनाज नापनें में उपयोग होता था। यह लकड़ी एवं लौह दोनों का बनता था।पर अब यह पूरी तरह चलन से बाहर है। कुरुआ खम्हार, बिजहरा, आम आदि ऐसी लकड़ी का बनता था जो बाद में चिटक कर खराब न हो। पर अगर कुंदेर अपनी खराद मसीन से बनाते थे तब वह दूधी य खरहरी नामक लकड़ी का उपयोग करते थे।
पइला
यह एक सेर आयतन का लकड़ी का लम्बवत गोलाकार एक खोका होता है जिससे प्राचीन समय में घरू उपयोग हेतु अनाज नापा जाता था। इसी से खेत में काम करने वाले श्रमिकों को मजदूरी भी दी जाती थी। यह भी खम्हार , बीजा या आम की लकड़ी का बनता था। पर अब चलन से बाहर है।
कुरई
यह चार सेर आयतन का एक लकड़ी का बना लम्बवत गोला खोका होता है जिसका प्राचीन समय मे श्रमिकों को मजदूरी देने एवं उत्पादित अनाज के नाप में उपयोग होता था। यह आम खम्हार की लकड़ी का बनता था पर अब चलन से बाहर है।
गर्रा
यह एक फुट लम्बी आधा फुट चौड़ी लकड़ी की चकरघिन्नी होती है जिसमें आर पार छेंद होता है एवं बीच में रस्सी से पानी खींचने के लिए खाँचा कटा रहता है। उपयोग हेतु इसके बीच के छेंद में एक लकड़ी डाल दी जाती और उसे दो थून्ही के बीच में फँसा दिया जाता । फिर इस गर्रा से आदमी भी भी कुएं से पानी भरता और आवश्यकता पड़ने पर बैलों से भी तरसे से पानी खींच कर सिंचाई की जा सकती थी। पर अब चलन से बाहर है। आज इस श्रृंखला में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे नई जानकारी के साथ।