पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में ,आज आपके लिए प्रस्तुत है, कृषि आश्रित समाज के लकड़ी के उपकरण. कल हमने लकड़ी के उपकरणों की श्रंखला में कुरैली, कोंपर, पांचा, खाट, मचबा आदि उपकरणों की जानकारी दी थी।आज उसी क्रम में कुछ अन्य उपकरणों की जानकारी दे रहे हैं।
मचिया
यह दो फीट लम्बी दो फीट चौड़ी कांस य अम्बारी के सुतली से बुनी हुई एक बैठकी होती है जिसमें एक- एक फीट के चार पाएं होते हैं तथा उनमें 4 पाटी भी पिरोई रहती हैं।
प्राचीन समय में जब कुर्सी आदि चलन में नही थीं तब आगंतुक अतिथियों को बैठने के लिए मचिया ही रखी जाती थी। इसका उपयोग महिलाएं धान कोदो की चकरे में दरते समय में भी उपयोग करती थीं।
मचिया, बेर, कटाई, सेझा आदि ऐसी लकड़ी की बनती है जिसमें न तो मकोरा कीट लगे नही जल्दी बैठने से टूट जाने वाली लकड़ी हो? पर अब पूरी तरह चलन से बाहर हैं।
माचेड़ी
यह लकड़ी का बना एक जुआ होता है जिसमें नवसिकिया बैलों को नध कर जोतावर के बजाय उसके स्थान पर एक तीन फीट की लकड़ी ही शैला पचारी के निचले भाग में लगा दी जाती है।
जुएं के बजाय मचेड़ी में नए बैलों को सिखाने के लिए नधा जाता है जिससे अलग होकर वह इधर उधर न जा सके इसलिए शैला, गतारी एवं उसके नीचे लगने वाली लकड़ी भी मजबूत और धबई की तरह बाधिल किस्म की लगती है। पर अब चलन से बाहर है।
पीढ़ा
यह लगभग डेढ़ फीट लम्बी 9 इंच चौड़ी लकड़ी की एक पट्टिका होती है जो घर के भीतर बैठने के लिए बनाई जाती है। यह ऐसी लकड़ी का बनता है जिसमें घुन मकोरा न लगता हो। भोजन करते समय पहले लोग पीढ़ा में ही बैठ कर भोजन करते थे। पर अब चलन से बाहर होता जा रहा है।
तखत
यह बैठक खाने में बैठने एवं सोने के लिए लकड़ी – लकड़ी का ही बना 6 फीट लम्बा तीन फीट चौड़ा बैठका होता है जिसमें चार पाएं तथा पाटी सिरबा होते हैं । उसके ऊपर भी सुतली के बजाय लकड़ी के ही पटरे लगा दिए जाते हैं। एक ओर जहां यह घर में आये आगन्तुकों के बैठने के लिए उपयोगी होता है वहीं इसमें गद्दे बिछाकर सोया भी जा सकता है। पर अब यदा कदा ही दिखता है।
पालकी
यह विवाह के समय वर वधू के सवारी के रूप में प्रयुक्त होती थी जिसमें मचिया के पाए कि तरह नीचे छोटे-छोटे पाएं होते थे। किन्तु वही पाएं पालकी के ऊपरी भाग तक 4 फीट ऊँचे चले जाते जिसे कहारों के कन्धे में रखने के लिए दो समानांतर लकड़ी की बल्ली फँसा दी जाती और पालकी को कपड़े से ढकने के लिए ऊपर भी एक चौकोर लकड़ी का फ्रेम होता।
बधू के बैठने के लिए इसकी भी खाट की तरह 5 फीट की पाटी और तीन फीट के सिरबा में कांस य अम्बारी की सुतली से बुनाई की जाती थी। किन्तु इस पालकी में दो आंगें दो पीछे चार कहार लगते थे। अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है। आज इस श्रृंखला में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे इसी विषय में कुछ और जानकारी के साथ।