पद्म श्री बाबूलाल दाहिया जी के संग्रहालय में संग्रहीत उपकरणों एवं बर्तनों की जानकारी की श्रृंखला में ,आज हम आपके लिए लाए हैं, कृषि आश्रित समाज के लकड़ी के उपकरण. कल हमने लकड़ी के कुछ उपकरणों की जानकारी दीथी। आज उसी क्रम में कुछ अन्य उपकरणों की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं.
कोपर
यह डेंगर की तरह ही 1फीट चौड़ा व आधा फीट ऊँचा लकड़ी का एक पाटा होता है। पर इसकी लम्बाई 6-7 हाथ होती है जिसमें 2 जोड़ी बैल साथ- साथ नधे जा सकें। साथ ही उसे जुएं में रस्सी के साथ बांधने के लिए दोनो किनारों में लौह के एक -एक छल्ले भी लगा दिए जाते हैं। इसके चलने से जब खेत के ढेले फूट जाते हैं तब गेहूं की बुबाई की जाती है। पर अब यह पूर्णतः चलन से बाहर है।
कुरैली ” अखैनी”
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यह एक फुट की लकड़ी की बनी होती है जिसमें छेंद करके लाठी में फँसा एक लोहे की कील ठोक दी जाती है। इसका ऊपर का भाग कुछ मोटा किन्तु नीचे टेढ़ा पतला होता है।
गहाई के समय इससे लॉक उल्टाई पलटाई जाती है। बाद में एक कुरैली लोह की भी बनने लगी थी परन्तु बेंट उसमें भी लकड़ी का ही होता था। पर अब यह सब चलन से बाहर हैं।
पांचा
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यह गहाई के बाद गेहूं चने की टूटी हुई लॉक को खोने पलटाने के काम आने वाला लकड़ी का एक उपकरण होता है।इस पांचे में लकड़ी की ही एक हाथ लम्बी और 6अंगुल चौड़ी पट्टी में 5 चपटी खूटियां लगा दी जाती हैं एवं मध्य में 4 फीट लम्बा बांस की लकड़ी का एक बेंट भी। इसकी पांचों खूटियां किसी धवा आदि बाधिल किस्म की मजबूत लकड़ी से बनती है जिससे कार्य करते समय वह चटक कर टूट न जाँय।पर अब यह चलन से बाहर है।
खटिया य चारपाई
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इसमें चार पाएं होते हैं जिन्हे तीन फीट के 2 सिरबा व साढ़े पाँच फीट की 2 पाटी में जोड़ कर बनाया जाता है। खाट की लकड़ी में मकोरा नामक कीट न लगे अस्तु वह कारी, बेर य स्याझा नामक मकोरा रोधी लकड़ी की ही बनाई जाती है। बनाने के बाद कांस य बबई नामक घास की सुतली जिसे सूमा कहा जाता है उससे बुनाई करदी जाती है। पर अब यदा कदा ही बंची है।
मचबा
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खाट का उपयोग जहाँ गाँव के साधारण श्रमिक व किसान सोने के लिए करते हैं वहीं सम्पन्न घरों में सोने के लिए मचबा हुआ करते थे। इसकी लम्बाई छः फीट एवं चौड़ाई साढ़े तीन फीट की होती है। साथ ही इसमें लगे फ्रेम जो पाटी सिरबा कहलाते हैं वह खाट से अधिक मोटे एवं चारो पाएं भी कलात्मक होते हैं जो खराद से भमाई करके बनाये जाते हैं।
मचबा कांस की सुतली य सन अम्बारी की सुतली से बुने जाते हैं जिनकी बुनाई भी कलात्मक होती है और किसी – किसी के सिरहाने लकड़ी का एक कलात्मक फ्रेम लगाकर उसे और कलात्मक बना देते हैं।पर अब यह चलन से बाहर हैं। आज बस इतना ही कल फिर लेकर आएंगे इस श्रृंखला में नई जानकारी के साथ अगली कड़ी।