Why Were Water Sources Built By Kings In Hindi: प्राचीन भारत में पानी की कमी की समस्यायों से जूझने के लिए, शासक और स्थानीय राजा जल संरक्षण के लिए जलस्त्रोतों का निर्माण करवाते थे। उदाहरण स्वरूप बावड़ियाँ और तालाब वर्षा जल को संग्रहित करने और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करते थे, जिससे सूखे के समय भी पानी उपलब्ध रहता था।
राजाओं के द्वारा जलस्त्रोत बनवाने के कई कारण थे
प्राचीन समय के राजाओं और नरेशों द्वारा बनवाए गए जलस्त्रोत कुएँ, बावड़ी और तालाब इत्यादि अभी भी प्राप्त होते हैं। हालांकि तालाब तो पूरे भारत में बनवाए जाते थे, लेकिन कलात्मक बावड़ियाँ सबसे ज्यादा पश्चिमोत्तर प्रांतों में ही बनती थीं। बावड़ियाँ और तालाब न केवल जल प्रबंधन के साधन थे, बल्कि सामाजिक, धार्मिक और शासन से संबंधित व्यापक उद्देश्यों को भी पूरा करते थे।
सामाजिक कल्याण
राजा अपने प्रजा की भलाई के लिए जल स्रोतों का निर्माण करवाते थे। यह जनता को पीने, खेती और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराने का एक तरीका था, जिससे राजा की लोकप्रियता और सम्मान बढ़ता था।
धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में जल दान को पुण्य का कार्य माना जाता है। कई राजा और रानियाँ बावड़ियाँ और तालाब बनवाकर धार्मिक पुण्य अर्जित करते थे। इन जलाशयों को मंदिरों या तीर्थ स्थानों के पास भी बनवाया जाता था।
आर्थिक समृद्धि
राजाओं द्वारा निर्मित तालाब और बावड़ियाँ खेती के लिए सिंचाई का साधन प्रदान करती थीं, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता था। यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद करता था। जिससे राज्य की आय बढ़ती थी।
सामरिक महत्व
युद्ध या घेराबंदी के समय, बावड़ियाँ और तालाब किलों और नगरों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करते थे, जो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। कालिंजर और चित्तौड़ इत्यादि जैसे दुर्गों में जलसंरक्षण के अच्छे प्रबंध थे, जिसके कारण दुश्मन द्वारा घेराबंदी के समय लंबे समय तक दुर्ग मेइन रहा जा सकता है।
वास्तुशिल्प और सौंदर्य
बावड़ियाँ और तालाब न केवल उपयोगी थे, बल्कि इन्हें अक्सर सुंदर वास्तुशिल्प के साथ बनवाया जाता था, जो राजा की शक्तिऔर समृद्धि का प्रतीक होता था। जैसे- गुजरात के पाटन में स्थित रानी की वाव, जिसका चित्र 100 रुपये की नोट पर भी अंकित है। यह अपनी कलात्मकता के साथ-साथ ही भव्यता के लिए भी प्रसिद्ध है।
सामुदायिक केंद्र
तालाब और बावड़ियाँ सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी थीं, जहाँ लोग एकत्रित होकर उत्सव मनाते या सामाजिक कार्य करते थे। कई जगह जलाशय और कुआं इत्यादि पूजने का रिवाज अभी भी है।