Women Empowerment in India : ज़िम्मेदारी-अपेक्षा व आत्मसम्मान की जद्दोजहद-भारतीय समाज में महिला को सशक्त, सहनशील और जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन उसकी भूमिकाओं की बहुलता अक्सर उसकी चुनौतियों को अनदेखा कर देती है। एक ओर कामकाजी महिला है, जो घर और कार्यस्थल दोनों की अपेक्षाओं को साधने में लगी रहती है, तो दूसरी ओर गृहिणी महिला है, जिसकी मेहनत घर की चारदीवारी में सीमित होकर अक्सर अदृश्य रह जाती है। दोनों ही वर्गों की महिलाएं अलग-अलग परिस्थितियों में रहते हुए भी समान मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक दबावों से जूझती हैं। यह लेख इन्हीं चुनौतियों को संतुलित दृष्टि से प्रस्तुत करता है। कामकाजी और गृहिणी महिलाओं को किन सामाजिक, मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? जानिए दोनों वर्गों की समस्याएं, समानताएं और समाधान पर आधारित विस्तृत लेख।
कामकाजी महिलाओं की प्रमुख चुनौतियां
वर्क-लाइफ बैलेंस की कठिनाई-ऑफिस की जिम्मेदारियां,समयसीमा का दबाव और साथ ही घर की अपेक्षाएं-इन सबके बीच संतुलन बनाना कामकाजी महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
डबल शिफ्ट का बोझ-कार्यस्थल पर प्रोफेशनल भूमिका निभाने के बाद भी घर लौटकर अधिकांश घरेलू काम महिलाओं पर ही आते हैं, जिससे शारीरिक व मानसिक थकान बढ़ती है।
कार्यस्थल पर असमानता-वेतन में भेदभाव, प्रमोशन में उपेक्षा,जेंडर बायस और कभी-कभी असुरक्षित माहौल कामकाजी महिलाओं को प्रभावित करता है।
मातृत्व और करियर का संघर्ष-मातृत्व अवकाश, बच्चे की परवरिश और करियर की निरंतरता-इन तीनों के बीच संतुलन बना पाना आसान नहीं होता।
गृहिणी महिलाओं की प्रमुख चुनौतियां
अदृश्य श्रम की अनदेखी-घर संभालना, परिवार की देखभाल, बच्चों की परवरिश – ये सभी कार्य आर्थिक रूप से न गिने जाने के कारण कम आंके जाते हैं।
आर्थिक निर्भरता-स्वयं की आय न होने से निर्णय-क्षमता और आत्मनिर्भरता पर असर पड़ता है, जिससे आत्मविश्वास भी प्रभावित होता है।

सामाजिक पहचान का अभाव
कमतर होने का स्वविचार-केवल गृहिणी,कहे जाने से कई महिलाएं स्वयं को कमतर आंकने लगती हैं,जबकि उनका योगदान परिवार की नींव होता है।
मानसिक एकाकीपन-दिनभर घर में रहने से संवाद, सामाजिक संपर्क और आत्मविकास के अवसर सीमित हो जाते हैं।
दोनों की साझा चुनौतियां-समाज की अत्यधिक अपेक्षाएं ,स्वयं के लिए समय की कमी,मानसिक स्वास्थ्य पर असर,निर्णयों में सीमित भागीदारी,त्याग-को महिला की स्वाभाविक जिम्मेदारी मान लेना।

समाधान और सकारात्मक
घरेलू जिम्मेदारियों में समान साझेदारी,महिलाओं के काम-चाहे घर का हो या बाहर का उसको सम्मान,लचीली कार्यनीतियां (Flexible Work Policies),आत्मनिर्भरता,स्किल डेवलपमेंट और शिक्षा को बढ़ावा,महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर खुली बातचीत होना ,सर्व – समाज को स्वीकार्य होना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)-कामकाजी और गृहिणी महिलाएं अलग-अलग भूमिकाओं में होते हुए भी समान रूप से समाज की प्रगति में योगदान देती हैं। किसी का संघर्ष ऑफिस की फाइलों में है, तो किसी का रसोई और परिवार की जिम्मेदारियों में, लेकिन दोनों ही संघर्ष महत्वपूर्ण और सम्माननीय हैं। आवश्यकता इस बात की है कि समाज महिला को उसकी भूमिका से नहीं, बल्कि उसके योगदान से आंके। जब महिलाओं को समझ, सहयोग और सम्मान मिलेगा, तभी सच्चे अर्थों में महिला सशक्तिकरण संभव होगा।
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